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ज्ञानी आत्मा वह नहीं जो जुड़े को तोड़ने का पुरुषार्थ करता है, वरन वह है जो टूटे को भी सूझबूझ से जोड़ देता है – आर्यिका 105 श्री विज्ञमती माताजी 

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रामगंजमंडी – पूज्य गुरु मां संघस्थ – गणिनी आर्यिका श्री विशुद्ध मति माताजी)की शिष्या पट्ट गणिनी आर्यिका 105 विज्ञमति माताजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा की ज्ञान के साथ श्रद्धान को भी मजबूत करना होगा । सम्यकत्व का प्रकाशन सम्यकत्व का द्योतन और सम्यक श्रद्धा एक ही पलड़े के भिन्न भिन्न पहलू है। शंका, कांक्षा आदि जो श्रद्धा संबंधी जो दोष है,उन्हें दूर करना सम्यकत्व का द्योतन है, संशय विपर्यय आदि जो ज्ञान संबंधी दोष है उन्हें दूर करना सम्यज्ञ ज्ञान का द्योतन है और चरित्र संबंधी दोषों को दूर करना सम्यक चरित्र का द्योतन है। असंयम परिणाम को दूर करना तप का द्योतन है । पूज्य गुरु माँ ने विशेष व्याख्या करते हुए कहा कि जब तक आत्मा के प्रदेशों में सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति निष्कम्प श्रद्धान नही होगा, तब तक सम्यक्त्व का मिश्रण नहीं हो सकता। जितना ध्यान तुम्हारा नोटों को गिनने में होता है उतना एकीकरण यदि सम्यक श्रद्धान के प्रति होगा तब ज्ञान स्वयंमेव सम्यक रूप में परिणत हो जाएगा।

   एक उदाहरण के माध्यम से माताजी ने समझाया की जिस प्रकार शरीर के अंगों की पूर्णता न होने पर सर्वांग सुंदर की संज्ञा नहीं दी जा सकती, उसी प्रकार जब तक सम्यकत्व के  आठ अंगों की पूर्णता नहीं होने पर सम्यकत्व की सिद्धि नहीं हो सकती। ज्ञानी आत्मा वह नहीं जो जुड़े को तोड़ने का पुरुषार्थ करता है, वरन वह है जो उसे सूझबूझ से जोड़ देता है। सम्यकत्व की आराधना करने से नियम से ज्ञान की आराधना हो जाती है। लेकिन ज्ञान की आराधना से सम्यक्त्व की आराधना भजनीय हैं, अर्थात हो भी सकती हैं और नही भी। जो वेद वेदांतो का पाठी है, ज्ञानी है, लेकिन श्रद्धानी नही है तो वो सम्यक ज्ञानी नहीं है । इसलिए ज्ञान के साथ साथ दर्शन भी सुगठित होना चाहिए, तभी वह सम्यकपने को प्राप्त हो सकता हैं पूज्या गुरु माँ मध्य लोक शोध संस्थान शिखर जी में विराजमान हैं, आगंतुक, उनके दर्शनों का लाभ अवश्य प्राप्त करें।