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मोदी की हिन्दुत्व वाली छवि खाड़ी के इस्लामिक देशों में बाधा क्यों नहीं बनी

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अरब वर्ल्ड एक करोड़ तीन लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज़्यादा क्षेत्रफल में फैला हुआ है. पश्चिम में मोरक्को और उत्तर में संयुक्त अरब अमीरात तक अरब वर्ल्ड का विस्तार है. इन इलाक़ों में कई ऐसे समूह हैं जो न तो नस्ली रूप से अरब हैं और न ही अरबी धाराप्रवाह बोलते हैं.

लेकिन अरब संस्कृति के प्रभाव के कारण इन्हें अरब वर्ल्ड में ही गिना जाता है. अरब वर्ल्ड में आबादी को तीन समूहों में देखा जाता है. पहला उत्तरी अफ़्रीकी, लेवेंटाइन अरब और गल्फ़ अरब. इस रिपोर्ट में बात करते हैं खाड़ी के अरब और मोदी सरकार के संबंधों पर.

गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे. दंगों के बाद मोदी की छवि मुस्लिम विरोधी बनी थी. इस छवि की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई.

2005 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब अमेरिका ने उन पर यूएस इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम एक्ट 1998 के तहत वीज़ा बैन लगाया था.

यह बैन अमेरिकी एजेंसी कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ़्रीडम की सिफ़ारिश पर लगाया गया था. इस कमीशन ने 2002 के दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका की आलोचना की थी. 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो अमेरिका ने यह बैन हटा लिया.सऊदी अरब ने भी पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया था

बाइडन प्रशासन ने क़रीब डेढ़ महीने पहले ही 18 नवंबर को फ़ैसला किया कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में अमेरिका में किसी भी क़ानूनी प्रक्रिया का सामना नहीं करना पड़ेगा.

अमेरिका की जाँच एजेंसियों ने जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के लिए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को ज़िम्मेदार बताया था. सऊदी क्राउन प्रिंस को अमेरिका ने इस मामले में छूट दी तो राष्ट्रपति जो बाइडन की आलोचना होने लगी.

इन आलोचनाओं के जवाब में अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वेदांत पटेल ने कहा कि यह फ़ैसला नियम के तहत लिया गया है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस मामले में 2014 में पीएम बनने पर छूट मिली थी. पिछले साल 27 नवंबर को सऊदी अरब के किंग सलमान ने अपने बेटे मोहम्मद बिन सलमान को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की थी.

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सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को छूट देने के मामले में मोदी का हवाला देने को भारतीय विदेश मंत्रालय ने अनावश्यक और अप्रासंगिक बताया था.

नरेंद्र मोदी 2014 के बाद कई बार अमेरिका जा चुके हैं और 2016 में उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस को भी संबोधित किया था.

दूसरी तरफ़ जो बाइडन अपने चुनाव कैंपेन में सऊदी अरब के ख़िलाफ़ मानवाधिकारों के मामले में सख़्त क़दम उठाने की बात करते थे, लेकिन उनकी सरकार क्राउन प्रिंस को क़ानूनी सुरक्षा देने पर मजबूर हुई.

इसी साल जुलाई महीने में बाइडन ने सऊदी अरब का भी दौरा किया था. सऊदी अरब से तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए बाइडन कहते रहे, लेकिन क्राउन प्रिंस ने एक नहीं सुनी.

नरेंद्र मोदी की हिन्दूवादी छवि क्या इस्लामिक देशों में आड़े आई?

2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी की कथित मुस्लिम विरोधी छवि क्या इस्लामिक देशों के साथ संबंधों में आड़े आई?

पिछले महीने गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर अहमदाबाद के सरसपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था, ”2014 के बाद से हमने इस्लामिक देश सऊदी अरब, यूएई और बहरीन से दोस्ती मज़बूत की है. इन देशों के सिलेबस में योग को आधिकारिक रूप से शामिल किया गया है. भारत के हिन्दुओं के लिए अबूधाबी और बहरीन में मंदिर भी बन रहा है.”

नरेंद्र मोदी पिछले आठ सालों से भारत के प्रधानमंत्री हैं और इस दौरान उन्होंने खाड़ी के इस्लामिक देशों से संबंधों को मज़बूत करने को काफ़ी गंभीरता से लिया है.

पिछले आठ सालों में पीएम मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई का चार बार दौरा किया. पहला दौरा अगस्त 2015 में, दूसरा फ़रवरी 2018 में और तीसरा अगस्त 2019 में.

पीएम मोदी ने चौथा दौरा जून 2022 में किया. जब मोदी ने अगस्त 2015 में यूएई का दौरा किया तो वह पिछले 34 सालों में किसी पहले भारतीय प्रधानमंत्री का दौरा था. मोदी से पहले 1981 में इंदिरा गांधी ने यूएई का दौरा किया था.

पिछले साल 28 जून को पीएम मोदी ने जब अबूधाबी एयरपोर्ट पर लैंड किया तो यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान अगवानी में पहले से ही खड़े थे.

यूएई के राष्ट्रपति शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान का पीएम मोदी के स्वागत में एयरपोर्ट पर खड़ा रहना प्रोटोकॉल के ख़िलाफ़ था और उन्होंने इसे भारतीय प्रधानमंत्री के लिए तोड़ा था.

पाकिस्तान में मोदी के इस स्वागत की चर्चा काफ़ी हुई थी. भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने कहा था कि मई में पाकिस्तानी पीएम शहबाज़ शरीफ़ यूएई गए थे और एक जूनियर मंत्री ने उनकी अगवानी की थी. अब्दुल बासित ने कहा था कि भारत की यह प्रतिष्ठा परेशान करती है.

कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने शेख़ मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान से अप्रत्याशित दोस्ती बनाई है. 2017 में गणतंत्र दिवस के मौक़े पर मोदी सरकार ने मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान को ही चीफ़ गेस्ट के रूप में न्योता दिया था.

तब मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान यूएई के राष्ट्रपति नहीं थे बल्कि अबूधाबी के क्राउन प्रिंस थे. परंपरा के हिसाब से भारत गणतंत्र दिवस पर किसी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को ही मुख्य अतिथि बनाता था. लेकिन अल नाह्यान 2017 में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनकर आए थे.

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दूरियां कैसे मिटीं?

थिंक टैंक कार्नेगी एन्डाउन्मेंट से अबूधाबी में पश्चिम के एक पूर्व राजदूत ने कहा था कि मोदी की व्यावहारिक राजनीति वाला माइंडसेट और एक मज़बूत नेता वाली शैली सऊदी और यूएई के दोनों प्रिंस पसंद करते हैं.

पीएम मोदी ने 2016 और 2019 में सऊदी अरब का दौरा किया था. 2019 में बहरीन और 2018 में ओमान, जॉर्डन, फ़लस्तीनी क्षेत्र का और 2016 में क़तर का दौरा किया था.

पीएम मोदी 2015 में शेख ज़ाएद ग्रैंड मस्जिद और 2018 में ओमान की सुल्तान क़बूस ग्रैंड मस्जिद भी गए थे. नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब, यूएई और बहरीन ने अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी नवाज़ा था.

थिंक टैंक कार्नेगी एन्डाउन्मेंट ने अगस्त 2019 की अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था, ”शुरुआत में ऐसा लगा था कि नरेंद्र मोदी की राजनीतिक पृष्ठभूमि अरब प्रायद्वीप से संबंधों को आगे बढ़ाने में आड़े आएगी. मोदी हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक हैं.

2002 के गुजरात दंगों के बाद मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि भी प्रभावित हुई थी. इस दंगे में सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम मारे गए थे. लेकिन खाड़ी के देशों के नेताओं और ख़ासकर सऊदी अरब के साथ यूएई ने मोदी को इस रूप में नहीं देखा.

पॉलिटिकल इस्लाम के समाधान में मोदी का सुरक्षा से जुड़ा दृष्टिकोण दोनों देशों के शासकों के विचारों से मेल खाता था. फ़रवरी 2019 में नई दिल्ली में एक समारोह में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने नरेंद्र मोदी को अपना ‘बड़ा भाई’ बताया था.”

मध्य-पूर्व के विशेषज्ञ और थिंक टैंक ओआरएफ़ इंडिया के फ़ेलो कबीर तनेजा ने लिखा है, ”2002 के दंगों के दौरान नई दिल्ली में खाड़ी के देशों के दूतावासों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से कोई स्पष्टीकरण की मांग नहीं की थी. हालांकि पाकिस्तान इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी में इन मुद्दों को उठाता रहा है.

लेकिन बहस तब ज़्यादा शुरू हुई थी जब अमेरिका ने मोदी पर वीज़ा बैन लगाया था. 2014 में नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में जीत मिली तो खाड़ी के देशों से प्रतिक्रिया बहुत ही नरम थी. भारत में बदलाव का खाड़ी के देशों ने उस तरह से खुलकर स्वागत नहीं किया था. लेकिन धीरे-धीरे चीज़ें बदलीं. मोदी गुटनिरपेक्षता की नीति से बँधे नहीं रहे.

पहले गल्फ़ वॉर में भारत का रुख़ सद्दाम हुसैन के समर्थन में था. 2014 के बाद मोदी ने खाड़ी के देशों के साथ संबंध बहुत ही प्रभावी तरीक़े से बदला.”

कबीर तनेजा ने लिखा है, ”2014 में मोहम्मद बिन ज़ाएद मोदी को फ़ोन कर बधाई देने वाले विश्व नेताओं में से एक थे.”2006 में सऊदी अरब के किंग भारत दौरे पर आए थे और इस दौरे को दोनों देशों के संबंधों में अहम माना जाता है

मोदी को बताया बड़ा भाई

फ़रवरी 2019 में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भारत के दौर पर आए थे. क्राउन प्रिंस नई दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुँचे तो उनकी अगवानी में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खड़े थे. पीएम मोदी प्रोटोकॉल तोड़ एयरपोर्ट पर पहुँचे थे.

क्राउन प्रिंस तब सऊदी अरब के प्रधानमंत्री भी नहीं बने थे. इसी दौरे में नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में सऊदी क्राउन प्रिंस ने कहा था, ”हम दोनों भाई हैं. प्रधानमंत्री मोदी मेरे बड़े भाई हैं. मैं उनका छोटा भाई हूँ और उनकी प्रशंसा करता हूँ.

अरब प्रायद्वीप से भारत का संबंध हज़ारों साल पुराना है. यहाँ तक कि इतिहास लिखे जाने से पहले से. अरब प्रायद्वीप और भारत के बीच का संबंध हमारे डीएनए में है.”

भारत के दौरे पर आए मोहम्मद बिन सलमान ने कहा था, ”पिछले 70 सालों से भारत के लोग दोस्त हैं और सऊदी के निर्माण में ये भागीदार रहे हैं.”

कई विशेषज्ञों का मानना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत से खाड़ी के देशों से रिश्ते मज़बूत हुए हैं. कई लोग यह भी मानते हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी की जो कथित रूप से मुस्लिम विरोधी छवि बनी थी उसे तोड़ने के लिए उन्होंने खाड़ी के देशों पर ख़ासा ध्यान दिया.

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साल 2022 के मई महीने के आख़िर में बीजेपी की प्रवक्ता रहीं नूपुर शर्मा ने पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर विवादित टिप्पणी की थी और जून शुरू होते ही इसे लेकर इस्लामिक देशों से तीखी प्रतिक्रिया आने लगी.

इसी समय भारत के तत्कालीन उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू क़तर के दौरे पर गए थे. ख़बर आई कि क़तर ने ग़ुस्से में वेंकैया नायडू के साथ होने वाला राजकीय भोज रद्द कर दिया था. कई लोग मानते हैं कि इससे भारत की प्रतिष्ठा को धक्का लगा.

क्या नूपुर शर्मा का बयान भारत के लिए धक्का था? लीबिया और जॉर्डन में भारत के राजदूत रहे अनिल त्रिगुणायत कहते हैं, ”मुझे नहीं लगता है कि अरब के देशों से भारत के संबंध इतने कमज़ोर हैं कि कुछ घटनाओं का इतना असर होगा.

यह बात बिल्कुल सही है कि इस सरकार ने अरब वर्ल्ड को अपनी प्राथमिकता में रखा है. मोदी सरकार में अरब दुनिया से रिश्ते मज़बूत हुए हैं. मैं इस बात को ज़रूर मानता हूँ कि भारत में इस्लामिक विरासत हमारी साझी संस्कृति का हिस्सा है और इसका इस्तेमाल अरब देशों से दोस्ती मज़बूत करने में और करना चाहिए.”

अनिल त्रिगुणायत कहते हैं, ”खाड़ी के देशों में क़रीब 90 लाख भारतीय काम करते हैं. भारतीयों ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से इन देशों में अच्छी प्रतिष्ठा बनाई है. हमारी घरेलू राजनीति में इसका ख़्याल रखना चाहिए कि कुछ ऐसा ना हो जिससे इनकी मेहनत पर पानी फिर जाए.

इन देशों में भारत की बहुत अच्छी छवि है और इसे मज़बूत करने के लिए मोदी सरकार ने भी काफ़ी मेहनत की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब और यूएई ने अपना सर्वोच्च सम्मान भी दिया है.”

भारत का सहयोग

खाड़ी के देशों से भारत का कई अहम क्षेत्रों में सहयोग लगातार बढ़ रहा है. ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्रों में भारत इन देशों के साथ कई मोर्चों पर काम कर रहा है.

अबूधाबी नेशनल ऑइल कंपनी यानी एडीएनओसी ने 2018 में सात सालों के अनुबंध पर भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम रिज़र्व को भरने की ज़िम्मेदारी ली थी. इसके तहत मैंगलोर में एक स्टोरेज में 50.860 लाख बैरल कच्चा तेल भरना था.

एडीएनओसी और सऊदी अरब की अरामको की महाराष्ट्र में 12 लाख बैरल की एक रिफ़ाइनरी बनाने की योजना है. इसमें 44 अरब डॉलर की लागत आएगी.

ईरान जैसे देशों से तेल आयात पर अमेरिकी प्रतिबंधों की स्थिति में ये परियोजनाएं काफ़ी अहम हैं. ट्रंप ने ईरान से परमाणु क़रार तोड़ दिया था और कई कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे. इन प्रतिबंधों के बाद भारत को ईरान से तेल आयात बंद करना पड़ा था.

2018 में भारत ने आधिकारिक रूप से ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था. भारत के कुल तेल आयात में ईरान की हिस्सेदारी 10 फ़ीसदी थी.

यूएई के साथ भारत का सुरक्षा सहयोग कई स्तरों पर बढ़ा है. मोहम्मद बिन ज़ाएद का नेतृत्व इस्लामिक अतिवादियों के ख़िलाफ़ काफ़ी सख़्त रहा है. ख़ास कर मुस्लिम ब्रदरहुड को लेकर. भारत को भी इस्लामिक चरमपंथ के ख़िलाफ़ यूएई से काफ़ी मदद मिली है.

भारत ने पाकिस्तान में एयर स्ट्राइक किया और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया तब भी खाड़ी के इस्लामिक देशों से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई जबकि ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान का जीसीसी (गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल) के देशों से अच्छे संबंध रहे हैं.

1970 के दशक में भारत का यूएई से द्विपक्षीय व्यापार महज़ 18 करोड़ डॉलर का था जो आज की तारीख़ में 73 अरब डॉलर का हो गया है.

अमेरिका और चीन के बाद यूएई 2021-22 में भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर रहा. अमेरिका के बाद भारत सबसे ज़्यादा निर्यात यूएई में करता है.

2021-22 में भारत का यूएई में निर्यात 28 अरब डॉलर था. वहीं 2021 में यूएई का इंडिया दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर था और ग़ैर-तेल कारोबार 45 अरब डॉलर का था.

दोनों देशों में 18 फ़रवरी 2022 को कॉम्प्रिहेंसिव इकनॉमिक पार्टनर्शिप अग्रीमेंट हुआ था. इस समझौते का लक्ष्य दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर पहुँचाने का है.

ऐतिहासिक संबंध

भारत का अरब वर्ल्ड से रिश्ता ऐतिहासिक रहा है. गल्फ़ अरब में भारत के क़रीब 90 लाख लोग रहते हैं. ये 90 लाख भारतीय वहाँ से कमाकर हर साल अरबों डॉलर भेजते हैं. 2019 में इन भारतीयों ने कमाकर 40 अरब डॉलर भेजे थे.

यह रक़म भारत के कुल रेमिटेंस का 65 प्रतिशत थी और भारत की जीडीपी का तीन फ़ीसदी. भारत एक तिहाई तेल आयात खाड़ी के देशों से करता है. इसके साथ ही क़तर भारत में शीर्ष का गैस आपूर्तिकर्ता देश है.

गल्फ़ को-ऑपरेशन काउंसिल यानी जीसीसी में कुल छह देश हैं. ये देश हैं- सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, क़तर और बहरीन. 2021-2022 में भारत का जीसीसी देशों से द्विपक्षीय व्यापार 154 अरब डॉलर था. यह भारत के कुल निर्यात का 10.4 फ़ीसदी है और कुल आयात का 18 फ़ीसदी है.

पिछले दो दशकों से सऊदी अरब और यूएई ने भारत से संबंध मज़बूत करने शुरू किए थे. कहा जाता है कि दोनों देश इस बात से हमेशा सतर्क रहे हैं कि अमेरिका कभी भी बीच में छोड़ सकता है और पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है.

2006 में सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह बिन अब्दुल अज़ीज़ अल-साऊद के भारत दौरे को काफ़ी अहम माना जाता है. उनके इस दौरे को दोनों देशों के रिश्ते में मील का पत्थर माना जाता है.

पिछले दो दशक से सऊदी अरब और यूएई भारत के राष्ट्रीय आधारभूत ढांचे में निवेश कर रहे हैं. इसके अलावा दोनों देशों का भारत से ग़ैर-तेल कारोबार बढ़ा है. भारत से दोनों देशों का गेहूं और वैक्सीन आयात बढ़ा है.

अनिल त्रिगुणायत कहते हैं, ”सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन ज़ायद अल-नाह्यान मानते हैं कि भारत के साथ संबंध बहुत ज़रूरी है.

ये भारत की घरेलू राजनीति का तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं. अब्राहम एकॉर्ड्स के बाद इसराइल की अरब में बढ़ती स्वीकार्यता से भारत का वो डर भी कम हो गया कि खाड़ी के देश बिदक जाएंगे.

मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने इसराइल का दौरा किया. मोदी ने अरब से रिश्ते मज़बूत करने के लिए इसराइल की उपेक्षा नहीं की. मोदी सरकार ने इसराइल और खाड़ी के देशों के साथ कई स्तरों पर आर्थिक और रक्षा संबंधों को आगे बढ़ाया. भारत, इसराइल, यूएई और अमेरिका ने मिलकर I2U2 गठजोड़ भी बनाया.”

पैग़ंबर पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं

सऊदी अरब समेत कई देशों में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद को लगता है कि इन सबके बावजूद भारत को देश के भीतर कुछ संवेदनशील चीज़ों का ख़्याल रखना चाहिए.

वह कहते हैं, ”भारत में कई ऐसे मौक़े देखने को मिले हैं जब मुस्लिम समुदाय का उत्पीड़न धर्म के नाम पर हुआ और इस्लामिक विरासत को मिटाने की कोशिश की गई. यह एक परंपरा रही है कि किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना है.

लेकिन जब बात पैग़ंबर मोहम्मद की आएगी तो अरब के देश इस पर चुप नहीं रहेंगे. मैंने विदेशों में कई लोगों को यह कहते सुना है कि अब बहुत हो गया. आप घर में एक ख़ास समुदाय को निशाने पर लेंगे और विदेशों में नैतिकता की ऊंची बातें करेंगे तो यह लंबे समय तक नहीं चलेगा.”

भारत के विदेश मंत्रालय ने नूपुर शर्मा विवाद पर कहा था कि उपद्रवियों की टिप्पणी भारत का आधिकारिक रुख़ नहीं है.

तलमीज़ अहमद कहते हैं, ”भारत के लोग जीसीसी देशों से जितना रेमिटेंस भेजते हैं, उससे भारत के वार्षिक तेल आयात बिल का एक तिहाई कवर हो जाता है. भारत अगर घरेलू राजनीति में इन चीज़ों को ठीक नहीं करेगा तो बड़ा आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ेगा. भारतीय समानों का बहिष्कार शुरू होना भी अप्रत्याशित है. भारतीय कामगारों की नियुक्ति पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.”

अमेरिका, चीन और यूएई के बाद सऊदी अरब भारत का चौथा बड़ा ट्रेड पार्टनर है. भारत सऊदी अरब से अपनी ज़रूरत का 18 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करता है और 22 फ़ीसदी एलपीजी.

2021-22 में सऊदी अरब और भारत का द्विपक्षीय व्यापार 44.8 अरब डॉलर का रहा. इसमें सऊदी अरब ने भारत में निर्यात 34 अरब डॉलर का किया और आयात 8.76 अरब डॉलर का. 2021-22 में भारत के कुल व्यापार में सऊदी अरब की हिस्सेदारी 4.14 फ़ीसदी रही.