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दूसरों के प्रति सद्भाव करना भी धर्म ध्यान है – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि सब पशु पक्षी अपने – अपने परिवार का पालन पोषण आदि करते हैं | मनुष्य भी अपने परिवार का पालन पोषण करता है लेकिन वह अपनी सीमा का उल्लंघन कर सकता है लेकिन पशु पक्षी कि ओर देखते हैं तो वे अपनी सीमा का उल्लंघन करते नज़र नहीं आते है | अभ्यारण्य में यह दृश्य देखने को मिलता है कि  सिंह अपने परिवार का पालन पोषण करता है और अपने बच्चे को६ माह तक केवल अपना दूध ही पिलाता है इस दौरान अन्य कोई भी वस्तु उसे खाने के लिये नहीं देता है | इस दूध से सिंह का बच्चा इतना पुष्ट होता है कि उसकी ताकत जीवन पर्यन्त तक बनी रहती है | ऐसा मनुष्य के साथ भी है | यह प्राकृतिक तरीके से ही होता है और इसका परिणाम भी सामने देखने को मिलता है | दो उदाहरण आपके सामने रखता हूँ एक पक्षी रहता है वह अंडा देता है | अंडा देने के उपरांत अपने शरीर कि उष्मा से ओजस आहार देता है जिससे वह अंडे के अन्दर बच्चे का क्रमिक विकास होता है | ओजस आहार के बारे में शास्त्रों में भी दिया गया है | धीरे – धीरे उसके पंख आदि शरीर बनता है | आपका बेटा बड़ा हुआ और उसे सिधे दुकान कि गद्दी पर बिठा दिया तो कुछ ही दिनों में दिवालिया हो जायेगा दशहरा आये बिना ही दिवाला हो जायेगा | डॉक्टर भी पढाई के उपरांत 1 से 2 वर्ष किसी सीनियर के सानिध्य में प्रैक्टिस आदि करते हैं फिर पेशेंट देखना प्रारंभ करते हैं | कर्माहार, कव्लाहार, ओजस आहार होते हैं | आप लोग केवल कव्लाहार को ही महत्त्व देते हैं | भाव अच्छे रखेगे तो भोजन करने से परिणाम भी अच्छे होते है | नोकर्म परमाणु कि भी भूमिका यहाँ पर देकने को मिलती है | आचार्य समन्तभद्र महाराज ने लिखा है कि सौधर्म इंद्र जन्म उपरांत तीर्थंकर बालक को अपने दो नेत्रों से देखकर संतुष्ट नहीं होता है तो वह अपनी हज़ार आँखे बनाकर उस अद्वितीय तीर्थंकर बालक के स्वरूप को देखता है | एक किताब में पढ़ा था कि एक मगरमच्छ अपने घर में अपनी संतान को छोड़कर जब बाहर अपने भोजन (राशन) के लिये जाता है तो रास्ते में बीच – बीच में अपनी संतान को स्मरण करता रहता है जिससे उसकी संतान को बल मिलता है | इतनी दूर जाने पर भी और बीच में पानी आदि होने के बावजूद उसके स्मरण का प्रभाव उसकि संतान पर पड़ता है तो बताओ इसके पीछे क्या रहस्य है | आप अपने बच्चे के ऊपर भी संस्कार डाल सकते है स्मरण के माध्यम से लेकिन स्वार्थ के कारण ऐसा नहीं हो पाता है | इस प्रकार वर्गणायें जिसको याद करते हैं तो उसपर प्रभाव डालते हैं | यह सिद्धांत है | आप (पिता ) घर से बाहर जा रहे हो तो बच्चा ज़िद करने लगता है कि वो भी पिता के साथ जायेगा तो माँ कहती है कि बेटा पिता को आने में देर लगेगी शाम हो जायेगी इतनी देर कहा क्या करेगा | तो बच्चा पिता से कहता है कि ठीक है नहीं जाता लेकिन मेरे लिये ये – ये अच्छी – अच्छी वस्तुयें ला लेना | वापसी में रास्ते में जब पिता को स्मरण होता है कि बच्चे के लिये उसकी पसंदिता खाने कि वस्तु लेना है तो वह लेने के लिये रुक जाता है और अपने बच्चे को स्मरण कर सामान लेने लगता है तो उधर बच्चे को हिचकी आने लगती है | हिचकी जानते हैं न आप लोग ? तो माँ कहती है बच्चे को कि पानी पिलो हिचकी बंद हो जाएगी लगता है तुम्हारे पिताजी तुम्हे स्मरण कर तुम्हारे लिये खाने कि वस्तु ले रहे होंगे | बच्चा जैसे ही पानी पिता है तो उसकी हिचकी ठीक हो जाती है | यह कही कोई किताब में लिखा है क्या? लेकिन होता है | मुनि महाराज, श्रमण, आचार्य भी श्रावक को याद कर सकते हैं जिससे आपके धार्मिक परिणाम उन्नत हो सकते हैं | आपको इसका बार बार प्रयत्न करना चाहिये | श्रावक चाहे कितने भी हो हजारों, लाखों, करोड़ों सभी के प्रति अपने भाव परिणाम अच्छे रखना चाहिये अपने के साथ दूसरों को अपनाया जा सकता है | गुणीयों के प्रति अच्छे भाव परिणाम रखना चाहिये जिससे उनका विकास हो, हित हो, सद्बुद्धि मिले, सब कुछ अच्छा हो ऐसी भावना करने को भी धर्म ध्यान कहा है | श्रावकों को श्रमण के लिये और श्रमण को श्रावकों के लिये अच्छी भावना करनी चाहिये | श्रावकों को महाराज के लिये भावना करना चाहिये कि उनका स्वास्थय जल्दी अच्छा हो जाए, महाराज जल्दी ठीक हो जाए, उनका सामायक, प्रतिक्रमण आदि सब अच्छे से हो और उनका हमारे यहाँ आहार भी हो जाये | दूसरे के प्रति कभी विद्वेष नहीं रखना चाहिये कि उनके यहाँ जल्दी आहार हो गए, उनके यहाँ दोबारा हो गए और हमारे यहाँ अभी तक नहीं हुए | केवल अपना – अपना नहीं देखना चाहिये दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिये | अपनी संतान को अच्छे संस्कार देना चाहिये | शांति विधान, शान्ति धारा, बारह भावना, सोलह कारण भावना में यही तो आता है कि सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव हो, राजा – प्रजा में सुख, शान्ति, समृद्धि हो, रोग, दुर्भिक्ष आदि न फैले | श्रमण जहाँ प्रतिक्रमण, आलोचना आदि अन्तरंग से करते हैं तो उनके अनंतगुना कर्म कि निर्जरा होती है | उनके तप से रिद्धियाँ – सिद्धियाँ हो सकती हैं | वहाँ आस – पास के स्थान पर समय पर वर्षा होती है, खेत में फसल लहलहाती है और सभी सुख – शांति का अनुभव करते हैं | दुकान पर बैठे – बैठे ग्राहक को तकते रहने से अच्छा है कि आप यह भाव रखे कि मेरी दुकान कि सामग्री से ग्राहक का भला हो, लाभप्रद हो, हितकारी हो ऐसे भी धर्म ध्यान हो सकता है जिससे उसे लाभ मिलेगा और ग्राहक अपने आप बढ़ जायेंगे | रोटी बनाते हुए भी, घर का काम करते हुए भी, चक्की चलाते हुए भी अच्छे भाव से पाठ आदि से वह आटा, रोटी मंत्रीत हो जाती है जिसका लाभ अवश्य ही मिलता है और उनका भी भाव अच्छा हो सकता है | मगरमच्छ और पक्षी के माध्यम से संतान पुष्ट हो सकती है तो आप भी अपनी संतान को पुष्ट कर सकते हैं जो आगे अच्छा – अच्छा कर्म करेगा | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी स्नेह दीदी छत्तीसगढ़  निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की आचार्य क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |

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