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चीन से तनातनी के बीच समंदर में बढ़ेगी भारतीय नौसेना की ताकत, 6 नई पनडुब्बियों के निर्माण का रास्ता साफ

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हिंद महासागर में चीन से मिल रही चुनौतियों के बीच शुक्रवार को रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए 6 नई स्टेल्थ-पनडुब्बियों के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद की बैठक में स्ट्रैटेजिक-पार्टनरशिप मॉडल के तहत ‘प्रोजेक्ट-75 इंडिया’ (पी-75आई) को हरी झंडी मिल गई है. माना जा रहा है कि अब रक्षा मंत्रालय इस प्रोजेक्ट के तहत जल्द ही 6 ‘कन्वेंशनल’ सबमरीन के लिए आरएफपी जारी करेगी.

जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में डिफेंस एक्युजेशन कॉउंसिल (डीएसी) की महत्वपूर्ण बैठक हुई. बैठक मे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, तीनों सेना प्रमुख, रक्षा सचिव और रक्षा सचिव (प्रोडेक्शन) ने हिस्सा लिया. बैठक में नौसेना के लिए पी-75 आई प्रोजेक्ट के लिए रिक्यूसेट फॉर प्रपोजल (आरएफपी) जारी करने का निर्णय लिया गया.

क्योंकि इस प्रोजेक्ट को स्ट्रैटेजिक-पार्टनरशिप मॉडल के तहत पूरा किया जाएगा, ऐसे में रक्षा मंत्रालय स्वदेशी शिपयार्ड्स को ये आरएफपी जारी करेगी. ये स्वेदशी शिपयार्ड्स किसी विदेशी कंपनी के साथ ज्वाइंट वेंचर में ही इन छह कन्वेंशनल यानी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का देश में ही निर्माण करेंगी. जानकारी के मुताबिक, ये छह कनवेंशनल पनडुब्बियां जरूर हैं, लेकिन ये एआईपी यानी एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपेलशन सबमरीन है. इसका फायदा ये है कि इन्हें डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन की तरह बार-बार समंदर से बाहर निकलने की जरूरत नहीं होगी. यानी, एक तरह से ये स्टेल्थ-सबमरीन होंगी.

रक्षा मंत्रालय ने जिन पांच विदेशी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप में इन पनडुब्बियों को बनाने की मंजूरी दी है, उनमें रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट, फ्रांस की नेवल ग्रुप-डीसीएनएस, जर्मनी की थायसेनक्रूप, स्पेन की नोवंटिया और दक्षिण कोरिया की डेइवू कंपनी शामिल है.

हालांकि, रक्षा मंत्रालय की तरफ से ये जानकारी नहीं दी गई है कि आरएफपी के लिए किन स्वेदशी शिपायर्ड्स को आरएफपी जारी की जाएगी. लेकिन जो सूत्रों से जानकारी मिली है कि उसमें एक सरकारी शिपयार्ड है और एक प्राईवेट शामिल हैं. सरकारी शिपयार्ड है मुंबई स्थित मझगांव डॉकयार्ड और प्राईवेट है एलएंडटी. पूरे प्रोजेक्ट की कीमत करीब 43 हजार करोड़ रुपये है. आपको बता दें कि मझगांव डॉकायर्ड में फ्रांस की नेवल ग्रुप के साथ मिलकर छह स्कोर्पीन क्लास पनडुब्बियां का निर्माण किया जा रहा है. इन छह में से तीन पनडुब्बियों को बनाकर भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है. बाकी तीन का निर्माण-कार्य भी तेजी से चल रहा है.

हिंद महासागर में चीन के बढ़ती मौजूदगी के बीच भारतीय नौसेना को अपने जंगी बेड़े को बढ़ाने की एक बड़ी चुनौती है. चीनी नौसेना के पास इस समय 75-80 पनडुब्बियां हैं. हिंद महासागर में श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान और जिबूती में चीन अपने बंदरगाह और मिलिट्री-बेस तैयार कर रहा है जिसके कारण चीनी नौसेना के युद्धपोतों की मौजूदगी भी भारत की समुद्री-सीमाओं के पास बढ़ गई है. इसके अलावा पाकिस्तान के लिए भी चीन आठ (08) पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है.

जबकि, मौजूदा समय में भारतीय नौसेना के पास 17 पनडुब्बियां हैं, जिनमें 15 कनवेंशनल पनडुब्बी हैं और दो परमाणु पनडुब्बियां हैं. इनमें से एक परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी, आईएनएस चक्र है, जो भारत ने रूस से लीज़ पर ली है. एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय नौसेना को कम से कम 18 कनवेंशनल (किलर सबमरीन यानि एसएसके), 06 परमाणु संचालित पनडुब्बी (न्युक्लिर सबमरीन यानि एसएसएन) और कम से कम 04 परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियों ( न्युकिलर बैलेस्टिक मिसाइल सबमरीन यानि एसएसबीएन) की जरूरत है.