राजगीर (नालंदा) – प्रकृति की सुरम्य वादियों में अवस्थित राजगृह प्राचीन काल से ही जैन धर्मावलम्बियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। प्राचीन मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह भले ही अपना राजनैतिक वैभव खो चुका है लेकिन इसका धार्मिक और पुरातात्विक महत्व आज भी पुरे वैभव से विद्यमान है। जैन धर्म की बात करे तो यहाँ 20वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रतनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा और कैवल्य ज्ञान से सुशोभित राजगृह नगरी में 24वें अंतिम तीर्थंकर वर्त्तमान शासननायक, अहिंसावतार भगवान महावीर की प्रथम देशना स्थली भी है। यह भगवान वासुपूज्य को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों की समवसरण स्थली भी रही है। यह तीर्थ क्षेत्र तथा निर्वाण क्षेत्र भी है। यहाँ के पंच पहाडो़ से केवली जीवन्धर स्वामी सहित अनेक मुनियों ने मोक्ष प्राप्त की है ।
भगवान महावीर ने अपने प्रथम देशना स्थली राजगृह में 14 बार किया था चातुर्मास
महावीर स्वामी यहां मुनि अवस्था में चौदह बार चातुर्मास (वर्षा ऋतु के चार महीने) में रह रहे थे। कैवल्यज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त करने के बाद विपुलांचल पर्वत पर उनका पहला समवशरण भी लगा था । उन्होंने स्वास्थ्य और मामलों के जाल से मुक्त होने के विचारधारा वाले लोगों तथा सभी जीवित संप्रदायों के लिए अपना पहला उपदेश दिया था। यह वह स्थान है, जहां वेदों के महान विद्वान और यज्ञ के समर्थक – इंद्रभूति गौतम अपने 500 शिष्यों के साथ भगवान महावीर की शरण में आए और सबसे पहले और प्रमुख गणधर बने।
राजगीर पंचपहाड़ी पर दिगम्बर व श्वेताम्बर जैन दोनों अनुयायियों का मंदिर स्थित है :
पहला पहाड़ (विपुलांचल):- इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए 550 सीढ़ियाँ बनी हुयी है। विपुलांचल पर भगवान महावीर का सर्वप्रथम उपदेश हुआ था। भगवान का प्रथम समवसरण स्थली पर एक विशाल प्रथम देशना स्मारक का निर्माण हुआ है। जो भव्य एवं काफी आकर्षक है। सबसे ऊपर भगवान महावीर की चतुर्मुखी स्लेटी रंग की विशाल पद्मासन प्रतिमा विराजित है। स्मारक के निचले हिस्से में चित्रकला प्रदर्शनी हैं। स्मारक के अतिरिक्त विपुलांचल पर 4 दिगम्बर मन्दिर भी है। रास्ते में एक टेकरी मिलती है जिसमे भगवान महावीर के चरण विराजमान है।
दूसरा पहाड़ (रत्नागिरि):- यह दूसरा पर्वत पहले पर्वत से 2 मील की दूरी पर है। जिसमें 1 (एक) मील की उतराई है और 1 मील की चढ़ाई है। नीचे से जाने के लिए 1292 सीढ़ियाँ बनी हुयी है। रत्नागिरी भगवान मुनिसुव्रतनाथ स्वामी की तप एवं ज्ञान स्थली है। यहाँ तीन दिगम्बर जैन मन्दिर है। यहाँ बाबु धर्म कुमार जी के नाम पर ब्रह्मचारिणी पंडिता चंदाबाई जी ‘आरा’ द्वारा निर्मित शिखरबंद मन्दिर है। जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् – 1936 में हुयी थी। इसमें भगवान मुनिसुव्रत नाथ जी की 4 फुट की कृष्ण वर्ण (काला) पद्मासन प्रतिमा स्थापित है।
तीसरा पहाड़ (उदयगिरि):- दूसरे पर्वत (रत्नागिरि) से उतरकर 2 मील आगे उदयगिरि पर्वत मिलता है। यहाँ चढ़ाई प्रायः 1 मील की है। जिसके लिए 752 सीढ़ियाँ बनी हुयी है। ऊपर एक मन्दिर है जिसमें भगवान महावीर की एक खड्गासन प्रतिमा विराजित है जिसका वर्ण हल्का बादामी औरर अवगाहना 6 फुट है। इस मन्दिर का निर्माण श्री दुर्गा प्रसाद सरावगी ‘कलकत्ता’ निवासी ने वीर संवत् 2489 में कराया एवं मूर्ति प्रतिष्ठा करायी।
चौथा पहाड़ (स्वर्णगिरि):- इस स्वर्णगिरि पर्वत करोड़ो मुनियों की निर्वाण भूमि है। जिसमें 1064 सीढ़ियाँ तथा 2 (दो) दिगम्बर जैन मन्दिर है। यहाँ मुख्य मन्दिर में भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा स्थापित है। बायीं ओर भगवान कुंथुनाथ और दायीं ओर भगवान अरहनाथ की प्रतिमा स्थापित है। दूसरे मन्दिर में आदिनाथ की प्रतिमा स्थापित है एवं तीसरे में भगवान शांतिनाथ स्वामी के चरण चिन्ह स्थापित है।
पाँचवां पहाड़ (वैभारगिरि):- यह पर्वत भगवान वासुपूज्य स्वामी को छोड़कर शेष 23 तीर्थंकरों के समवसरण स्थली है। यहाँ एक दिगम्बर जैन मन्दिर में भगवान महावीर की 4 फुट अवगाहना वाली श्वेत पद्मासन मनोज्ञ मूर्ति है। इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत् 2489 में भागलपुर के श्री हरनारायण आत्मज वीरचन्द्र भार्या पुष्पादेवी ने करायी थी। यहाँ प्राचीन ध्वस्त तीन चौबीसी मन्दिर भी है। यहां श्वेताम्बर जैन मन्दिर भी है। राजगीर प्राचीन काल से ही जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख पवित्र स्थान है। यह पंच पहाड़ी के रूप में भी प्रसिद्ध है। इन मंदिरों से ही कई तपस्वी संतों ने गहन ध्यान और तपस्या के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया था। रोमांच प्रेमियों के लिए रोमांचक होने के साथ-साथ इस जगह का पर्यटन व धार्मिक महत्व भी है।
अन्य कई पुरातात्विक इतिहास भी रहे है जैन धर्म का
उदयगिरी पर्वत पर खुदाई के दौरान यहां दो प्राचीन जैन मंदिर भी मिले। इनमें प्राचीन पुरातत्वों से कई जैन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है। वहीं सोनभंडार गुफा का नाम आता है। इस गुफा में दीवारों पर जैन मूर्तियां के अवशेष हैं । आखिरी पहाड़ी वैभारगिरी पर खुदाई के दौरान एक विशाल प्राचीन जैन मंदिर मिला है जिसमें दिगम्बर जैन 52 जिनालय प्राप्त हुई। जिसका नाम है 52 जिनालय मंदिर। जिसमें 52 जैन प्रतिमाएं स्थापित थी। यह मंदिर लगभग 2200 वर्ष पुराना मौर्यकालीन बताया जाता है। जो पुरातत्व विभाग के अधीनस्थ है। साथ ही यहां अनेक प्राचीन कलाकृतियां, तीर्थंकर मूर्तियां, वेदियाँ स्थापित है जो काफी आकर्षक व मनमोहक है।