बस्तर संभाग अपनी पौराणिक, नैसर्गिक, पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है लेकिन इस भू- भाग में कई ऐसे अछूते दर्शनीय स्थल हैं जहां आज भी सैलानी पहुंच नहीं पाए हैं।
बस्तर संभाग में चित्रकोट, तीरथगढ़, फूलपाड़, तामड़ाघूमर आदि ऐसे जलप्रपात हैं जहां सैलानी सहजता से पहुंच जाते हैं परंतु नारायणपुर जिला के ओरछा ब्लाक अंतर्गत हांदावाड़ा जलप्रपात इस भू-भाग का सबसे बड़ा और ऊंचा जलप्रपात है।
अबूझमाड़ के मैदानों से बहकर आया एक नाला धाराडोंगरी में खूबसूरत नामक जलप्रपात बनाता है। इसे ही हांदावाड़ा जलप्रपात कहा जाता है। इस जलप्रपात की ऊंचाई करीब 300 फीट है। प्रपात के ठीक ऊपर कुश फूलों के मध्य एक और जलप्रपात है।
इस दोनों जलप्रपातों को देखकर लोगों में जेहन में बाहुबली फिल्म का विहंगम जलप्रपात वाला द्श्य उतर आता है। आकर्षक जलप्रपात की तस्वीरों को देखकर को कोई यह मानने को तैयार नहीं होता कि यह नजारा बस्तर का है।
छत्तीसगढ़ को सुरंगी नदी का उपहार है देवदरहा जलप्रपात
महासमुंद जिले के सरायपाली के पास देवदरहा जलप्रपात प्रकृति का अनुपम उपहार है। सुरंगी नदी जब छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर छोटी पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य बहती है, तो यहां एक 30 फुट का जलप्रपात बनाती है। कलकल करती बहती नदी, पहाड़ पर फैली हरियाली, ऊंचे-ऊंचे पत्थर और जलप्रपात के नीचे बने प्राकृतिक झील पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करती है। यही कारण है कि लोग इसे मिनी भेड़ाघाट कहते हैं। पहाड़ियों के नीचे जल प्रवाह को देखते ही रहने का मन करता है।
नदी किनारे पहाड़ पर शिवजी का मंदिर
यहां झील के आगे नदी किनारे पहाड़ पर भव्य मंदिर है, जहां पार्वती के साथ पंचमुखी महादेव स्थापित है। मंदिर को ओडिशा के पदमपुर के जमींदार नटवरसिंह बरिहा ने 1922 में बनवाया था। इसके बरामदे में संगमरमर का नंदी बैल स्थापित है, जिसका मुख मंदिर द्वार की ओर है।
मंदिर के दाहिनी ओर पगडंडी से होकर पहाड़ी के गहरी खाई के सम्मुख पहुंचा जा सकता है। जहां से नीचे देखने पर दिल दहल जाता है। पहाड़ी एक के ऊपर एक रखी हुई सी नजर आती है। बीच में जहां जलप्रपात का पानी गिरने से बड़ी झील बन गई है, जिसे देवदरहा कहा जाता है।
गहराई को क्षेत्रीय भाषा में दरहा (झील) कहते हैं। किवदंती है कि एक लकड़हारा दरहा के किनारे पहाड़ी पर लकड़ी काट रहा था। उसकी कुल्हाड़ी हाथ से छूटकर झील में गिर गई। वह दुखी होकर देवताओं को कोसने लगा। तब दरहा से देव प्रकट हुए।
उन्होंने लकड़हारा को पहले सोना फिर चांदी की कुल्हाड़ी देनी चाही। लेकिन वह लोभ न करते हुए अपनी ही कुल्हाड़ी लेने पर अड़ा रहा। तब देवता ने प्रसन्न होकर उसे उसकी कुल्हाड़ी के साथ सोने- चांदी की कुल्हाड़ी भी दे दी। तब से इसे देवदरहा के नाम से जाना-पहचाना जा रहा है। दरहा के आसपास पहाड़ियों में छोटी-छोटी गुफाएं हैं।
ऐसे पहुंचे
रायपुर से एनएच 53 पर बस से सरायपाली तक पहुंचा जा सकता है, जो 156 किलोमीटर है। वहां से देवदरहा तक निजी वाहन या टैक्सी से पदमपुर रोड पर ओडिशा के गुंचाडीह गांव जाना होगा। यहीं से बायीं दिशा में करीब तीन किमी दूर देवदरहा है।
सरायपाली से इसकी दूरी 21 किमी है। पर्यटकों के लिए सरायपाली में रात विश्राम की सुविधा है। घूमने के लिए लिए जून से लेकर मार्च तक समय उपयुक्त है। गर्मी में नदी में पानी नहीं बहता, हालांकि झील में पानी बारह माह रहता है।