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डॉ. राकेश लोढ़ा बोले: पहली और दूसरी लहर में करीब 12 फीसदी बच्चे ही प्रभावित हुए, इसलिए चिंता की कोई बात नहीं

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कोरोना की दूसरी लहर पहली की अपेक्षा बहुत अधिक घातक साबित हुई है। इस लहर ने युवाओं को सबसे अधिक चपेट में लिया, लेकिन सवाल है कि इस लहर का असर बच्चों पर कितना हुआ? इन्हीं सवालों का जवाब एम्स के बाल रोग विशेषज्ञ और पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट के हेड प्रोफेसर राकेश लोढ़ा ने अपने साक्षात्कार के दौरान दिया है। आइए जानते हैं इस विषय पर उन्होंने क्या कहा है।

सवाल: कोविड की दूसरी लहर में बच्चे बहुत अधिक प्रभावित हुए क्या?
जवाब: कोरोना की दूसरी लहर पहली की अपेक्षा ज्यादा घातक साबित हुई। बढ़ी हुई संख्या के अनुपात में ही कोरोना पॉजिटिव बच्चों की संख्या भी अधिक देखी गई। कोविड की पहली लहर के आंकड़े को अगर देखें तो पाएगें कि कुल पॉजिटिव कोविड मरीजों में 11 से 12 फीसदी मरीजों की उम्र बीस साल से कम थी। कोविड की दूसरी लहर में इस अनुपात में अधिक बदलाव नहीं देखा गया। इसलिए बच्चों पर कोविड का प्रभाव अधिक नहीं रहा।

सवाल: क्या तीसरी लहर आएगी तो बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होंगे?
जवाब: बच्चों के संक्रमित होने के जो आंकड़े पहली और दूसरी लहर में थे वही भविष्य की लहरों में भी रहने की संभावना है।

सवाल: पोस्ट कोविड बच्चों में किस तरह की समस्याएं आ रही हैं?
जवाब: उपलब्ध आंकड़े यह भी बताते हैं कि जिन बच्चों को कोविड पॉजिटिव देख गया उनमें पांच फीसदी बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत हुई और जिन बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया गया उनको पहले से ही क्रॉनिक किडनी, क्रॉनिक फेफड़े, लिवर, मेलिगनेंसी और हेमेटोलॉजी संबंधी परेशानियां थीं। ऐसे में बच्चों में पोस्ट कोविड समस्याएं गंभीर रूप ले सकती हैं। जिसे मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम या एमआईएस सी कहा जाता है। देखा गया कि जब बच्चों में कोविड पॉजिटिव की संख्या बढ़ी, इसी दौरान एमआईएस सी के केस भी बढ़ गए, हल्के लक्षण वाले कोविड पॉजिटिव बच्चों की आरटीपीसीआर जांच नेगेटिव देखी गई, लेकिन इनमें कोविड की एंटीबॉडी पाई गई, इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि हमें भविष्य में एमआईएस के अधिक मामलों के इलाज के लिए तैयार होना पड़ेगा।

सवाल: एमआईएस क्या होता है और लक्षण क्या हैं। कोविड पॉजिटिव बच्चों में एमआईएस-सी के कितने मामले देखे गए?
जवाब: यह सिंड्रोम एक साथ कई अंगों को जैसे दिल, लिवर, किडनी आदि को प्रभावित कर सकती है। इसमें तेज बुखार, त्वचा पर चकत्ते, कंजेक्टिवाइटिस, आंखों के अन्य संक्रमण, गंभीर पेट का दर्द आदि लक्षण होते हैं। नौ से दस साल के आयु वर्ग के बच्चे एमआईएससी से अधिक प्रभावित हुए हैं। हालांकि अधिक उम्र के बच्चों को भी एमआईएससी प्रभावित कर सकता है। देश के पूर्वी क्षेत्र में कोविड पॉजिटिव एक हजार बच्चों में एक को एमआईएस-सी सिंड्रोम का शिकार पाया गया।

सवाल: क्या देश में पर्याप्त संख्या में पीडियाट्रिक केयर यूनिट हैं, जिससे कि अधिक संख्या में कोविड पॉजिटिव देखे गए बच्चों का इलाज किया जा सके?
जवाब: देश में पर्याप्त संख्या में पीडियाट्रिक कोविड आईसीयू हैं, लेकिन पीडियाट्रिक बीमारियों के लिए देश में प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी है। देशभर में संबंधित अधिकारी और विभाग पीडियाट्रिक केयर में जरूरत के आधार पर संसाधनों को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। इसके साथ ही इस ओर भी ध्यान देना है कि हम अस्पताल की व्यवस्था कुछ इस तरह कर सकें कि छोटे बच्चे यदि कोविड पॉजिटिव हो तो उनके माता पिता उनके साथ अस्पताल में ही रुक सकें। लेकिन इसके साथ ही माता पिता का भी बच्चों को संक्रमण मुक्त रखने के लिए एहतियात के लिए पर्याप्त कोविड अनुरूप व्यवहार जैसे मास्क का प्रयोग आदि का पालन करना होगा।

सवाल: बच्चों को कोरोना की वैक्सीन देना कितना जरूरी है?
जवाब: कुछ उपलब्ध टीकों की एंटीबॉडी प्रतिक्रिया का अध्ययन करने के लिए बच्चों में परीक्षण शुरू किया गया है। यह परीक्षण अगले कुछ महीनों में पूरा हो जाएगा। यदि वैक्सीन को पर्याप्त इम्यूनोजेनिक पाया गया तो इन्हें बच्चों में प्रयोग की अनुमति दे दी जाएगी। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चों में कोविड संक्रमण हो सकता है, लेकिन उन्हें कोविड की गंभीर स्थिति का संक्रमण हो इस बात की संभावना कम होती है। उपलब्ध वैक्सीन कोविड संक्रमण होने पर संक्रमण की गंभीर स्थिति से बचाने में सहायक होती हैं। इसलिए अधिक जोखिम समूह वाले लोगों को वैक्सीन अवश्य लगाना चाहिए। इसके बाद कम जोखिम समूह वाले लोगों को वैक्सीन दिया जाएगा। एक बार जोखिम वाले समूहों को टीकाकरण से सुरक्षित करने के बाद हम बच्चों को कोविड वैक्सीन दे सकते हैं।

सवाल: महामारी ने बच्चों के शारीरिक विकास के साथ ही मानसिक विकास को भी प्रभावित किया है, इसके प्रभाव को कम करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
जवाब: बिल्कुल सही कहा आपने, महामारी में बच्चों पर कई तरह के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव देखे गए हैं। लेकिन बड़ों के अनुपात में बच्चों पर इसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव बेहद कम है। लेकिन ऐसे कई पहलू हैं जिनका बच्चों पर सीधा प्रभाव पड़ा है। उदाहरण के लिए महामारी की वजह से बीते एक से डेढ़ साल में बहुत से परिवारों की आमदनी या आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है, जिसका असर बच्चों के समग्र विकास, पोषण और शिक्षा पर पड़ा है। स्कूल न खुलने की वजह से बच्चे दोस्तों से नहीं मिल पाए हैं। बच्चों की अपने सहपाठियों के साथ बातचीत सीमित हो गई है। ऐसे में बच्चों को व्यवहार संबंधी कई दिक्कतें हो सकती हैं। इसलिए माता पिता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह घर पर रहते हुए बच्चों को खुशनुमा माहौल दें। बच्चों को कई तरह की शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें। इसके साथ ही ऐसे बच्चे जिन्होंने महामारी में अपने माता पिता को खो दिया है उन्हें इस समय प्रशासनिक सहायता के साथ ही एक परिवार की और सामाजिक सहायता की भी जरूरत है।