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दल बदल का खेल,22 उम्मीदवार अलग-अलग पार्टियों से टिकट पाकर चुनावी अखाड़े में।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में सियासी पाला बदलने का सिलसिला ऐसा चला कि जैसे ताश पत्ते फेट दिए गए हों. कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच जमकर दल बदल देखने को मिला है, जिसका नतीजा इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी दिख रहा. बीजेपी से लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस तीनों ही राजनीतिक दलों ने दलबदलू नेताओं पर दांव खेल रखा है, जबकि पिछले चुनाव में बहुत ज्यादा यह फॉर्मूला हिट नहीं रहा. इसके बावजूद तीनों ही पार्टियों ने कई सीटों पर अपने नेताओं की जगह दूसरे दल से आए नेताओं पर भरोसा जताया है.

पांच साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से नाता तोड़कर आने वाले नेताओं पर बीजेपी ने दांव खेला था. बीजेपी का अपने नेताओं को दरकिनार कर दलबदलुओं पर दांव लगाना बुरी तरह से फेल रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में दल बदल करने वाले 14 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी, जिसमें से सिर्फ 7 ही नेता विधानसभा पहुंच सके थे. आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले ही नेता जीते थे, जबकि बीजेपी से चुनाव लड़ने वालों को करारी मात खानी पड़ी थी. इसके बावजूद इस बार फिर से दलबदलू नेताओं को तीनों ही दलों ने उतारा है.

दिल्ली में किस दल से कितने दलबदलू?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों की फेहरिस्त देखें तो 22 कैंडिडेट ऐसे हैं, जो अपने दल को छोड़कर दूसरे दल का दामन थामकर उतरे हैं. बीजेपी ने इस बार सबसे अधिक दल बदलुओं पर भरोसा जताया है. बीजेपी ने ऐसे 9 उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो दूसरे दल से पार्टी में आए हैं. आम आदमी पार्टी ने भी इस बार दलबदलू नेताओं को उतारने का दांव चला है. अरविंद केजरीवाल ने आठ प्रत्याशी ऐसे दिए हैं, जो दूसरे दल से आए हैं. इस मामले में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही और पार्टी ने पांच दल बदल करने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाया है.

किस दलबदलू नेता की नैया होगी पार?
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से बीजेपी में आए हुए नेताओं में जिन्हें टिकट दिया है, उसमें सबसे बड़ा नाम पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत का है. बीजेपी ने गहलोत को बिजवासन सीट से उतारा है. इसी तरह राजकुमार आनंद को बीजेपी ने पटेल नगर सीट से प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस से आए अरविंदर सिंह लवली को बीजेपी ने गांधीनगर सीट से उम्मीदवार बनाया है, तो राजकुमार चौहान को मंगोलपुरी सीट से, नीरज बसोया को कस्तुबरा नगर, छतरपुर से करतार सिंह तंवर, ओखला से मनीष चौधरी, कोंडली से प्रियंका गौतम, बदरपुर से नारायण दत्त शर्मा को प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा बीजेपी ने पिछले चुनाव में दूसरे दलों से आए हुए नेताओं को एक फिर से मौका दिया है, जिसमें कपिल मिश्रा को करावल नगर सीट से प्रत्याशी बनाया है.

आम आदमी पार्टी ने कई सीटों पर अपने नेताओं को दरकिनार कर दूसरे दलों से आए हुए नेताओं पर दांव लगाया है. आम आदमी पार्टी ने शाहदरा सीट से जितेंद्र सिंह शंटी, छतरपुर से ब्रह्म सिंह तंवर, तिमारपुर से सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू, कस्तूरबा नगर से रमेश पहलवान, किराड़ी से अनिल झा, मटियाला से सुमेश शौकीन, महरौली से महेंद्र चौधरी और सीलमपुर सीट से चौधरी मतीन के बेटे जुबैर अहमद को प्रत्याशी बनाया है.

कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से आए हुए नेताओं को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है. बिजवासन सीट से देवेंद्र सहरावत को प्रत्याशी बनाया है, तो सीलमपुर से विधायक अब्दुल रहमान को टिकट दिया है. मुंडका से धर्मपाल लाकड़ा, किराड़ी से राजेश कुमार गुप्ता और बाबरपुर से हाजी मोहम्मद इशराक खान मैदान में हैं. इन नेताओं का पार्टी बदलना इस बार चुनावी दंगल को और दिलचस्प बना रहा है. इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी ने भी कई दलबदलू नेताओं को टिकट दिया. सीलमपुर सीट पर ताहिर हुसैन को उतारा है, जो आम आदमी पार्टी से पार्षद रह चुके हैं.

क्या दलबदलू बन पाएंगे विधायक?
2020 के विधानसभा चुनाव में 14 दलबदलू नेताओं ने किस्मत आजमाया था, जिसमें से सिर्फ सात ही विधायक बन सके थे. आम आदमी पार्टी का दामन थामकर चुनाव में उतरे सात में से छह प्रत्याशी ही चुनाव जीत सके थे. बीजेपी और कांग्रेस से उतरे छह प्रत्याशियों में कोई भी नहीं जीत सका. पिछले चुनाव में सबसे चर्चित चेहरों में कपिल मिश्रा और अलका लांबा का नाम शामिल था. अलका ने कांग्रेस से और कपिल मिश्रा बीजेपी से चुनाव लड़े थे, लेकिन दोनों ही हार गए थे. इसी तरह आदर्श शास्त्री द्वारका सीट पर किस्मत आजमाए थे, लेकिन जीत नही सके.

जिसके सत्ता में आने के उम्मीद नजर आई. 2020 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर जीत गए थे, जबकि कांग्रेस और बीजेपी के टिकट पर किस्मत आजमाने वालों को हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि, इस बार का चुनाव 2020 से काफी अलग है. आम आदमी पार्टी न ही 2020 वाली स्थिति में है और न ही कांग्रेस पहले की तरह कमजोर है. इस बार की चुनावी लड़ाई त्रिकोणीय बनती जा रही, जिस वजह से दलबदलू नेता अगर अपने सियासी समीकरण फिट बैठाने में कामयाब रहते हैं तो उनकी सियासी नैया पार लग सकती है.