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महिलाओं के लिए शीलचारित्र सबसे बड़ी धन संपदा व संपति है आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज

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रामगंजमंडी – आचार्य शिरोमणी वात्सल्य वारिघि श्री वर्धमान सागर जी 32 साधुओं सहित बीसा हूमड़ भवन विराजित होकर धर्म प्रभावना कर रहे हैं,सकल दिगंबर जैन समाज उदयपुर द्वारा आचार्य श्री के 34 वे आचार्य पदारोहण के अवसर पर 6 दिवसीय विनयांजलि सभा  में  मंगल प्रवचन में बताया कि आज महिला वर्ग का प्रशिक्षण कार्यक्रम हुआ है धर्म ,जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है ।जीवन का हर कार्य धर्म से जुड़ा है। परिवार के प्रति आपको यह भावना होना चाहिए, कि उनके अनुभव से हमारा जीवन संस्कारित होकर निर्माण होगा ।नई पीढ़ी में संस्कार का अभाव है पुराने लोगों पर उन्हें भरोसा यकीन नहीं है जबकि अनुभव संस्कार लौकिक पढ़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण है । गजू भैय्या पारस चितोड़ा राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री ने आगे बताया कि महिलाओं के लिए शील चारित्र सबसे बड़ा धन संपदा संपत्ति है ऐश्वर्य है आपको इसकी रक्षा करते हुए सज्जनों के साथ मित्रता रखना चाहिए। स्वाधीनता का आशय आत्मा के अधीन संयमित होकर रहना चाहिए ,यही जीवन के लिए मंगलकारी है। जिस प्रकार युद्ध के लिए सैनिक पूरी तैयारी करके जाते हैं, उसी प्रकार जीवन में आगे बढ़ने के लिए संस्कारों का कवच परिवार की सीख ,परिवार के आदर्श ,अनुभव मार्गदर्शन जरूरी है आचार्य श्री ने एक दृष्टांत के माध्यम से बताया कि मैना सुंदरी का विवाह उनके पिता ने एक कुष्ठ रोगी के  साथ उनका विवाह कर दिया किंतु मैना सुंदरी ने जैन धर्म पर श्रद्धान  को नहीं छोड़ा ,सिद्ध चक्र मंडल विधान किया श्री जी के गंधोधक से अपने कुष्ठ पति सहित अनेक कुष्ठ व्यक्तियों का रोग दूर किया। जैन धर्म की महिमा अपरंपार है । आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व  युवा आर्यिका श्री महायशमति माताजी  ने सारगर्भित प्रवचन में बताया कि शरीर की नाड़ी खराब होने से शरीर रोग ग्रस्त  पीड़ित होता है उसी प्रकार नारी खराब होने से परिवार खानदान समाज  पीड़ित बीमार होता है। नारी को सभ्यता संस्कृति नहीं भूलना चाहिए माताजी ने आचार्य श्री के गृहस्थ अवस्था के उदाहरण में बताया कि उन्होंने आईटीआई की पढ़ाई में हॉस्टल के अशुद्ध खानदान और नॉनवेज के कारण पढ़ाई छोड़ दी और वापस घर आए उन्होंने लौकिक पढ़ाई की तुलना में  धर्म संस्कार को प्राथमिकता दी ।माताजी ने बताया कि कायदे में रहोगे तो ,फायदे में रहोगे। माताजी ने  स शब्द की विवेचना में बताया इस समय स्वभाव, समाज, सोच ,और समर्पण इन सब की गहराई समझने की जरूरत है। पूज्य माताजी ने इसके लिए महत्वपूर्ण सूत्र में बताया कि इसके लिए आपके जीवन में आदत अच्छी होना चाहिए , आध्यात्मिक जीवन होना चाहिए ,इसके लिए आप को जल्दी उठना ,समय पर कार्य करना ,कम बोलना ,एकांत में स्वयं का चिंतन करना, रुपए का धन का महत्व सदुपयोग करने, पर्यावरण प्रकृति से जुड़ने, सात्विक भोजन करने ,बड़ों का सम्मान करने ,और हमेशा खुश रहने, धर्म से जोड़ने ,अच्छे मित्र बनाने ,अच्छी रूचि अनुसार कार्य करना ,और अच्छे इंसान बनने की प्रेरणा दी ।माताजी ने स्वयं की पहचान बनाने के लिए प्रेरित किया।माताजी ने स्वयं के उदाहरण से बताया कि वह 13 वर्ष की आयु में जूडो कराटे की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में अशुद्ध खाने के कारण फल दूध पर  निर्भर रही । सूत्रों के अनुसार उन्हे राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय सिल्वर मेडल मिला। आपने ब्लैक बैल्ट हासिल कर कालेज में छात्राऔ का प्रशिक्षण भी दिया। आप 20 वर्ष की उम्र में संघ में शामिल होकर मात्र 29 वर्ष की आयु में दीक्षा ली।

 शांतिलाल वेलावत,सुरेश पद्मावत  ने बताया कि आज के कार्यशाला के मास्टर ट्रेनर दीपक चित्तौड़ा नेम विस्तृत कार्यशाला में महिलाएं विशेषकर बच्चियों को संस्कारित सुरक्षित होने के लिए  महत्वपूर्ण टीम में बताया कि खुद को समझना पहचाना  जरूरी है ,कम्युनिकेशन संचार विचारों का आदान-प्रदान परिवार में नियमित होना चाहिए आत्मविश्वास के साथ स्वाभिमान भी जरूरी है  अच्छा सुनो ,अच्छा बोलो ,और अच्छा देखो। आत्मरक्षा जरूरी है इससे स्वयं की परिवार की धर्म की खानदान की रक्षा हो सकती है  । दोस्ती सोच समझकर करना चाहिए और समय की कीमत आपको आना चाहिए । प्रीति शाक्यवत विधायक वल्लभनगर मुख्य अतिथि ने बताया कि लक्ष्य पाने के लिए उम्र मायने नहीं रखती है ।आपने एकल परिवार के बजाय सामूहिक परिवार पर जोर दिया। बड़े परिवार से संस्कार ,सुरक्षा,सीख  शिक्षा मिलती है। सीख छोटे बड़े सभी से प्राप्त करना चाहिए  परिवेश महिलाओं के पहनावे से संस्कृति की रक्षा होती है ।माता पिता के टोकने में बेटी की सुरक्षा की भावना निहित होती है  दोस्ती नियत देख कर करना चाहिए माता-पिता दोस्त होते हैं दुश्मन नहीं आपने राजस्थान सरकार की योजना बता कर बताया कि 500 बच्चों को सरकार प्रतिवर्ष राजस्थान से विदेश उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए सरकार निशुल्क भेजती है इसके लिए पंजीयन कराना जरूरी है साथ ही यह भी कहा कि विदेश जाकर आपको परिवार देश के संस्कार को भूलना नहीं चाहिए  कार्यक्रम को शांतिलाल जी वेलावत  अध्यक्ष सकल जैन समाज ने भी संबोधित किया इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने भी महत्वपूर्ण सुझाव और मार्गदर्शन दिया।