Home धर्म - ज्योतिष लक्ष्य पर ध्यान रखें, टीका टिप्पणी पर नहीं मुनि श्री अजित सागर

लक्ष्य पर ध्यान रखें, टीका टिप्पणी पर नहीं मुनि श्री अजित सागर

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सागर – हम संघर्ष से पहले टूट जाएं, टीका टिप्पणी सुनते ही भाग जाएं मतलब तुम सच्चे खिलाड़ी नहीं हो ज्ञानियों को टीका टिप्पणी से चिल्लाना नहीं चाहिए बल्कि अपने लक्ष्य की ओर ध्यान रखें टीका टिप्पणी पर नहीं, विजय आपकी होगी यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में आचार्य विद्यासागर महाराज द्वारा लिखित मूकमाटी महाकाव्य पर चल रही स्वाध्याय क्लास में कहीं । उन्होंने कहा संघर्ष से कभी डरना नहीं चाहिए कर्म के साथ हम घबरा जाते हैं तो साहस और संतोष खो जाता है कर्म का उदय हमेशा साथ रहने वाला नहीं है यह भी निकल जाएगा गुरुदेव कहते हैं आंवला खाते समय अच्छा नहीं लगता लेकिन पानी पीते ही मीठा लगता है उसी प्रकार नीम कड़वी होती है लेकिन उसका फल यह है कि आपके शरीर से बुखार उतर जाता है डायबिटीज के रोगियों को नीम की पत्ती और करेला अमृत समान है ऊंट की सबसे प्रिय चीज नीम है उसे मीठी लगती है यह प्रकृति की रचना के कारण है संतो की आज्ञा पालने से सभी काम निर्विघ्न संपन्न होते हैं आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज स्वाध्याय करते समय कहते थे आगम में जो लिखा है वह सही है जिनेंद्र भगवान की बात गुरु, संत, भगवंत की बातों पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए उसे पालन करना चाहिए । मुनिश्री ने कहा सत्य शाश्वत होता है जैसे एक कहावत है कौवा के कोसने से डोर नहीं मरता डोर अपने आयु कर्म से ही मरता है आप किसी की टीका टिप्पणी से आपका अहित हो यह जरूरी नहीं है आप यह धारणा बना लें इसका मतलब यह है आप सच्चे खिलाड़ी नहीं है यदि आपको अपना लक्ष्य बनाना है तो महापुरुषों को देख करके बनाइए और व्यवस्थाओं की बात नहीं बल्कि व्यवस्थित बनाने की बात करें और व्यवस्थित होकर जो चलता है उसकी व्यवस्थाएं अपने आप होती रहती हैं।

मुनि श्री ने कहा किसी कार्य को संपन्न करते समय अनुकूलता की प्रतीक्षा करना सही पुरुषार्थ नहीं है मोक्ष मार्गी सोचता है जैसा मिलेगा वैसा चलेगा गुरुदेव हमेशा कहते हैं हमेशा समता की प्रतीक्षा प्रतिकूलता में होती है अनुकूलता में नहीं जैसे हमें कहीं जाना है और हम सोचते हैं कि व्यवस्था ठीक होगी या नहीं इतना सुनकर हम जाते जाते रुक जाते हैं और फिर बाद में जब दूसरे लोग चर्चा करते हैं तब अपना मन कहता है चले जाते तो अच्छा होता प्रतिकूलता में समता का भाव रखना ज्ञानियों का क्या कार्य है प्रगति के अभाव में गति नहीं मिलती है और आशा के पर ठंडे पड़ते हैं धैर्य, साहस, हिम्मत, उत्साह, कमजोर पड़ने लगता है मन होता है लेकर आस्थावान लोगों के लिए यह अभिशाप नहीं वरदान है सिद्ध होता है । जो दृढ़ संकल्पित होते हैं वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर कर रहते हैं गुरुदेव कहते हैं संघर्ष में जीवन का उपसंहार नियम से हर्षमय होता है।