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शराब घोटाले की जांच में कोर्ट ने नहीं मानी गड़बड़ी, बीजेपी बोली- नहीं बचेंगे लूटने वाले

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दुर्ग.

पिछले दिनों शराब घोटाले पर आए छ्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले ने कांग्रेस की तात्कालीन सरकार के घोटाले की कलई एक बार फिर खोल दी है। इस फैसले से बीजेपी की ओर से लगाए गए सभी आरोपों की एक बार फिर से पुष्टि हो गई है। उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में छह याचिकाएं ईडी के खिलाफ, जबकि सात याचिकाएं ईओडब्ल्यू व एसीबी के खिलाफ दायर की गई थीं। ये बातें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव ने बीजेपी कार्यालय डूमरतराई में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर कही।

उन्होंने कहा कि न्यायालय ने ईडी, एसीबी, ईओडब्लू आदि की जांच आदि के काम में किसी भी तरह की अनियमितता के तमाम आरोपों को ख़ारिज कर दिया है। इससे यह एक बार फिर साबित होता है कि कांग्रेस अपने अपराधों को छिपाने के लिए लगातार एजेंसियों पर हमलावर थी। ईओडब्ल्यू के दर्ज एफआईआर और विवेचना को चुनौती देते हुए अनिल टूटेजा, यश टूटेजा, अनवर ढेबर, अरुणपति त्रिपाठी, निरंजन दास, नीतेश पुरोहित आदि द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी। कुल 13 याचिकाओं में दो हजार करोड़ रुपये के शराब घोटाला मामले में ईडी की दोबारा की जा रही कार्रवाई और ईओडब्ल्यू व एसीबी की ओर से दर्ज एफआईआर को चुनौती देते हुए उन्हें ख़ारिज करने की मांग की गई थी, जिसे एक साथ खारिज करते हुए अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि एक संगठित अपराध की तरह इस घोटाले को अंजाम दिया जा रहा था। ऐसा लग रहा है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस रवींद्र अग्रवाल की डिवीज़न बेंच ने अपने आदेश दिनांक 20 अगस्त 2024 द्वारा आरोपियों द्वारा दायर सभी याचिकाओं को ख़ारिज कर यह टिप्पणी की गई है कि संबंधित एफआईआर के अवलोकन से यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई भी प्रथम दृष्टया अपराध का खुलासा नहीं किया गया है।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री से पता चलता है कि अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं की ओर से किए गए अपराधों की प्रकृति से राज्य के खजाने को भारी वित्तीय नुकसान हुआ है और अपराध की अनुमानित आय लगभग 2 हजार 161 करोड़ है। इस पूरे मामले की विस्तार चर्चा करते हुए कहा कि एफआईआर के अनुसार आबकारी विभाग की मुख्य जिम्मेदारियां शराब की आपूर्ति को विनियमित करना, जहरीली शराब की त्रासदियों को रोकने के लिए उपयोगकर्ताओं को गुणवत्तापूर्ण शराब सुनिश्चित करना और राज्य के लिए राजस्व अर्जित करना है, लेकिन अनवर ढेबर और अनिल टुटेजा के नेतृत्व वाले आपराधिक सिंडिकेट ने इन उद्देश्यों पर पानी फेर दिया है। ढेबर और टुटेजा ने शराब नीति को अपनी सनक और पसंद के अनुसार व्यवस्थित रूप से बदल दिया है और अपने लिए अधिकतम व्यक्तिगत लाभ उठाया है। कांग्रेस शासनकाल में सीएसएमसीएल का प्रबंधन बदल गया और यह सिंडिकेट के हाथों में एक उपकरण बन गया, जिसने इसका इस्तेमाल समानांतर व्यवस्था को लागू करने के लिए किया। इस सिंडिकेट में राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह, राजनेता, उनके सहयोगी और उत्पाद शुल्क विभाग के अधिकारी शामिल हैं। ट
किरण देव ने कहा कि कि फरवरी 2019 में, अरुणपति त्रिपाठी (आईटीएस अधिकारी) को सीएसएमसीएल का नेतृत्व करने के लिए सिंडिकेट द्वारा चुना गया था और बाद में, मई, 2019 में, अनवर ढेबर के आदेश पर उन्हें संगठन का प्रबंध निदेशक बनाया गया था। साजिश के हिस्से के रूप में, अरुणपति त्रिपाठी को मेसर्स सीएसएमसीएल द्वारा खरीदी गई शराब पर एकत्रित रिश्वत कमीशन को अधिकतम करने और सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से गैर-शुल्क भुगतान वाली शराब की बिक्री के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का काम सौंपा गया था। ईओडब्ल्यू की जांच के दौरान पता चला कि प्रदेश में एक आपराधिक सिंडिकेट काम कर रहा था जो शराब की बिक्री में अवैध कमीशन वसूल रहा था और सरकारी शराब की दुकानों के माध्यम से बेहिसाब शराब की अनधिकृत बिक्री में भी शामिल था। अनुमान है कि संदिग्धों द्वारा लगभग 2,161 करोड़ रुपये की अपराध आय अर्जित की गई है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उच्च न्यायालय ने माना है कि एफआईआर में नौकरशाहों, राजनेताओं, व्यापारियों और अन्य व्यक्तियों सहित 70 नामित व्यक्ति हैं और वर्तमान में यह एक संगठित अपराध का मामला है, जिसे जांच एजेंसियों की ओर से तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की जरूरत है। राज्य पुलिस प्रतिवादी राज्य/एसीबी ईओडब्ल्यू या ईडी की कोई भी कार्रवाई पीएमएलए के किसी भी प्रावधान के उल्लंघन या सुप्रीम कोर्ट से पारित किसी भी आदेश का उल्लंघन नहीं पाया गया है। न्यायालय ने साफ-साफ यह कहा है कि ईडी, ईओडबलू और एसीबी ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र के अनुसार ही इस पर अलग-अलग कार्रवाइयां की है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि सवाल केवल शराब घोटाले का ही नहीं है। इसी तरह कोयला घोटाले से लेकर हाल के बलौदाबाजर उपद्रव तक, जिसमें आरोपी कांग्रेस विधायक की जमानत याचिका भी खारिज करते हुए देवेंद्र यादव को सात दिन के न्यायिक रिमांड पर भेज दिया गया है। इससे पहले तात्कालीन मुख्यमंत्री की करीबी अफ़सर सौम्या चौरसिया पर तो सर्वोच्च अदालत ने ज़मानत मांगने पर उल्टे एक लाख रुपया का जुर्माना भी लगा दिया था। यह साबित करने के लिए इससे अधिक पुख़्ता और क्या-क्या साक्ष्य चाहिए कि कांग्रेस की तात्कालीन सरकार ने अपने सिपहसालरों के माध्यम से जमकर न केवल छत्तीसगढ़ को लूटा बल्कि पूरी कांग्रेस सरकार एक अंडरवर्ल्ड और माफिया जैसा चल रही थी।
दुर्ग सांसद विजय बघेल ने आरोप लगाते हुए कहा कि एक मोटे आकलन के अनुसार पचास हज़ार करोड़ से अधिक का घोटाला अपने पांच सालों के शासन में कांग्रेस ने किया। इसके सरग़ना निस्संदेह पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल थे, जिन्हें एजेंसियों ने ’पोलिटिकल मास्टर’ कहा है। प्रदेश की जनता के संसाधनों को लूट कर 10, जनपथ का एटीएम बनाने की सजा कांग्रेस को अवश्य मिलेगी। कोई भी हथकंडा कांग्रेसी अपराधियों को बचा नहीं सकती है। कांग्रेस लाख अराजकता फैलाने की साजिशें रच ले, लेकिन कानून के हाथ इनके गिरेबां तक पहुंचे बिना नहीं रहेंगे। पत्रकार वार्ता में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी, प्रदेश महामंत्री भारत लाल वर्मा, भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी अमित चिमनानी, प्रदेश मीडिया सह प्रभारी अनुराग अग्रवाल मौजूद रहे।