Home छत्तीसगढ़ 8वें वेतन आयोग के गठन से मप्र के कर्मचारी खुश

8वें वेतन आयोग के गठन से मप्र के कर्मचारी खुश

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भोपाल । भारत सरकार ने बहुप्रतीक्षित 8वें वेतन आयोग का गठन कर दिया है, जो बाजार के वर्तमान हालात को देखते हुए केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि (न्यूनतम और अधिकतम वेतन) की अनुशंसा करेगा। आयोग के गठन से मध्य प्रदेश के कर्मचारी भी प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं। दरअसल, केंद्रीय कर्मचारियों की वेतनवृद्धि के बाद राज्य के कर्मचारियों की भी वेतनवृद्धि होगी। बता दें कि केंद्र सरकार प्रत्येक 10 साल में नया वेतन आयोग लाती है। कर्मचारियों को वर्तमान में 7वें वेतनमान का लाभ मिल रहा है। जिसका कार्यकाल 31 दिसंबर 2025 को समाप्त हो जाएगा। आठवां वेतनमान जनवरी 2026 से लागू होना है।
बताया जा रहा है कि 8वां वेतन आयोग 1.92 के फिटमेंट फैक्टर का इस्तेमाल करके वेतन मैट्रिक्स तैयार करेगा। यानी 1800 रुपए ग्रेड पे के साथ 18000 रुपए सैलरी लेने वाले केंद्रीय कर्मचारी की सैलरी 8वें वेतन आयोग की अनुशंसा के बाद 34,560 रुपए हो जाएगी। वहीं कैबिनेट सचिव स्तर के ऐसे अधिकारी जिन्हें अधिकतम 2.5 लाख रुपए की बेसिक सैलरी मिलती है, जो बढक़र तकरीबन 4.8 लाख रुपए हो सकती है। इससे राज्य के कर्मचारियों की सैलरी में भी अच्छा उछाल आने की उम्मीद है। मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक कहते हैं कि केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि के बाद राज्य के कर्मचारियों द्वारा केंद्र के समान वेतन मांगने की परंपरा रही है। उसी का पालन अब भी किया जाएगा। राज्य सरकार वेतन आयोग की कुछ अनुशंसाएं लागू करती है, तो कुछ नहीं भी करती है।

आजादी के पहले गठित हुआ था पहला वेतन आयोग
भारत में पहला वेतन आयोग आजादी के पहले 1946 में गठित हुआ था। जिसके अध्यक्ष श्री निवास वरदाचार्य थे। इसके बाद साल 1957, 1970, 1983, 1994, 2006 एवं 2013 में केंद्रीय वेतन आयोग गठित होते रहे हैं। 2013 में जस्टिस अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षता में 7वां वेतन आयोग गठित हुआ था, जिसकी अनुशंसाएं 1 जनवरी 2016 से लागू हुईं और वर्तमान में प्रभावशील हैं। 8वां वेतनमान 1 जनवरी 2026 से लागू होना है। उल्लेखनीय है कि बाजार को देखते हुए केंद्र सरकार हर 10 साल में कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करती है। केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाएं केवल केंद्रीय कर्मचारियों के लिए होती हैं, पर राज्यों के कर्मचारी संघर्ष कर वेतनमान सहित कुछ अनुशंसाएं अपने लिए लागू कराने में सफल होते आए हैं। मध्य प्रदेश के कर्मचारी 1989 में पहली बार केंद्रीय वेतनमान लेने में सफल हुए थे, जिसको 1986 से नोशनली लागू माना गया था। तभी से यहां के कर्मचारियों को केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसाओं का लाभ मिलता आ रहा है।

आयोगों ने ऐसे दी कर्मचारियों को राहत
पहले और दूसरे वेतन आयोग जीवन निर्वाह लायक वेतन सुनिश्चित करने का विचार लेकर चले। तीसरे और चौथे वेतन आयोग ने आकर्षक वेतन देने का विचार अपनाया, ताकि योग्य व्यक्ति शासकीय सेवा में आएं। पांचवें वेतन आयोग का सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम करने पर फोकस था। उसने अमले में 30 प्रतिशत कटौती की अनुशंसा की थी। छठे वेतन आयोग ने वेतनमानों की अस्पष्टता और संख्या कम करने पर जोर दिया। सातवें वेतन आयोग ने पे बैंड और ग्रेड वेतन की अवधारणा लागू की। यह भी अनुशंसा की कि जब भी महंगाई भत्ता मूल वेतन का 50 प्रतिशत हो जाए तो उसे मूल वेतन में मर्ज कर दिया जाए।

ये रहे फिटमेंट फैक्टर
केंद्रीय वेतन आयोग सबसे पहले न्यूनतम वेतन (भृत्य) और अधिकतम वेतन (कैबिनेट सेक्रेटरी) को निर्धारित करता है। इनके बीच अन्य वेतनमानों की संरचना होती है। पहले आयोग ने न्यूनतम वेतन 55 रुपए और अधिकतम 2000 रुपए तय किया था। 7वें वेतन आयोग ने न्यूनतम 18000 रुपए और अधिकतम 2,50000 रुपए तय किया। पहले आयोग के समय न्यूनतम अधिकतम का अनुपात 1:40 था, जो सातवें वेतन आयोग में घटकर 1:14 हो गया। कर्मचारी और श्रम संगठन इस अनुपात को 1:40 पर लाने की मांग उठाते आए हैं।