Home धर्म - ज्योतिष पाप घटाओ, पुण्य बढ़ाओ- आचार्य विशुद्ध सागर

पाप घटाओ, पुण्य बढ़ाओ- आचार्य विशुद्ध सागर

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बडौत – दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि- दुनिया में जो होना है सो होना है, व्यक्ति व्यर्थ में ही सोचकर अपने परिणामों को संक्लेषित करता है । हम सोच ही सकते हैं, पर दुनिया को अपने अनुसार चला नहीं सकते हैं। जिस समय, जिस क्षेत्र में, जिस प्रकार से, जिसके द्वारा जो होना है, वह कार्य उस प्रकार से होता -ही- होता है। जो होता है सो होता है, व्यक्ति व्यर्थ ही रोता है। मित्रो! जीवन अनमोल है, इसकी महिमा को जानकर, प्रतियत्न अपने विकास में समय व्यतीत करें । दूसरों की चिंता में अपने जीवन को नष्ट न करें। पर चिंता से स्वयं का हित नहीं हो सकता है। चिंता से नहीं मिलता, चिंतन से समस्या के समाधान मिलते हैं। पुण्य कुछ बढ़ाओ, चिंता घटाओ, जीवन को खुशहाल बनाओ। पुण्य के संयोग में सुख के साधन मिलते हैं और पापोदय में कुल के संयोग मिलते हैं। धर्म को समझो, धर्म ही मंगल है, धर्म ही उत्तम है, धर्म ही शरण है। धर्म वही श्रेष्ठ है, जो उत्तम सुख प्रदान करे। धर्म के फल से श्वान भी स्वर्ग का देव हो जाता है। अपने कर्तव्यों का पालन करो । पुण्यात्मा को अपने आप ही सर्व सम्पत्तियाँ एवं सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। पुण्यात्मा के विचार भी पवित्र होते हैं, पापी को शुभ विचार भी नहीं आते । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया । सभा मे प्रवीण जैन, सतीश जैन, वीरेंदर पिण्टी,पुनीत जैन, एडवोकेट विनोद जैन, अतुल जैन, विवेक जैन, दिनेश जैन, अशोक जैन आदि उपस्थित थे ।