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शपथ से पहले ही ट्रंप ने ईरान के लिए तैयार किया विशेष योजना, खामनेई होंगे घुटनों पर…

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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ईरान को चौतरफा घेरने का प्लान बना चुके हैं।

ट्रंप की टीम द्वारा तैयार किया गया यह प्लान अगर सही तरीके से लागू हो जाता है तो अकेले दम पर हिजबुल्लाह, हूती और हमास जैसे प्रॉक्सी गुटों की मदद करने वाला और सालों से परमाणु प्रोग्राम चला रहा ईरान दिवालिया हो जाएगा।

फाइनेंशियल टाइम्स ने ट्रंप की टीम के करीबी सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि आगामी ट्रंप प्रशासन ईरान के खिलाफ अत्याधिक दवाब वाली रणनीति को लागू करने का विचार कर रहा है।

इस रणनीति का प्रमुख लक्ष्य आर्थिक रूप से स्थिर तेहरान की कमर तोड़ना होगा, जिससे वह अपने आतंकी मंसूबों वाले प्रॉक्सी गुटों की मदद करने में कामयाब न हो पाए।

सूत्रों के अनुसार ट्रंप प्रशासन विशेष रूप से ईरान के तेल निर्यात पर और भी ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है, जिससे उसका एक महत्वपूर्ण रेवेन्यू कम हो जाएगा।

ट्रंप 1.0 से भी ज्यादा होगा ईरान पर दवाब

अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी के मुताबिक वर्तमान में ईरान करीब 1.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन के हिसाब से क्रूड ऑयल का निर्यात करता है, जबकि 2020 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान ईरान केवल 0.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन के हिसाब से ही क्रूड ऑयल का निर्यात कर पाता था। ट्रंप प्रशासन ईरान की इसी ताकत के ऊपर प्रहार करके उसे रोकना चाहते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार ट्रंप प्रशासन अगर सही ढंग से इन प्रतिबंधों को ईरान पर लागू करने में कामयाब रहता है तो यह ईरान की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति के सलाहकार बॉब मैकनेली ने भी इस बात पर सहमति जताई थी कि ईरान के मौजूदा तेल निर्यात को अगर एक हद तक रोक दिया जाए तो इससे ईरान, ट्रंप के पहले कार्यकाल की तुलना में कहीं अधिक खराब स्थिति में पहुंच जाएगा।

ट्रंप अपने प्रचार अभियान के दौरान भी इस बात को कई बार कह चुके हैं कि हमें ईरान को रोकना होगा। इजरायल पर हुए हमले के बाद अमेरिका और अन्य देशों के बार-बार कहने के बाद भी ईरान ने हमास और हिज्बुल्लाह की मदद करनी जारी रखी थी।

उसने इनका सपोर्ट करने के लिए इजरायल पर सीधा हमला भी किया था।

आतंकियों की मदद करने से रोकना है लक्ष्य

रिपोर्ट के मुताबिक, आगामी ट्रंप प्रशासन की इस नई रणनीति का लक्ष्य ईरान को परमाणु समझौते के लिए बातचीत की मेज पर वापस लाना है।

ट्रंप अपने अनुसार ईरान को परमाणु शर्तों पर राजी करने की चाहत रखते हैं और अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर ईरान को वित्तीय रूप से काफी बुरे परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

हालांकि इस मामले के जानकार लोगों का मानना है कि ट्रंप जिन शर्तों पर ईरान से परमाणु समझौता करना चाहते हैं तेहरान उनके लिए कभी भी राजी नहीं होगा।

ईरान का दवाब में बातचीत से इनकार

आगामी ट्रंप प्रशासन भले ही ईरान को को घुटनों पर लाने की योजना पर काम कर रहा हो लेकिन ईरान पहले ही दवाब में आकर बातचीत या किसी समझौते की संभावना से इनकार कर चुका है।

कुछ दिन पहले ही एक्स पर किए अपने पोस्ट में ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने चेतावनी देते हुए कहा था कि आगामी ट्रंप प्रशासन अगर अधिकतम दवाब की अपनी नीति को दोहराता है तो उसे विफलता ही हाथ लगेगी, ट्रंप इसे अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी अपना चुके हैं, तब भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ था।

अराघाची ने इस बात पर जोर दिया कि ईरान अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार है लेकिन इसकी सबसे बड़ी शर्त यही है कि बातचीत उचित शर्तों और आपसी सम्मान के साथ की जाए।

कुछ महीने पहले ही सत्ता में आए ईरान के नए राष्ट्रपति पजशिकयान ने भी अमेरिका के साथ बातचीत को लेकर अपनी इच्छा जताई है।

उनकी तरफ से कहा गया है कि देश की खराब अर्थव्यवस्था को सही ढर्रे पर लाने और प्रतिबंधों से राहत पाने के लिए वह परमाणु समझौते पर अमेरिका से बातचीत करने के लिए तैयार हैं लेकिन यह बातचीत बिना किसी दवाब के होनी चाहिए।

समझौते की मुश्किल है राह

विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही दोनों पक्षों के बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन फिर भी किसी तरह की बातचीत की संभावना कम ही है।

कार्नेगी एडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के वरिष्ठ अधिकारी करीम सदजादपुर ने इस मामले पर कहा की ट्रंप के सत्ता में वापस आने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या खामनेई उस व्यक्ति के साथ परमाणु और क्षेत्रीय समझौता करने के लिए तैयार होंगे जिसने उनके प्रिय कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी परमाणु और क्षेत्रीय समझौते की कल्पना करना कठिन है जो इजरायल के प्रधानमंत्री और ईरान के सर्वोच्च नेता दोनों को स्वीकार हो।

आपको बता दें कि जनवरी 2020 में ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान ही ट्रंप प्रशासन ने शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या का आदेश जारी किया था। जिन्हें रॉकेट द्वारा हमला करके मार दिया गया था।

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