मध्य प्रदेश में कांग्रेस इन दिनों आपसी द्वंद्व के दौर से गुजर रही है। नए प्रदेशाध्यक्ष के नाम को लेकर तनातनी का दौर जारी है, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं और उनकी पसंद को किनारे किए जाने की स्थिति में वे पार्टी को भी टा-टा कर सकते हैं।
सिंधिया के नजदीकी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, सिंधिया अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं, इसके लिए वे किसी भी हद तक जा सकते है। उन्होंने अपनी बात से पार्टी हाईकमान को भी अवगत करा दिया है, अगर पार्टी हाईकमान ने उनकी बात को नजर अंदाज किया तो वे पार्टी का साथ भी छोड़ सकते हैं। कांग्रेस छोडऩे के बाद उनकी राजनीति की दिशा क्या होगी इसे कहा नहीं जा सकता। सूत्रों का कहना है कि सिंधिया अपनी बात से पार्टी हाईकमान को अवगत करा चुके हैं, सख्त लहजे में भी अपनी बात रख चुके हैं तो दूसरी ओर सिंधिया की दिल्ली में भाजपा नेतृत्व से मुलाकातों की चर्चाएं भी सामने आ रही है। इन चर्चाओं का न तो सिंधिया ने अब तक खंडन किया है और न ही स्वीकारा है।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के 114 विधायकों में 25 विधायक ऐसे हैं जिन्हें विधानसभा में सिंधिया के कोटे से टिकट मिला था। यह विधायक सिंधिया के यहां होने वाली बैठकों में जाते रहते हैं, मगर पार्टी से किनारा करने की बात आएगी तो 15 विधायक सिंधिया के साथ रहेंगे। 10 वे विधायक हैं जो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ से भी मिलते रहते हैं। इन विधायकों में सत्ता का मोह भी है।
सिंधिया राजघराने की भाजपा से नजदीकियां किसी से छुपी नहीं है। सिंधिया राजघराने के प्रतिनिधि कभी भी भाजपा और संघ के लिए अस्वीकार नहीं रहे है। इसी घराने की विजयाराजे सिंधिया हो, माधवराव सिधिया भाजपा के नजदीकी रहे हैं, इस घराने की वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे सिंधिया वर्तमान में भाजपा में है। ज्योतिरादित्य अगर भाजपा में आते हैं तो संगठन और संघ से जुड़े लोगों के लिए असहज नहीं होगा।
ज्येातिरादित्य की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात की बातें भी सामने आ रही हैं। राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में आई तो सिंधिया को भरोसा था कि राज्य का मुख्यमंत्री उन्हें बनाया जा सकता है, मगर ऐसा हुआ नहीं। उसके बाद से प्रदेशाध्यक्ष की बागडोर सिंधिया को सौंपे जाने की चर्चाएं गाहे-बगाहे हिलोरें मारती रही।
लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा प्रदेशाध्यक्ष पद से त्याग पत्र दिए जाने की पेशकश के बाद से फिर नए अध्यक्ष के तौर पर सिंधिया के नाम की चर्चा है। मगर सिंधिया की राह में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के गुट ने रोड़े अटकाना शुरू कर दिए हैं। यही कारण है कि प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया द्वारा नए प्रदेशाध्यक्ष के नाम का जल्द ऐलान किए जाने के बयान के बाद भी नए अध्यक्ष का नाम सामने नहीं आ पाया है।
सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने की हर तरफ से मांग उठ रही है, कहीं होर्डिग, बैनर लग रहे हैं तो कहीं धरना दिया जा रहा है। पार्टी की प्रदेश इकाई के सचिव विकास यादव ने सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाए जाने की पैरवी करते हुए कहा कि, सिंधिया का उपयोग यूज एंड थ्रो की तरह किया जा रहा है, चुनाव के समय उन्हें आगे किया जाता है और सत्ता मिलने पर उन्हें पीछे कर दिया जाता है। एक तरफ जहां सिंधिया अपनी पसंद के व्यक्ति को अध्यक्ष बनवाने पर अड़े रहकर बगावती तेवर अपनाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का विरोधी खेमा उन्हें कमजोर करने में लगा है।
इसी क्रम में दिग्विजय गुट के नेताओं ने एक के बाद एक दो दिन लगातार पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के यहां बैठकें कर डाली। यह बात अलग है कि सिंह ने इसे सामान्य मेल मुलाकात करार दिया था। राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया मानते हैं कि सिंधिया भाजपा में जा सकते हैं।
उनका कहना है कि सिंधिया राजघराने का इतिहास और अतीत है, उसके अनुसार उनकी भाजपा और संघ में जड़ें बहुत गहरी है, चाहे उनकी दादी रही हो, पिता का पहला चुनाव या दोनों बुआएं। वहीं संघ और भाजपा संगठन मानता है कि सिंधिया अगर भाजपा में आते हैं तो कांग्रेस की ग्वालियर-चंबल से लेकर मालवा तक में चुनौती समाप्त हो जाएगी।
राज्य मे सिंधिया राजघराने का ग्वालियर-चंबल से लेकर मालवा और मध्य भारत तक प्रभाव है और लोकसभा की 10 सीटें ऐसी हैं जहां उनके समर्थक हैं। भाजपा इन स्थानों पर कांग्रेस के प्रभाव को पूरी तरह खत्म कर देना चाहती है, वहीं इन दिनों इस राजघराने के प्रमुख नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस के भीतर अहमियत कम हुई है, जिससे वे नाराज चल रहे है।
इन स्थितियों का भाजपा लाभ लेना चाहती है। भाजपा का राज्य का कोई भी नेता सीधे तौर पर सिंधिया के भाजपा में आने और उनके आने से पार्टी को होने वाले लाभ पर खुलकर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, हर कोई इशारों में बात करता है क्योंकि फैसला तो दिल्ली और नागपुर से होना है।
पार्टी के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता डा. दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि राज्य में कांग्रेस और उसकी सरकार भारी असंतोष और असंतुलन से गुजर रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की जो स्थिति बीते आठ माह से है वह हर कोई देख रहा है। दिग्विजय, सिंधिया और कमलनाथ की गुटीय राजनीति का नतीजा प्रदेश के लिए क्या होगा यह भविष्य तय करेगा।