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चिढ़ाते हैं कुपोषण के आंकड़े, बिहार नंबर-1, क्या कभी बदलेगी देश की तस्वीर?

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  • भारत में आज लगभग हर तीसरा बच्चा कुपोषित है
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसान बिहार में 48.3 फीसदी बच्चे कुपोषित
  • कुपोषण के मामले में भारत पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे

हर साल 1 से 7 सितंबर तक नेशनल न्‍यूट्रिशन वीक मनाया जाता है. जिसका मुख्‍य उद्देश्‍य कुपोषण को लेकर लोगों को जागरूक करना है. दरअसल, कुपोषण किसी भी देश या समाज के लिए मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या है. अगर भारत के संदर्भ में देखें तो तमाम कोशिशों के बावजूद आंकड़े सोचने के लिए मजबूर करते हैं.

कुपोषण बड़ी समस्या

केंद्र सरकार भारत को कुपोषण मुक्त करने के लिए तमाम कोशिशें कर रही हैं. सरकार ने राष्ट्रीय पोषण मिशन का नाम बदलकर ‘पोषण अभियान’ कर दिया है. महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य 2022 तक हासिल करने का नारा दिया है. लेकिन भारत में कुपोषण की इतनी बड़ी समस्या है कि इससे निपटना आसान नहीं है. आज लगभग हर तीसरा बच्चा कुपोषित है. क्योंकि स्टंटिंग और कुपोषण की शुरुआत बच्चे से नहीं बल्कि गर्भवती माता से होती है.

पश्चिम बंगाल में बढ़े कुपोषण के मामले

भारत में 5 साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चे 35 प्रतिशत हैं. इनमें भी बिहार और उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं. उसके बाद झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश का नंबर है. मध्य प्रदेश में 5 साल से छोटी उम्र के 42 फीसद बच्चे कुपोषित हैं तो बिहार में यह फीसद 48.3 है. पश्चिम बंगाल में कुपोषण के मामले तेजी से बढ़े हैं. 2005 के मुकाबले NFHS-4 सर्वे में करीब 4.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो कि एक चिंता का विषय है.

बिहार में सबसे ज्य़ादा कुपोषण के मामले

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-16) के मुताबिक कुपोषण के सबसे ज्यादा मामले बिहार में पाए गए. बिहार में 5 साल से कम उम्र के करीब 48.3 फीसदी बच्चे शरीरिक रूप से अविकसित (Stunted) थे, इसकी बड़ी वजह उचित पोषण आहार का नहीं मिलना है. WHO के मुताबिक बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं.

कुपोषण के सबसे ज्यादा मामले बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसान बिहार में 48.3 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 46.3 फीसदी, झारखंड में 45.3 फीसदी, मेघालय में 43.8 और मध्य प्रदेश में 42 फीसदी कुपोषित बच्चे हैं. जबकि में भारत में यह आंकड़ा 35.7 फीसद का है.

छत्तीसगढ़ में भी कुपोषण बड़ी समस्या

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 5 साल तक के 37 फीसदी से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं, आंकड़ों में यह संख्या करीब 5 लाख है. बिलासपुर जैसे शहरी क्षेत्र वाले जिले में सबसे ज्यादा करीब 35 हजार बच्चे कुपोषित हैं. दूसरे नंबर पर राजनांदगांव है, जहां करीब 33 हजार बच्चे कुपोषित हैं.

कुपोषण से लड़ने में पाक-बांग्लादेश से भारत पीछे

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार दुनिया के सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में रहते हैं. कुपोषण के मामले में हम अपने पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे हैं. ऐसा नहीं है कि कुपोषण के मामले में भारत में कोई प्रगति नहीं हुई है. 2005-06 में कुपोषण के शिकार लोगों (स्टंटेड) का 48 फीसद था, जो 2015-16 में घटकर 38.4 फीसद और 2018 में 31 फीसद रह गया है.

कुपोषण के कारण

पोषण की कमी और बीमारियां कुपोषण के सबसे प्रमुख कारण हैं. अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग जैसे एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियां कमजोर होना है.

बचाव के तरीके

6 महीने तक केवल मां का दूध उसके बाद से शिशुओं को पूरक आहार (दाल का पानी, डिब्बाबंद प्रोटीन) दिया जाना चाहिए.

10 साल में बदली है कुछ तस्वीर

गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों का अनुपात वर्ष 2005-06 के 48 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2015-16 में 38.4 प्रतिशत हो गया. इस अवधि में अल्प वजन के शिकार बच्चों का प्रतिशत 42.5 प्रतिशत से घटकर 35.7 प्रतिशत हो गया. साथ ही शिशुओं में रक्ताल्पता (एनीमिया) की स्थिति 69.5 प्रतिशत से घटकर 58.5 प्रतिशत रह गई. लेकिन इसे बड़ा बदलाव नहीं कहा जा सकता है.

गौरतलब है कि दिसंबर, 2017 में देश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई थी. कैबिनेट की बैठक में राष्ट्रीय पोषण मिशन की स्थापना को मंजूरी दी गई थी. इसका लक्ष्य कुपोषण को 2015-16 के 38.4 फीसदी से घटाकर 2022 में 25 फीसदी पर लाना है.