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टीबी को रोकना संभव है, टीबी के खिलाफ जंग में चाहिए नया टीका

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पूरी दुनिया में टीबी के खिलाफ जंग गहराती जा रही है। भारत में भी इस बीमारी ने बड़े पैमाने पर पैर पसार रखे हैं। आज की स्थिति में एक दिन तक की उम्र के बच्चों को टीबी से बचाने के लिए भारतीय अस्पतालों में बेसिलस केलमेट-गुएरिन या बीसीजी के टीके दिए जाते हैं। दुर्भाग्य से बच्चों के बड़े होकर 15-20 वर्ष की उम्र तक आने पर बीसीजी का प्रभाव समाप्त हो जाता है। वैसे भी बीसीजी का टीका तकरीबन एक सदी पुराना हो चुका है। इसका पहला इस्तेमाल 1921 में किया गया था।

भारत में हर साल टीबी के 30 लाख मामलों के अलावा 20 लाख नये मामले रजिस्टर होते हैं। यह बेहद चिंतनीय बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की विश्व टीबी रिपोर्ट 2019 में भारत टीबी से ग्रस्त शीर्ष 30 देशों में से एक है। भारत के हालातों से ही चिंतित उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने फेफड़ों के स्वास्थ्य पर हैदराबाद में आयोजित 50वीं यूनियन वर्ल्ड कॉन्फ्रेंस में वैज्ञानिकों से टीबी से जंग को कामयाब बनाने के लिए एक नये टीके के आविष्कार की गुजारिश की।

बच्चों के 13 प्रतिशत मामले भारत में

56 प्रतिशत पुरुष, 31 प्रतिशत मामले महिलाओं के

2018 में 4.49 लाख लोगों की मौत की वजह टीबी

2017 में टीबी के 27.4 लाख नये मामले सामने आए

टीबी एक बेहद गंभीर किस्म का इन्फेक्शन है जो बैक्टेरिया मायोकेबैक्टेरियम टय़ूबरक्यूलोसिस के कारण होता है। आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करने वाली यह बीमारी शरीर के अन्य अंगों में भी विकसित हो सकती है। मरीज दो हफ्ते तक खांसी और उसके साथ बलगम का शिकार होता है। कई मर्तबा तो मरीज के थूक में खून तक आ जाता है। इसके अलावा वह सीने में दर्द, कमजोरी, वजन में कमी, बुखार और आधी रात को पसीने की शिकायत भी करता है।

जब टीबी का मरीज खांसता, छींकता, चिल्लाता या यहां तक कि गाता भी है तो उसके इर्द-गिर्द की हवा में इन्फेक्शनग्रस्त बूंदें तैरने लगती हैं। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति सांस के जरिये इसके संपर्क में आता है तो टीबी उस तक पहुंच जाता है।

बीसीजी का टीका पूरी दुनिया में टीबी की रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक साल तक के बच्चे को बांह के ऊपरी हिस्से में टीके का 0.05 मिली. का डोज इंजेक्शन के जरिये दिया जाता है। वयस्कों में टीके के इंजेक्शन में 0.1 मिली. का डोज दिया जाता है।

टीकाकरण के जबर्दस्त अभियान के बाद भी टीबी के मामले पूरी दुनिया में सुनने को मिलते हैं। इसके अलावा अव्यक्त टीबी (लेटेंट टीबी) के मरीज तो कोई भी लक्षण नहीं दिखाते और बीमारी को फैलाते भी नहीं हैं। लेकिन अगर उनके भीतर मौजूद कीटाणू सक्रिय हो गए, तो फिर वह टीबी का शिकार हो सकते हैं। लेटेंट टीबी के वयस्क मरीजों के लिए मशहूर दवा कंपनी जीएसके ने एक नया टीका-एम 72/एएस01 ई विकसित किया है। अब तक के नतीजों के मुताबिक यह टीबी से तीन साल तक तकरीबन 54 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि इस टीके के परिणामों के अंतिम नतीजे अभी आना बाकी हैं।

डब्ल्यूएचओ ने 2019 में टीबी से जुड़े स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और टीबी के मरीजों के संपर्क में आने वाले अन्य लोगों तक टीबी के प्रसार को रोकने के लिए सात सिफारिशें की हैं।

1. टीबी के मरीजों की सूची बनाकर सबसे ज्यादा प्रभावित मरीज का सबसे पहले इलाज किया जाना चाहिए।

2. संक्रामक टीबी या उसकी आशंका वाले मरीजों को अलग कमरे में शिफ्ट किया जाना चाहिए ताकि दूसरे उनके संपर्क में न आ सकें।

3. मरीज का इलाज जल्द से जल्द शुरू किया जाना चाहिए।

4. श्वसन स्वच्छता को लेकर जागरूकता बहुत जरूरी है। टीबी के आशंकित और पुष्टि वाले मरीजों को खांसने का तरीका सिखाए जाने की जरुरत होती है।

5. मरीज के कमरे को अपर रूम जर्मिसाइडल अल्ट्रवॉयलेट (जीयूवी) सिस्टम्स, प्रकाश उपकरणों के साथ कीटाणुरहित बनाने की सिफारिश की जाती है। साथ ही कमरे से जुड़ा इलाका भी कीटाणुरहित किया जाना चाहिए।

6: कमरे की हवा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए पोर्टेबल एयर क्लीनर के अलावा कमरे की वेंटिलेशन प्रणाली (प्राकृतिक, मशीनी) को हाई एफिशिएंसी पार्टिक्यूलेट एयर (एचईपीए) फिल्टर्स से जोड़ा जाना चाहिए।

7. श्वसन प्रणाली की सुरक्षा कार्यक्रम के तहत, पार्टिक्यूलेट रेस्पिरेटर, जिसे एयर-प्यूरिफाइंग रेस्पिरेटर या एन-95 रेस्पिरेटर मास्क के नाम से जाना जाता है, की सिफारिश की जाती है। यह विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि टीबी का प्रसार 1 से 5 माइक्रॉन तक के कणों से हो सकता है। एक माइक्रॉन एक मिलीमीटर का हजारवां हिस्सा होता है।