Home स्वास्थ कमर दर्द से परेशान लोगो को आजकल हो रही ये बीमारी

कमर दर्द से परेशान लोगो को आजकल हो रही ये बीमारी

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आजकल ज्‍यादातर लोग कमर दर्द से परेशान रहते हैं. उन्‍हें पता ही नहीं चलता कि कब ये बीमारी सीरियस हो जाती है.इसमें रीढ़ की हड्डी बढ़ जाती है और इससे पीड़ित मरीजों को देर तक बैठने में कठिनाई होती है, क्योंकि रीढ़ की हड्डी सख्त हो जाती है. इस रोग से पीड़ित मरीजों को चलने-फिरने में भी दिक्कत होती है. हैरानी की बात यह है कि भारत में हर 100 लोगों में से एक आदमी एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस पीड़ित है और इस रोग की शिकायत ज्यादातर किशोरों और 20 से 30 साल की उम्र में होती है.

देश में मरीज
विशेषज्ञों की माने तो देश में इसके करीब 10 लाख मरीज हैं, जबकि इससे पीड़ित अनेक मरीजों के वास्तविक आंकड़े प्रकाश में नहीं आते हैं, क्योंकि वे इससे बीमारी से अनजान हैं.

क्‍या होता है
एंकीलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के ज्यादातर मरीज पेनकिलर लेने के बावजूद हड्डियों की अकड़न और दर्द से जूझते रहते हैं, जिससे शरीर की संरचना को नुकसान पहुंचता है
और जोड़ों में सूजन के कारण रीढ़ की हड्डी बहुत सख्त हो जाती है. यह विकलांगता का कारण बनता है और मरीज को अपनी जिंदगी की गुणवत्ता (क्यूओएल) से समझौता करना पड़ता है. इससे निजात पाने के लिए एडवांस्ड थेरेपी प्रभावी होती है.

डॉक्‍टर्स की राय
चेन्नई के स्टेनले मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में रूमैटोलॉजिस्ट डॉ. एम. हेमा ने कहा, ‘जिंदगी को बेहतरीन और खूबसूरत अंदाज में जीना एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस
के ज्यादातर मरीजों के सामने एक चुनौती है. उन्होंने कहा, ‘एंकीलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस का इलाज नहीं होने से मरीजों को चलने-फिरने में तकलीफ हो सकती है. उनको अपनी दिनचर्या के कामों को करने में परेशानी हो सकती है और दफ्तर में लंबे समय तक बैठने में कठिनाई हो सकती है, जिससे मरीज की जिंदगी की गुणवत्ता असर पड़ता है’. उन्होंने कहा, ‘भारत में इसके इलाज के बेहतर विकल्प जैसे बायोलॉजिक्स मौजूद हैं, जो हड्डियों के बीच किसी और हड्डी को बनने से रोकते हैं’.

नई दिल्ली में एम्स के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. दानवीर भादू ने कहा, ‘एंकीलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस एक पुरानी और शरीर में कमजोरी लाने वाली बीमारी है. हालांकि, अलग-अलग कारणों से मरीजों को इसके बेहतर इलाज के विकल्प नहीं मिल पाते.

बायोलॉजिक थेरेपी अपनाकर हम शरीर की संरचनात्मक प्रक्रिया में नुकसान को कम से कम कर सकते है और मरीजों में चलने-फिरने की स्थिति में सुधार कर सकते हैं’.