जतारा – हमें अपने जीवन से बहुत कुछ मिला है और हमें इस जीवन से बहुत कुछ प्राप्त करना है, जो मिला है वह सब पर्याप्त नहीं,जो हमें प्राप्त करना है वह हमारे लिए सबसे बड़ा उपहार है।यूं तो संसार में सभी जीव अपने पारंपरिक व्यवहार से जाने जाते हैं, कि मुझे जीवन में क्या प्राप्त करना है । परंतु जब तक पारंपरिक व्यवहार से हटकर पारमार्थिक व्यवहार जीवन मे नही आता तो हम उस वस्तु से वंचित रह जाते हैं जो जीवन में हमारे लिए आवश्यक है।जिसका पारंपरिक व्यवहार अच्छा नहीं है वह पारमार्थिक व्यवहार को स्वप्न में भी प्राप्त नहीं कर सकता पारंपरिक व्यवहार का अर्थ है परिवार मे हमारा कौनसा और कैसा स्थान है, यदि आप पुत्र है तो आपका अपने पिता के प्रति कैसा व्यवहार होना चाहिए आदरणियों के प्रति कैसा चिंतन-विचार होना चाहिए, माता-पिता का अपने संतान के प्रति कैसा व्यवहार, वचनालाप होना चाहिए, मन, वचन, काय की कैसी चेष्टायें होना चाहिए ।इन्ही बिन्दुओं पर विचार करके अपने प्रशस्त विचारों को क्रियान्वित करना ही पारंपरिक व्यवहार कहलाता है।
पारंपरिक व्यवहार दर्शनीय होना चाहिए
परिवार में माता-पिता अपनी संतान के आदर्श होते हैं यदि माता-पिता का आपसी व्यवहार प्रशस्त, दर्शनीय, सुंदर, शुभ है तो आपकी संतान आपसे प्रभावित होगी, आपका व्यवहार सभी के लिए अनुकरणीय होगा और यदि माता-पिता का परस्पर में व्यवहार दर्शनीय प्रशस्त नहीं है। माता-पिता का अधिक समय झगड़ों में व्यतीत हो तो आप ही विचार करे कि आपकी संतान पर आपकी क्या छाप पड़ेगी, कैसी मुहर लगेगी शरीर और कैसे आपके हस्ताक्षर होंगे ? अतः आपका आपसी व्यवहार दर्शनीय सुंदर है तो आपके बच्चों के जीवन में भी खुशहाली होगी और सम्पूर्ण परिवार हमेशा खुशियों से हरा-भरा रहेगा !
“आपका पारंपरिक व्यवहार दर्शनीय के साथ-साथ वास्तविक भी होना चाहिए नाटकीय नहीं । नाटकीय व्यावहारिक जीवन आपको सांत्वना तो दे सकता है परन्तु सच्या शुकून नही दे सकता। आपका वास्तविक व्यवहार ही अन्य लोगों को आपसे प्रभावित कराता है, दिखावटी या नाटकीय नहीं। जो इस पारंपरिक जीवन को वास्तविक रूप में दर्शनीय बनाता है यहीं इस जीवन का सार अर्थात पारमार्थिक निश्चय और पारमार्थिक व्यवहार को प्राप्त होता है । ऐसा मांगलिक सदुपदेश परम पूज्य श्रमणाचार्य विमर्श सागर जी महाराज ने धर्म सभा में दिया ।जतारा जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि संपूर्ण समाज द्वारा प्रतिदिन,आचार्य गुरुवर से चातुर्मास हेतु निवेदन किया जा रहा है ।चातुर्मास में जैन दिगंबर साधु एक ही स्थान पर रहकर धर्म ध्यान,साधना करते हुए वर्षा काल व्यतीत करते हैं । आचार्य संघ के सानिध्य में बह रही भक्ति की गंगा नित्य हो रहा भक्तामर महामंडल विधान।धर्म सभा में महेंद्र टानगा, सुनील बंसल, मुकेश जैन, सलिल जैन, राजेश माते, रचित भोपाली सहित बड़ी संख्या में साधर्मी उपस्थित रहे ।