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कर्मो की निर्जरा करने के लिए प्रभु के गुणों के प्रति अनुराग जगायें – आचार्य श्री

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गरीबों का भला करना इंसानियत है

प्रश्न उत्तरी के माध्यम से अपनी बात रख सकेंगे – विजय धुर्रा

अशोक नगर – कर्मो की निर्जरा करने के लिए प्रभु के गुणों के प्रति जो भावना होती हैं  वहीं आपकी भक्ति कर्मो की  निर्जरा का कारण वनती है आपको पापो से वचती है हमें भगवान कुछ नहीं दे रहे लेकिन जो आपने भगवान का गुणानुवाद किया है उनके प्रति जो भक्ति है वहीं आपके जीवन में पुण्य को प्रकट करती है भगवान की मूर्ति को देख कर हमारे परिणाम निर्मल होना चाहिए परोपकार के लिए अपने धन का सदुपयोग करते रहना चाहिए दान पूजा शील उपवास का अपना महत्व है कहा दान देना है कव उपवास रखना है किस समय पूजन करना है शील का पालन जीवन में किस प्रकार करना है इन सब को हमे समझना होगा अभी तो चातुर्मास की स्थापना भी नहीं हुई आप को रोज़ नई दिशा मिलती रहेगी उक्त आश्य केउद्गार सुभाष गंज मैदान में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री आर्जवसागरजी महाराज ने व्यक्त किए

गंज मन्दिर में होगा चातुर्मास में होगा विशेष क्लासो का आयोजन – विजय धुर्रा

मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने बताया कि आचार्य श्री आर्जवसागरजी महाराज ससंघ के सान्निध्य में प्रतिदिन प्रश्न उत्तरी का विशेष कार्यक्रम प्रति दिन शाम को साढ़े छह बजे गंज मन्दिर के मुख्य हाल में होगा इसके साथ ही विशेष क्लासो का भी आयोजन किया धर्म सभा के प्रारंभ में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चित्र का अनावरण जैन समाज के अध्यक्ष राकेश कासंल महामंत्री राकेश अमरोद कोषाध्यक्ष सुनील अखाई अजित वरोदिया उमेश सिघई ने किया वहीं दीप प्रज्जवन प्रमोद मंगलदीप विपिन सिंघाई अरविंद जैन कचंनार महेश घमंडी मुनेश हार्डी मनीष वरखेडा सहित अन्य भक्तों ने किया आचार्य श्री ससंघ की आहार चार्या प्रातः दस वजे गंज मन्दिर से होगी आचार्य श्री ने कहा कि धर्म करत संसार सुख धर्म करता निर्वाण धर्म विना नर तिर्यच समान संतों ने कहा कि धर्म करते करते संसार का तो सुख मिलता है यदि हम धर्म की क्रिया को अंतस मन से करगे तो जगत की सुख सम्पदा के साथ परमार्थ सुख की भी प्राप्ति होती है मनुष्य पयर्या मिलने के वाद भी यदि हम धर्म नहीं कर सके तो हम मैं और तिर्यच में कोई अन्तर नहीं रहेगा

नर से नारायण वनने की जगह नारकी वनने की ओर बढ़ रहे हैं लोग

उन्होंने कहा कि भारतीय वसुंधरा पर जन्मे लोगों को अपनी मात्र भूमि का गौरव नहीं है कहा भी गया है नर से नारायण वनने की जगह नारकी वनने की और मनुष्य वड़ते देखा है भगवान के दर्शन करने से सारे दुःखो का नाश हो जाता है शास्त्रों में कहा गया कि कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो अपना फल दिये विना नहीं  रहते लेकिन जिन प्रतिमा के भव सहित दर्शन करने से ऐसे कर्म कट जाते हैं हमें मन्दिर में रहकर जगत को देखने की आवश्यकता नहीं है मन्दिर में आकर भी हम‌ संसार की वात करते रहे तो हम अपने कर्म की निर्जरा नहीं कर सकते यदि हम यही उलझ गए तो हम कर्म कांटने कहा जायेगे भाव‌ सहित क्रिया करने से श्रेष्ठ फल मिलता है