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मात्र अर्घ चढ़ाने से नहीं होती अनर्घ पद की प्राप्ति, जब तक क्रोध न त्यागा जाए – भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

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रायपुर – इस संसार में जो प्राणी जन्म लेते हैं उनमें अधिकांश जीव ऐसे होते हैं जिन्हें चर्म की आँख तो प्राप्त होती है किन्तु उन्हें विवेक की आँख प्राप्त नहीं होती है। तीर्थंकर भगवान के समवशरण में चर्म की आँख के साथ-साथ धर्म की अर्थात विवेक की आँख के साथ भव्य प्राणी पहुँचा करते हैं। ऐसा मांगलिक सदुपदेश सिद्धचक्र महामण्डल विधान की आराधना के मध्य आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने दिया । आचार्य श्रीने आराधना के मध्य धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा- बन्धुओ ! हम सभी यहाँ बैठकर सिद्धचक्र विधान की आराधना कर रहे हैं।आप सबकी प्रफुल्लता- प्रसन्नता को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे- हम और आप, सभी सिद्धों के बगीचे में बैठे हैं और निरंतर सिद्ध भगवान के गुणों की सुगंध का अनुभव कर रहे हैं। बन्धुओ ! सिद्धों की आराधना करते हुए भी यदि आप ‘अनन्तानुबंधी क्रोध,मान,माया, एवं लोभ का विसर्जन (त्याग ) नहीं करते हैं तो आप आराधना में कितने भी अर्ध समर्पित करते रहें लेकिन आपको कभी भी अनर्ध पद की प्राप्ति नहीं हो सकती । यदि कोई धर्ममार्ग में क्रोध-रोष करता है तो वह व्यक्ति कभी भी धर्म कार्य करते हुए भी धर्म के फल को प्राप्त नहीं कर पाता है। जो प्रभु के सामने आता है किन्तु अभिमान से भरा हुआ है एवं दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करता है लेकिन ध्यान रखना देव-शास्त्र-गुरु को कभी कोई नीचा नहीं दिखा सकता है ये तो वो शक्तियाँ हैं जिनके सामने कोई भी क्यों न हो, हमेशा बौना ही रहता है। बन्धुओं ! देव-शास्त्र-गुरु के समक्ष जब भी आओ तो हमेशा अकिंचित्कर बनकर आना, और हमेशा नन्हे-नन्हे बालकों की तरह घुटनों पर चलकर आना । अभिमान को व्यागकर विनय के साथ जो भगवान के दर पर आता है वह कुछ नहीं सबकुछ पा जाता है।

मायाचार-कुटिल भावों के कारण व्यक्ति जिनेन्द्र भगवान की वाणी को छोड़कर अपनी बात को ही मनवाने का कुटिल प्रयास करता है। सच्चा धर्मात्मा जीव तो यह कहता है कि “जो जिनेन्द्र भगवान ने कहा है वही सही हैं”। लोभासक्ति के कारण व्यक्ति मंदिर के धन-द्रव्य का सेवन करने से भी नहीं चूकता किन्तु वास्तविक धर्मात्मा जीव जिनालय के द्रव्य का भोग स्वप्न में भी नहीं करता अपितु उदारमना होकर अपने धन को – पुण्य को समर्पित करता है। बन्धुओं! धर्म का फल यदि प्राप्त करना है। तो क्रोध-मान-माया -लोभ कषायों को त्याग करना ही होगा। पूज्य आचार्य गुरुवर ने सभी को आशीर्वाद देते हुए कहा – सिद्धों की आराधना में आप सबका आत्मा भी सिद्धों की तरह पावन – पवित्र और निर्मल बने यही मंगल शुभाशीष हैं जैन समाज जतारा उपाध्यक्ष एवं जैन समाज प्रवक्ता अशोक कुमार जैन ने बताया कि सिद्धचक्र महामंडल विधान में आज 256 महाअर्घ समर्पित किए गए ,श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान भोपाल से पधारे ब्रह्मचारी आशीष भैया पुण्यांश के कुशल निर्देशन में एवं मथुरा से पधारे संगीतकार सुनील जैन की स्वर लहरियों के मध्य पूर्ण भव्यता से संपन्न हो रहा है । भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्रीमती प्राची- वैभव,मोक्ष जैन कनाडा परिवार को प्राप्त हुआ ।