Home छत्तीसगढ़ आंदोलन पर आंदोलन फिर भी राहत नहीं

आंदोलन पर आंदोलन फिर भी राहत नहीं

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भोपाल । पिछले 11 साल में न्यूनतम पेंशन में बढ़ोतरी को लेकर 25 बड़े आंदोलन के बाद भी सरकार की तरफ से पेंशनरों की मांग पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इसका खामियाजा 2 पेंशनरों को उठाना पड़ रहा है। मप्र में 4 लाख पेंशनरों में से 2 लाख को 1000 से कम तो 75000 लोगों को 2000 से कम पेंशन मिल रही है। इसे लेकर निजी क्षेत्र के कर्मचारी सरकार से अपनी पेंशन संबंधी चिंताओं को दूर करने का लगातार आग्रह कर रहे हैं लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हुआ।
एक तरफ प्रदेश के साढ़े चार लाख पेंशनरों को अब महंगाई राहत मिलने का रास्ता साफ हो गया है। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपने पेंशनरों को 50 प्रतिशत महंगाई राहत देने का निर्णय करने के बाद मप्र ने भी इस पर सहमति जताई है। अब जल्द ही आदेश जारी होने की संभावना है। प्रदेश सरकार ने अपने पेंशनरों के लिए महंगाई राहत पर सहमति जता दी है, जिससे अब प्रदेश के साढ़े चार लाख पेंशनरों को महंगाई से राहत मिल सकेगी। इस फैसले के अनुसार सातवें वेतनमान में महंगाई राहत को 50 प्रतिशत और छठवें वेतनमान में 239 प्रतिशत तक बढ़ाने का निर्णय है।

11 साल से पेंशन राशि में वृद्धि नहीं
इन सबके बीच निजी कंपनियों, कारखानों, उपक्रमों आदि में काम करने वाले लोगों की पेंशन से जुड़ी परेशानी बिलकुल अलग है। मप्र में 4 लाख पेंशनरों में से 2 लाख को 1000 से कम तो 75000 लोगों को 2000 से कम पेंशन मिल रही है। इसका बड़ा कारण 11 साल से पेंशन राशि में वृद्धि नहीं होना है। वहीं, देश में पिछले सालों में ओल्ड पेंशन की बहाली को लेकर आंदोलन हुए। न्यू पेंशन स्कीम का पुरजोर विरोध भी जारी है। यह नए और पुराने सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन है। अब केंद्र सरकार ने एक और नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इन सबके बीच निजी कंपनियों, कारखानों, उपक्रमों आदि में काम करने वाले लोगों की पेंशन से जुड़ी परेशानी बिलकुल अलग है। वजह यह है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के दायरे में आने वाले रिटायर कर्मचारियों की न्यूनतम पेंशन में 11 साल से इजाफा नहीं हुआ। मप्र में ही ईपीएफओ के चार लाख से ज्यादा पेंशनर्स हैं। इनमें से 50 प्रतिशत यानी 2 लाख लोगों को 1000 से भी कम पेंशन मिल रही है। ईपीएफओ के ताजा वार्षिक लेखा (बुक्स अकाउंट) में चौंकाने वाले यह आंकड़े सामने आए हैं। ईपीएफ मामलों के जानकार चंद्रशेखर परसाई बताते हैं कि न्यूनतम पेंशन 3000 करने का मामला पिछले 11 साल से राज्यसभा में लंबित है। 2013 में संसद में न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग के बाद यूपीए सरकार ने तत्कालीन सांसद भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने न्यूनतम पेंशन 3000 करने की सिफारिश की थी। तब से इस सिफारिश पर अमल ही नहीं किया गया।

न्यूनतम पेंशन में 11 साल से इजाफा नहीं
देश के सबसे बड़े संगठन ईपीएस रिटायर्ड एम्पलाइज नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भीमराव डोंगरे बताते हैं कि न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की मांग को लेकर 11 साल में 25 बड़े आंदोलन किए गए। इसके बावजूद कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। आज भी मप्र में दो लाख लोगों को 1000 रुपए से भी कम पेंशन मिल रही है। भीमराव डोंगरे के मुताबिक देश में 36 लाख 48 हजार 414 रिटायर लोगों को 1000 से भी कम पेंशन मिल रही है। 11 लाख 73 हजार 158 लोगों को 1000 से 1500 रुपए के बीच पेंशन मिल रही है। 8 लाख 68 हजार 443 लोगों को 2000 से कम पेंशन मिल रही है। इस संदर्भ में रीजनल कमिश्नर-1 ईपीएफ अमिताभ प्रकाश का कहना है कि इसके कुछ मापदंड हैं। 50 वर्ष तक की आयु पूरी होने पर पेंशन ले सकते हैं। वीआरएस या अन्य परिस्थिति में 58 वर्ष की आयु के पूर्व पेंशन लेने पर नियम अनुसार 3 प्रतिशत कम हो जाती है। न्यूनतम पेंशन को लेकर सरकार ही कोई निर्णय लेगी।