जबलपुर
हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत का प्रतिपादन की। इसके अंतर्गत साफ किया कि साथ रहने के दौरान पुरुष द्वारा कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता।
ऐसे मामले में पत्नी की सहमति महत्वहीन हो जाती है। इस मत के साथ न्यायमूर्ति जीएस आहलूवालिया की एकलपीठ ने पत्नी द्वारा पति के विरुद्ध अप्राकृतिक यौन शोषण के मामले में दर्ज एफआईआर निरस्त कर दी।
अपने आदेश में किया स्पष्ट
हाई कोर्ट ने कहा कि यदि एक पत्नी वैध विवाह के दौरान अपने पति के साथ रह रही है, तो किसी पुरुष द्वारा अपनी ही पत्नी, जो पंद्रह वर्ष से कम उम्र की न हो, के साथ कोई भी यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं होगा। हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि कानून की इस स्थिति का एकमात्र अपवाद आईपीसी की धारा 376-बी है, जहां कानूनी रूप से अलग रहने या अन्य कारणों से अलग रहने दौरान अपनी ही पत्नी के साथ यौन कृत्य ज्यादती होगी।
जबलपुर निवासी मनीष साहू ने याचिका दायर कर बताया गया था कि उसकी पत्नी ने उसके विरुद्ध नरसिंहपुर में एफआईआर दर्ज कराई थी। बाद में यह एफआइआर जबलपुर के कोतवाली पुलिस थाने में भेज दी गई।
पत्नी ने एफआईआर दर्ज कर कहा कि शादी के बाद जब वह दूसरी बार अपने ससुराल गई तो छह जून, 2019 और सात जून, 2019 की दरमियानी रात को उसके पति ने उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। यह आरोप भी लगाया कि बाद में भी कई बार ये कृत्य किया गया। दलील दी गई कि चूंकि दोनों पति-पत्नी हैं और उनके बीच कोई भी अप्राकृतिक यौन संबंध आईपीसी की धारा 377 के अंतर्गत अपराध नहीं है।