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पुलवामा हमला: 52 करोड़ की संपत्ति जब्त, गिरफ्त में 15 और लोग, जानें क्या है जमात-ए-इस्लामी?

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पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए लगातार कड़े कदम उठा रही है. पुलवामा हमले से तार जुड़े होने के सबूत मिलने के बाद जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे संगठन जमात-ए-इस्लामी पर आतंकवाद निरोधक कानून के तहत 5 साल तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. रविवार को इस संगठन के 15 और सदस्यों को गिरफ्त में लिया गया है और इसकी 52 करोड़ की संपत्ति जब्त कर जांच की जा रही है. प्राप्त जानकारी मुताबिक 1 मार्च से अभी तक इस संगठन से जुड़े 370 से ज्यादा लोगों को गिरफ्त में लेकर पूछताछ की जा रही है. रविवार सुबह भी संगठन से जुड़े 15 अहम लोगों को हिरासत में लिया गया है.

किस-किस की हुई गिरफ्तारी?
जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक रविवार को जमात-ए-इस्लामी (जम्मू कश्मीर) से जुड़े सैयदपुरा के पूर्व जिला अध्यक्ष बशीर अहमद लोन के साथ उनके अन्य साथियों अब्दुल हामिद फयाज, जाहिद अली, मुदस्सिर अहमद, गुलाम कादिर, मुदासिर कादिर, फयाज वानी, जहूर हकाक, अफजल मीर, शौकत शाहिद, शेख जाहिद, इमरान अली, मुश्ताक अहमद और अजक्स रसूल को गिरफ्तार किया गया. जांच एजेंसी अब तक इस संगठन की करीब 52 करोड़ की संपत्ति जब्त कर चुकी है. बता दें कि इस संगठन के जिन बड़े नेताओं की गिरफ्तारी हुई है, उनसे फिलहाल पूछताछ की जा रही है.

क्यों लगा बैन?

 

आजादी से पहले साल 1941 में एक संगठन का गठन किया गया, जिसका नाम जमात-ए-इस्लामी था. जमात-ए-इस्लामी का गठन इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौदूदी ने किया था और यह इस्लाम की विचारधारा को लेकर काम करता था. हालांकि आजादी के बाद यह कई अलग-अलग संगठनों में बंट गया, जिसमें जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद शामिल है. हालांकि जमात-ए-इस्लामी से प्रभावित होकर कई और संगठन भी बने, जिसमें जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, कश्मीर, ब्रिटेन और अफगानिस्तान आदि प्रमुख हैं. जमात-ए-इस्लामी पार्टियां अन्य मुस्लिम समूहों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंध बनाए रखती हैं.

जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) की घाटी की राजनीति अहम भूमिका है और साल 1971 से इसने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया. पहले चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं करने के बाद आगे के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया और जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अहम जगह बनाई. हालांकि अब इसे जम्मू कश्मीर में अलगाववादी विचारधारा और आतंकवादी मानसिकता के प्रसार के लिए प्रमुख जिम्मेदार संगठन माना जाता है.

माना जाता है कि यह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दाहिना हाथ है और हिजबुल मुजाहिदीन को जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर ने ही खड़ा किया है. हिज्बुल मुजाहिदीन को इस संगठन ने हर तरह की सहायता की. बता दें कि इससे पहले भी दो बार इस संगठन को बैन किया जा चुका है. पहली बार जम्मू कश्मीर सरकार ने इस संगठन को 1975 में 2 साल के लिए बैन किया था, जबकि दूसरी बार केंद्र सरकार ने 1990 में इसे बैन किया था. वो बैन दिसंबर 1993 तक जारी रहा था.

4500 करोड़ की संपत्ति का मालिक
बता दें कि जमात घाटी के अंदर कई सारे स्कूल, मदरसे और मस्जिद को संचालित करती है. जमात के पास फिलहाल 4500 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है. इस संपत्ति में 400 स्कूल, 350 मस्जिद और एक हजार से अधिक मदरसे शामिल हैं. इन सबको चलाने के लिए पाकिस्तान, हुर्रियत कांफ्रेस के अलावा स्थानीय लोग चंदे के जरिए इसकी मदद करते हैं. जमात-ए-इस्लामी काफी लंबे समय से कश्मीर को पाकिस्तान में मिलाने की मुहिम भी चला रही है. उसका मानना है कि कश्मीर का विकास भारत के साथ रहकर नहीं हो सकता है. सूत्रों के मुताबिक, घाटी में कार्यरत कई आतंकी संगठन जमात के इन मदरसों व मस्जिदों में पनाह लेते रहे हैं.

महबूबा और उमर ने जताई नाखुशी
पीडीपी नेता और सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार द्वारा जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाए जाने के फैसले की आलोचना की थी. महबूबा ने कहा था कि सरकार जमात पर प्रतिबंध लगाने से पहले हिंदूवादी संगठनों पर बैन लगाए. क्या भाजपा का विरोध करना अब राष्ट्रद्रोह भी हो गया है. उधर नेशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को कहा कि केंद्र सरकार को जमात-ए-इस्लामी पर पाबंदी लगाने के फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि इस कदम से संगठन की गतिविधियां भूमिगत होने के अलावा कोई मकसद हल नहीं होगा.

उमर ने ट्वीट किया, “केंद्र सरकार को अपने हालिया फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए. जम्मू कश्मीर में 1996 से 2014/15 के बीच बिना इस तरह के प्रतिबंधों के भी हालात में तेजी से सुधार हुआ है. यह प्रतिबंध जमीनी स्तर पर किसी तरह का सुधार करेगा, इस बात का कोई आधार नहीं दिखता.” जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में अशांति फैलने के बाद 1990 में पांच साल से अधिक समय के लिए संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन इस तरह की पाबंदी से कोई मकसद हल नहीं हुआ और कुछ हासिल नहीं हुआ.

जमात-ए-इस्लामी हिंद है अलग संगठन
बता दें कि ये जमात-ए-इस्लामी हिंद से बिल्कुल अलग संगठन है. इसका उस संगठन से कोई लेना देना नहीं है. साल 1953 में जमात-ए-इस्लामी ने अपना अलग संविधान भी बना लिया था. जमात-ए-इस्लामी (जम्मू-कश्मीर) घाटी में चुनाव लड़ता है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी हिंद ऐसा संगठन है जो वेलफेयर के लिए काम करता है. जमात-ए-इस्लामी हिंद के देश में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े भी कई कार्य करता रहा है.

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