दिल्ली: पूरी दुनिया में 15 नवंबर को सिखों के पहले धर्मगुरु श्री गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव पर 555वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है. गुरु नानक देव जी की लीलाएं भारत के कई राज्यों में अलग-अलग जगहों पर देखी जा सकती हैं. उनके जीवन में वह जहां-जहां गए हैं वह स्थान आज भी सिख धर्म के अनुयायियों के लिए धार्मिक महत्व रखते हैं. दिल्ली का मजनूं का टीला भी उनमें से एक जगह है. दिल्ली में सफर करते वक्त कभी तो आपके भी मन में ये सवाल आया होगा कि इस जगह का नाम इतना अनोखा क्यों है? इस अनोखे नाम के पीछे भी श्री गुरु नानक देव ही हैं.
1505 में गुरु नानक और अब्दुल्लाह की मुलाकात
यह बात 1505 की है, जब गुरु नानक देव जी दिल्ली आए थे. उस वक्त उनकी मुलाकात इस जगह पर रहने वाले अब्दुल्लाह से हुई थी. अब्दुल्लाह एक ईरानी सूफी फकीर था. जो कि रात दिन अपने परवरदिगार की यादों में खोया रहता था. वह इस इलाके में बने एक टीले पर रहता था. अब्दुल्लाह परमात्मा के नाम पर लोगों को यमुना नदी मुफ्त में पार कराने का काम करता था. गुरुनानक देव जी दिल्ली में जब अब्दुल्लाह से मिले थे तो उसकी सेवा भाव देखकर वह बहुत खुश हुए थे.
गुरु नानक देव जी ने दी थी इस जगह को यह पहचान
ईरानी सूफी फकीर अब्दुल्लाह को उस जमाने में लोग मजनूं कहकर बुलाते थे. उसका नाम मजनूं इसलिए पड़ गया था क्योंकि वह अपने ईश्वर में दिन रात खोया रहता था. उस वक्त मजनूं उसी को कहा जाता था जो कि किसी की याद में दिन रात खोया रहे. इसलिए गुरुनानक देव जी ने उस वक्त यह इस जगह का नाम मजनूं का टीला रखा था. उन्होंने यह भी कहा था कि जब तक यह धरती रहेगी इस जगह को मजनूं का टीला नाम से ही जाना जाएगा.
मजनूं का टीला पर बने गुरुद्वारे का इतिहास
1783 में यहां पर सिख सैन्य नेता बघेल सिंह धालीवाल 40 हजार सैनिकों को लेकर यहां पहुंचे थे. उन्होंने लाल किले में प्रवेश किया और दीवान ए आम पर कब्जा कर लिया. उस वक्त मुगल शासक शाह आलम द्वितीय ने बघेल सिंह के साथ मिलकर एक समझौता किया था. इसके बाद बघेल सिंह ने अपने सैनिकों को वहीं पर रोक दिया और दिल्ली में सात जगहों को चिह्नित किया गया जहां पर सिख धर्म से जुड़ी आस्था थी. इसी दौरान 1980 में मजनूं का टीला पर गुरुद्वारा बनवाया गया था. इस गुरुद्वारे का नाम भी गुरु नानक देव जी के आदेश के अनुसार मजनूं का टीला रखा गया.