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दिवाली के समय क्यों गायब हो रहे उल्लू, ये वजह जानकर रह जाएंगे दंग

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दिवाली की रात और उल्लू का ऐसा कनेक्शन है कि कोई भी जानकर चौंक सकता है। इस रात लगभग सभी उल्लू गायब हो तो हैं। यानी की दिवाली की यह रात उल्लू के लिए बड़ी शामत वाली होती है जिसके पीछे की वजह इंसान का अंधविश्वास है। जी हां, अब तक लोग उल्लू को देखकर दूर भागते थे लेकिन अब इसका उल्टा हो रहा है। उल्लू इंसान को देखकर दूर भाग रहे हैं ताकि वो अपनी जान बचा सके।

दिवाली के दिनों में भारत के पूर्वोत्तर समेत कई राज्यों में कुछ लोगों को जहां कहीं भी उल्लू नजर आता है उसके पीछे भागते नजर आते हैं। कुछ अंधविश्वासी लोग दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वो उल्लू की बलि देते हैं। हालांकि उल्लूओं की जान बचाने के लिए वन विभागों ने निगरानी बढ़ा दी है।

इस दीपावली को देखते हुए देश में उल्लू की बलि की वज़ह से उल्लुओं की मांग बढ़ गई है। पक्षियों का व्यापार करने वाले एक उल्लू को 2 से 20 हजार रूपए तक में बेच रहे हैं। यही नहीं, तंत्र क्रिया करने वाले लोगों ने इसके लिए काफी पहले से एडवांस पैसे पक्षी विक्रेताओं के पास जाम करा रखे हैं।

बताया जाता है कि उल्लू के वजन, आकार, रंग, पंख के फैलाव के आधार पर उसकी कीमत तय की जाती है। खबरें हैं कि लाल चोंच और शरीर पर सितारा धब्बे वाले उल्लू का रेट 25 हजार रुपए से भी ज्यादा है। तंत्र क्रिया के अतिरिक्त उल्लू को उपयोग लोग आयुर्वेदिक इलाज में भी करते हैं। इसकी चोंच और नाखून को जलाकर तेल बनाया जाता जिससे गठिया ठीक होता है। इसके मांस का प्रयोग यौनवर्धक दवाओं में किया जाता है।

आपको बता दें कि जबकि वन अधिनियम के तहत उल्लु संरक्षित प्रजाति है और उसका शिकार करना दंडनीय अपराध है। इसके बावजूद चंबल घाटी के मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत तक से उल्लू की तस्करी की जा रही है।

तांत्रिकों का कहना है कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा पान कराने के साथ ही मांस खिलाया जाता है। वशीकरण और सम्मोहन इत्यादि साधनाओं की सफलता के लिए उल्लू की बलि दी जाती है। सामान्यत: आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक वर्ष भारत के विभिन्न हिस्सों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि के सैकड़ों मामले सामने आते हैं।