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करोड़ों के घाटे में गेहूं बेच रही थी कमलनाथ सरकार, अब जानिए मामले ने क्यों पकड़ा इतना तूल

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251 रुपए प्रति क्विंटल घाटे में बेचे जाने वाले दो लाख मैट्रिक टन गेहूं के मामले को लेकर छिड़ा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है. मध्य प्रदेश सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन द्वारा करोड़ों के घाटे में गेहूं बेचने की तैयारी को लेकर अब मंत्रिमंडल समिति फैसला लेगी. इस पूरे मामले को इंदौर हाई कोर्ट में भी घसीटा गया है.

सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन के अध्यक्ष प्रदुम सिंह लोधी ने न्यूज़18 से खास बातचीत में कहा है कि घाटे में गेहूं बेचने का फैसला तत्कालीन कमलनाथ सरकार में हुआ था. सरकार ने टेंडर जारी किए थे, लेकिन एक ही कंपनी ने गेहूं खरीदी को लेकर दिलचस्पी दिखाई थी. उन्होंने बताया कि करोड़ों के घाटे में गेहूं बेचने के मामले को लेकर सीएम शिवराज के निर्देश पर मंत्रिमंडल समूह अब फैसला लेगा. गेहूं बेचने के मामले को लेकर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बिसाहूलाल सिंह, कृषि मंत्री कमल पटेल और सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया की कमेटी का गठन किया गया है. ये कमेटी एक-दो दिन में गेहूं बेचने से जुड़े मामले को लेकर फैसला करेगी और सीएम शिवराज को अपनी अनुशंसा देगी. कॉरपोरेशन के अध्यक्ष प्रदुम सिंह ने कहा कि गेहूं बेचने के मामले में टेंडर डालने वाली पुरानी कंपनी का टेंडर निरस्त किया जाएगा और नए सिरे से टेंडर जारी होगी.

क्या है पूरा मामला

दरअसल साल 2018 में सिविल सप्लाईज कॉरपोरेशन ने समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी की थी. इसकी कीमत 1840 रुपए थी. छह लाख मैट्रिक टन से ज्यादा गेहूं में से दो लाख मैट्रिक टन गेहूं को सरकार ने बेचने का फैसला किया था. इसके लिए जो बेस्ट प्राइस तय की थी वह 1580 थी. समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के बाद घाटे में गेहूं बेचने के राज्य शासन के फैसले पर सरकार को करीब सौ करोड़ रुपए का नुकसान होना तय था. इस पूरे मामले को लेकर बवाल उठ खड़ा हुआ है. वहीं अब खबर इस बात को लेकर है कि घाटे में गेहूं बेचने के मामले के तूल पकड़ने के बाद अब मंत्रिमंडल समूह गेहूं को बेचने को लेकर अंतिम फैसला करेगी.
कड़े नियमों से व्यापारी हो गए थे बाहर

जानकारी के बाद मुताबिक सरकार ने टेंडर नियमों में कड़े नियम और शर्त रखी थीं, जिसके तहत सिर्फ करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी ही इसमें हिस्सा ले सकती थी. टेंडर में जो शर्त रखी थी उसके तहत कहा गया था की फर्म की न्यूनतम नेटवर्थ 100 करोड़ होना चाहिए. सरकार की इस शर्त के कारण सिर्फ मल्टीनेशनल कंपनियों के ही हिस्सा लेने की संभावना बनी थी. जबकि प्रदेश के व्यापारी टेंडर की शर्त के कारण बाहर हो गए थे. ऐसे में पूरे मामले को लेकर मचे बवाल के बाद अब पुराने टेंडर को निरस्त कर नए सिरे से टेंडर जारी किए जाने के संकेत हैं.