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उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म – ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा में रहना है ॥–रवि भैया जी

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रायपुर – श्री दिगम्बर जैन परवार पंचायती मंदिर जी  में सकल जैन समाज ने  श्री 1008 वासुपूज्य भगवान के मोक्ष कल्याणक , दशलक्षण महापर्व के अंतिम दिवस भगवान जी का निर्वाण कल्याणक  ,उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म” व अंनत चतुर्दशी बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया तथा निर्वाण लाडू चढ़ाया गया । जैन समाज अध्यक्ष पीयूष ने बताया की सुबह श्री जी का मंगल अभिषेक, शांतिधारा व पूजन किया गया। श्री 1008 वासुपूज्य भगवान जी की प्रतिमा को मस्तक में विराजमानकर पाण्डुकशिला पर विराजमान कर सभी श्रावकों ने अभिषेक क्रिया सम्पन्न की।  श्रावक श्राविकाओं ने अभिषेक का लाभ लिया।मूलनायक श्री 1008 महावीर भगवान का अभिषेक करने का सौभाग्य श्री अनुराग जैन एवम श्री मति कमलेश जैन जी  ने  सपरिवार प्राप्त किया।प्रथम शांतिधारा का सौभाग्य अशोक,पीयूष सिंघई ने सपरिवार एवं द्वितिय शांतिधारा का सौभाग्य श्री मति रेखा –पूजा सिंघई ने सपरिवार प्राप्त किया। आरती का सौभाग्य कु प्रियशी ,दर्शित जैन ने सपरिवार प्राप्त किया। तत्पश्चात तीर्थंकर जन्मे माई तोरे अंगना में, महावीरा जन्मे आज माई तोरे अंगना में गाकर सभी भक्तों ने धूमधाम से आरती व भक्ति की। आरती पश्चात देवशास्त्रगुरु पूजा, सोलहकारण पूजा, दशलक्षण पूजा, रत्नत्रय पूजा, वासुपूज्यनाथ पूजा, आचार्य श्री जी की पूजा सम्पन्न हुई । इस दिन को अनंत चतुर्दशी कहते हैं!  इस  दिन को लोग परमात्मा के समक्ष अखंड दिया लगाते हैं।

ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहों का त्याग करना, जो हमारे भौतिक संपर्क से जुडी हुई हैं! जैसे जमीन पर सोना न कि गद्दे तकियों पर, जरुरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, व्यय, मोह, वासना ना रखते हुए सादगी से जीवन व्यतीत करना ॥ कई सन्त इसका पालन करते हैं और विशेषकर जैन-संत शरीर, जुबान और दिमाग से सबसे ज्यादा इसका ही पालन करते हैं ॥ ‘ब्रह्म’ जिसका मतलब आत्मा, और ‘चर्या’ का मतलब “रखना”, इसको मिलाकर ब्रह्मचर्य शब्द बना है, ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा में रहना है ॥ ब्रह्मचर्य का पालन करने से आपको पूरे ब्रह्मांड का ज्ञान और शक्ति प्राप्त होगी और ऐसा न करने पर, आप सिर्फ अपनी इच्छाओं की पूर्ति ही कर पाएंगे।