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मातृत्व के प्रेम से सींचा बीज एक दिन कल्पवृक्ष बनता है : प्रवीण ऋषि

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  • महिला मंडल की बैठक में नवकार कलश अनुष्ठान की बनी रुपरेखा

रायपुर – संसार में केवल एक अवस्था होती है जब जीव के हाथों में कुछ नहीं होता है, दूसरे के हाथ में सबकुछ होता है। वह स्थिति तब आती है जब कोई इंद्रभूति गौतम जैसा व्यक्ति प्रभु के चरणों में समर्पण कर दे। परिवर्तन दूसरों के हाथों में तब जाता है जब हम समर्पण कर दें। उक्त बातें उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने महावीर गाथा के 60वें दिन कहीं। उन्होंने कहा कि एक समर्पण होता है श्रद्धा एक साथ, और एक होता है स्थिति के अनुसार। गर्भ का समर्पण स्थिति के कारण होता है। गर्भस्थ जीव को अवसर नहीं मिलता है। जहां माँ उसको जोड़ देगी, उसे जुड़ना पड़ेगा। एक माँ व्यक्ति के भाग्य को बदलने में समर्थ होती है। अतीत के सारे कर्ज समाप्त करने की शक्ति रखती है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी । लालगंगा पटवा भवन में गुरुवार को उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए प्रवीण ऋषि ने कहा कि 55 सागरोपम का नारकी का संस्कार, जहां सुख की कल्पना भी नहीं है, जहां जीवन यही सोचते हुए बीतता है कि मैं कैसे दूसरों को ज्यादा से ज्यादा दुःख दे सकता हूं। दुःख देने की प्रतिस्पर्धा चलती है। वहां शांति को जगाने का कोई सूत्र नहीं है। इस आदत से किसी जीव को बाहर निकालना प्रवचन से नहीं हो सकता है। यह तभी संभव है जब कोई माँ तीर्थंकर की ऊर्जा ग्रहण करे और अपने गर्भ में पल रहे जीव को इस ऊर्जा से जोड़ दे। रानी विमला के गर्भ में महावीर आये हैं। तभी से उसके अंदर हिंसा, क्रोध का ज्वार है। समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है। कलिंगा में अपने गुरु से उन्होंने पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? गुरुदेव ने कहा कि तुझे कोयले को हीरा बनाने का अवसर मिला है। तुझे किसी क्रूर को करुणा सागर बनाने का अवसर मिला है। तेरे गर्भ में जो जीव है उसे प्यार चाहिए। उस पर इतना प्यार बरसा की क्रोध दब जाए।

तीर्थंकर का जन्म हुआ, माँ ने एक लक्ष्य रखकर उसका नाम विमल रखा। विमल, अर्थात साफ़ और पारदर्शक। जब भी माँ उसे दूध पिलाती थी तो वह काटता था, लेकिन वह उसे पुचकारती थी, सहलाती थी। उसे गुदगुदाती थी, गुस्सा नहीं करती थी। उसके अंदर तनाव रहता था, गुस्सा आता था, और माता विमला उस तनाव-गुस्से को दूर करने का प्रयत्न करती थी। तनाव कम होता तो गुस्सा भी दूर हो जाता था। विमल जब बाल्यावस्था में पहुंचा तो अपने साथ खेलने वाले दोस्तों को मारने लगा। एक एक कर सारे दोस्त उससे दूर चले गए। वह दुखी रहने लगा। माँ ने कहा कि वे तेरे पास नहीं आएंगे, तुझे उनके पास जाना पड़ेगा। विमल बड़ा हुआ, गुस्से पर नियंत्रण हुआ था लेकिन छोड़ा नहीं था। विमल कुमार से वह विमल राजकुमार बन गया। अब युवराज बनने बनने वाला है। लेकिन राजन को चिंता थी, उसने रानी से कहा कि विमल के अंदर वात्सल्य, प्रेम नहीं है। उसे सबकुछ आता है, भावना नहीं है। राजा ने कहा कि जब तक किसी को दुखी नहीं करे इसे सुख नहीं मिलता, कैसे इसे राजा बना दूं? रानी ने कहा कि मैंने कल्पवृक्ष का बीज बोया है, अपनी मातृत्व के प्रेम से उसे सींचा है, यह बीज एक दिन कल्पवृक्ष का रूप अवश्य लेगा । एक दिन विमल अपने घोड़े पर सवार घूमने निकला। गांव-गांव घूम रहा है। वह जब जंगल से गुजर रहा था तो उसने देखा कि एक बहेलिया के जाल के बहुत सारे पक्षी फंसे हुए है और बाहर निकलने के लिए फड़फड़ा रहे हैं। उसने घोड़ा रोका, नीचे उतरा। उसे पक्षियों का क्रंदन सुनाई दे रहा था, उसे तड़पते हुए पक्षी दिखाई दे रहे थे। उसने म्यान से तलवार निकाली, और जाल को ओर बढ़ा। उसने धीरे से जाल की किनारी को काटा और पहले पक्षी को आजाद किया। पक्षी आसमान में उड़ा, और लौटकर विमल के कंधे पर बैठ गया। विमल एक-एक कर  के पक्षियों को आजाद करने लगा। और जैसे-जैसे वह जाल काटता गया, उसे एक सुखद अहसास होने लगा। विमल कुमार जाल काटते-काटते अपने पुराने पापों को भी काटता जा रहा था, पक्षियों को आजाद करने के साथ अपने कर्मों से भी आजाद हो रहा था। तभी बहेलिया दौड़ता हुआ आया, देखा जाल कटा हुआ है और सारे पक्षी गायब हैं। उसने विमल को देखा और चिल्लाया, कहा: तूने मेरा जाल काट दिया, सारे पक्षी उड़ा दिए! लेकिन विमल तो आकाश को ओर ताक रहा था। सारे पक्षी एक गोल घेरा बनाकर उसके इर्दगिर्द उड़ रहे थे। पहली बार विमल के चेहरे पर एक मुस्कान आई। उसने बहेलिये को ओर देखा और मुस्कुरा कर कहा तू भी आजा मेरे पास, और उस बहेलिये को पता भी नहीं चला कि कब वह विमल कुमार के पास आ गया। उसके अंदर का रोष गायब हो गया।

विमल वापस महल लौटने के लिए घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ा। सारे पक्षी उसके साथ उड़ रहे हैं। उसने चाबुक भी फेंक दिया, बिना चाबुक के घोड़े को दौड़ा रहा है। इधर महल में रानी विमला को एक अद्भुत अहसास हुआ, शरीर में एक कंपन हुई, रोम रोम पुलकित हो उठा। वह दौड़ी, राजा से कहा कि मेरा विमल युवराज आ रहा है। वह थाली सजाने लगती है, राजा को आश्चर्य होता है, वह रानी से कहता है कि हमारा बेटा तो रोज वापस आता है। लेकिन रानी कहती है कि आज मेरा अद्भुत बेटा आ रहा है। उसने अपनी सहेलियों को बुलाया, मंगल गीत गाने के लिए। विमल महल के सामने रुकता है, अपने घोड़े को पुचकारता है, यह देख सब आश्चर्य करते हैं। जो पहले घोड़े को चाबुक से मारता था, आज उसके हाथ में चाबुक नहीं है, और वह घोड़े को पुचकार रहा है। उसके इर्दगिर्द ढेर सारे पक्षी उड़ रहे हैं, कोई उसके कंधे पर बैठ रहा है, कोई सर पर, लेकिन उसे बड़ा आनंद मिल रहा है। विमल दौड़ता हुआ अपनी माँ के पास पहुंचता है, और कहता है कि न तो जीवन में किसी को दुःख दूंगा, और न ही दुखी रहने दूंगा। अपनी माँ के चरण पकड़कर वह सौगंध लेता है। विमल के सारे पाप छूट गए। रानी के कहा कि कलिंग का अगला राजा मिल गया । नकार कलश अनुष्ठान के लिए बैठक में हुई चर्चा धर्मसभा के बाद दोपहर 3 बजे उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि के सानिध्य में नवकार कलश अनुष्ठान की तैयारी के लिए महिला मंडल की बैठक बुलाई गई। बैठक की अध्यक्षता एकता पटवा ने की। इस बैठक में रायपुर के सभी मंडल उपस्थित थे। इस दौरान नवकार कलश अनुष्ठान को कैसे भव्य रूप दिया जाए, इस पर चर्चा हुई। एकता पटवा ने कहा कि हम सभी इस अनुष्ठान को बड़ा रूप देकर जिनशासन की शोभा बढ़ा सकते हैं। उन्होंने उपस्थित सदस्यों को नवकार कलश अनुष्ठान की विस्तृत जानकारी दी। वहीं प्रवीण ऋषि ने इस अनुष्ठान की महिमा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि हमारे पस कई नवकार कलश हैं, लेकिन इस कलश की महिमा अलग है। उन्होंने बताया कि यह नवकार कलश ख़ास है, उन्होंने महिलाओं को बताया कि कैसे यह नवकार कलश अभिमंत्रित होता है, और इसकी ऊर्जा को हम अनुष्ठान के पहले और बाद में परख सकते हैं।