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संयोग वियोग संसार में लगा रहता है संयोग में वियोग छिपा हैं – आचार्य श्री

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महासभा संयोजक विजय धुर्रा को मिला नवदा भक्ति का सौभाग्य

आचार्य भक्ति में सही उत्तर देने वाले को दिए पुरस्कार

अशोक नगर – संयोग वियोग संसार में लगा रहता है जव संयोग की दशा वनती है तो व्यक्ति खुश होता है फूला‌नही समाता वह अपने आगे किसी को कुछ समझता ही नहीं है थोड़े संयोग को पाकर यह संसारी प्राणी अहंकार में डूव जाता है इस जगत में जो संयोग वना है वह वियोग रुप ही है एक ना एक दिन आपको जो मिला है उसे छूटजाना है लेकिन हम इसे सुइकार नहीं करते हम सोचते हैं जो वस्तु मुझे मिली है इस पर मेरी ही मिल्कियत है और ग़ाफ़िल हो जाते हैं जव वह वस्तु सुख की साम्राज्ञी यहां तक कि व्यक्ति हमसे छूटने लगता है तो हम विलाप करने लगते हैं यहां संसार वियोग रुप है जिस जिस का संयोग हुआ है उसका वियोग तो होना ही है उक्त आश्य के उद्गार आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज ने सुभाषगंज मैदान में धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए

नवदा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य विजय धुर्रा को मिला

आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज की नवदा भक्ति का सौभाग्य आज मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा के परिवार को मिला जहां परिवार जनों ने आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन कर पूजा अर्चना की और विधि पूर्वक शुद्ध आहार कराने का सौभाग्य प्राप्त किया इस दौरान परिवार के सदस्य राधेलाल धुर्रा राज कुमार चाचा देवेन्द्र ओमप्रकाश पवन जैन सुनील जैन सत्यम सिंघई पीयूष जैन विक्की भ इया नीलेश भइया सौरव जैन अनिल वे शीला मामा डॉ अर्पित नेशनल सहित अन्य भक्तों ने भी गुरु भक्ति का सौभाग्य प्राप्त किया शाम को आचार्य भक्ति के वाद प्रश्न उत्तरी का कार्यक्रम रखा गया जहां मध्य प्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा दारा सही उत्तर देने वालों को पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया इस दौरान पाठशाला के वच्चो के साथ ही माता वहनो ने भी प्रश्न उत्तरी में भाग लिया 

ध्यान के योग्य स्थान उचित वातावरण होना चाहिए

उन्होंने कहा कि आज ध्यान हर व्यक्ति करना चाहता है करता भी है लेकिन उसके लिए आवश्यक तैयारियां कोई नहीं करना चाहता ध्यान ध्यान कहा करना कैसे करना इन सब बातों को पहले अच्छी तरह से समझना होगा  जहां भौतिक साधन ना हो भौतिक संसाधनों से दूर एकांत में ध्यान किया जाता है मन को पवित्र वनाने के साथ शरीर की शुद्धि भी ध्यान करने में सहायक वनेगी एक बार एक व्यक्ति आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पास आया और बहुत धीरे धीरे वात करते हुए कहता है कि आचार्य श्री मैं ध्यान करना चाहता था ध्यान को बैठा तो मेरा सर फटा जा रहा है आचार्य श्री ने उसकी बात सुनकर कहा कि आप क्या खाकर आये है वह कहता अंडे खाकर आया हूं तव आचार्य श्री उसे समझाया कि जव आप अपने पेट में दूसरे जीवों को रखें है फिर ध्यान करना चाहते हैं ये सम्भव नहीं है उन्होंने उसे समझाया कि हर चीज की एक विधि होती है ध्यान के पहले शरीर की शुद्धि के साथ ही सब तरह से वातावरण को भी प्रस्त किया जाता है उसको समझाया वह धीरे-धीरे ठीक हो गया तो ध्यान के लिए अनुकुल वातावरण की आवश्यकता होती है