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देश में जलवायु परिवर्तन का बढ़ा असर, 3,000 से ज्यादा मौतें और 2 लाख से अधिक घरों का नुकसान

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जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम मौसमी घटनाएं जनजीवन पर बुरा असर डाल रही हैं। हालत यह है कि मौजूदा वर्ष के पहले नौ महीनों में 93 प्रतिशत यानी 274 दिनों में से 255 में गर्मी और ठंडी हवाओं, चक्रवात, बिजली, भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन का सामना करना पड़ा।

इन घटनाओं के कारण 3,238 लोगों की जान चली गई, 32 लाख हेक्टेयर फसलें प्रभावित हुईं। 2,35,862 घर और इमारतें नष्ट हुईं, जबकि करीब 9,457 पशु मारे गए।सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में यह भयावह तस्वीर सामने आई है।

भारत का नौवां सबसे सूखा महीना था
'स्टेट ऑफ एक्सट्रीम वेदर रिपोर्ट के मुताबिक, चरम मौसमी घटनाओं ने 2022 व 2023 की तुलना में 2024 में ज्यादा गंभीर असर डाला है। 2024 ने कई जलवायु रिकार्ड भी बनाए। वर्ष 1901 के बाद से जनवरी, भारत का नौवां सबसे सूखा महीना था। फरवरी में देश ने 123 सालों में अपना दूसरा सबसे अधिक न्यूनतम तापमान दर्ज किया। मई में चौथा उच्चतम औसत तापमान रिकार्ड किया गया और जुलाई, अगस्त व सितंबर सभी ने वर्ष 1901 के बाद से अपना उच्चतम न्यूनतम तापमान दर्ज किया।

सुनीता नारायण ने कहा, 'पहले जो घटनाएं सदी में एक बार होती थीं, वे अब हर पांच साल या उससे भी कम समय में हो रही हैं। बताया कि पिछले नौ महीनों में बिजली गिरने व तूफान से लेकर 32 राज्यों तक हर तरह की घटनाएं देखी गई हैं और इसके परिणामस्वरूप लगातार हुई मानसूनी वर्षा, जिसके कारण विभिन्न क्षेत्रों में आई बाढ़ में 1,021 लोगों की मौत हुई।

असम में 122 दिनों में भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन हुआ
केवल असम में 122 दिनों में भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन हुआ, जिससे राज्य के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए और समुदाय तबाह हो गए। पूरे देश में बाढ़ के कारण 1,376 लोगों की जान चली गई। मध्य प्रदेश में हर दूसरे दिन चरम मौसम का अनुभव किया गया, जो देश में सबसे अधिक है। केरल में सबसे अधिक 550 मौतें दर्ज हुईं, इसके बाद मध्य प्रदेश (353) और असम (256) का स्थान रहा।

मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक 1,001 मौतें हुईं
आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक घर बर्बाद हुए (85,806), जबकि महाराष्ट्र जहां 142 दिनों में चरम मौसमी घटनाएं देखी गईं, वहां देश भर में प्रभावित फसल क्षेत्र का 60 प्रतिशत से अधिक क्षतिग्रस्त हुआ, इसके बाद मध्य प्रदेश (25,170 हेक्टेयर) का स्थान रहा। मध्य क्षेत्र में सबसे अधिक 1,001 मौतें हुईं।