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लेबनान में हरीरी का इस्तीफ़ा, बोले- अल्लाह इस मुल्क की मदद करे

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साद हरीरी

लेबनान के मनोनीत प्रधानमंत्री साद हरीरी ने नौ महीने के राजनीतिक गतिरोध के बाद राष्ट्रपति के साथ मतभेदों का हवाला देते हुए अपना पद छोड़ दिया है.

वो संकटग्रस्त लेबनान में सरकार बनाने में असफल रहे.

बुरी तरह आर्थिक संकट और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी क़र्ज़ नहीं मिलने के बीच हरीरी का यूं पद छोड़ना, संकटग्रस्त लेबनान के लिए और मुश्किलें बढ़ा सकता है.

पद छोड़ने से पहले हरीरी ने कहा कि यह स्पष्ट था कि वह राष्ट्रपति माइकल इयोन के साथ कैबिनेट पदों को लेकर सहमत नहीं हो पाएंगे.

पिछली सरकार ने अगस्त में बेरूत में हुए भीषण विस्फोट के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था. इस हादसे में 200 लोग मारे गए थे.

उस वक़्त से ही लेबनान गंभीर आर्थिक मंदी से जूझ रहा है और अब स्थिति और भी बदतर हो गई है.

लेबनान की मुद्रा पूरी तरह से बिखर गई है और उसकी क़ीमत कौड़ी के भाव हो गई है जिसके कारण महंगाई इस क़दर बढ़ चुकी है कि लोग अपने लिए खाना तक मुश्किल से ख़रीद पा रहे हैं. साथ ही ईंधन, बिजली और दवा की आपूर्ति भी कम हो रही है.

विश्व बैंक ने लेबनान की मौजूदा स्थिति के लिए लेबनान के राजनेताओं को ज़िम्मेदार ठहराया है कि वे ही आगे के रास्ते के लिए सहमत नहीं हुए.

दूसरे देशों ने लेबनान को तब तक के लिए सहायता देने से इनकार कर दिया है, जब तक वहां कोई नई सरकार नहीं बन जाती, जो सुधारों को लागू कर सके और भ्रष्टाचार से निपट सके.

साद हरीरी को संसद के सदस्यों ने पिछले अक्टूबर में एक नई सरकार बनाने के लिए नामित किया गया था. महज़ एक साल के भीतर ही उन्होंने आर्थिक संकट के कारण हो रहे सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच अपने पद को छोड़ दिया है.

पश्चिमी समर्थक सुन्नी मुस्लिम राजनेता ने वादा किया था कि वह बहुत जल्दी ही टेक्नोक्रेट्स या ग़ैर-पक्षपातपूर्ण जानकारों की एक कैबिनेट बनाएंगे और वो सुधारों को लागू करेगी.

लेकिन ईरान समर्थित चरमपंथी शिया हिज़्बुल्लाह आंदोलन के ईसाई सहयोगी राष्ट्रपति माइकल इयोन ने हरीरी के कई प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था.

हरीरी ने राष्ट्रपति और उनकी पार्टी पर नियुक्तियों को निर्धारित करके अपने सहयोगियों के लिए वीटो पावर हासिल करने का आरोप लगाया है. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रपति और उनकी पार्टी हरीरी पर भी यही आरोप लग रहे हैं.

बुधवार को उन्होंने 24 टेकनोक्रेटिक मंत्रियों की एक नई सूची सौंपी थी.

लेकिन गुरुवार को एक छोटी बैठक के बाद उन्होंने पत्रकारों से कहा कि राष्ट्रपति ने “मौलिक” परिवर्तन का अनुरोध किया है, जिसे वह स्वीकार नहीं कर सकते.

उन्होंने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति को पुनर्विचार के लिए और समय देने की मांग की थी लेकिन उन्होंने आगे कहा कि “यह स्पष्ट है कि हमारे बीच सहमति नहीं हो पाएगी.”

हरीरी ने कहा, “इसलिए मैंने सरकार बनाने से ख़ुद को अलग कर लिया है. अल्लाह इस देश की मदद करें.”

एक बयान में इयोन ने कहा, “अगर बातचीत का हर रास्ता बंद कर दिया गया है तो एक और दिन लेने का क्या ही फ़ायदा.”

उन्होंने कहा कि वह जल्द ही हरीरी की जगह नए नाम के निर्धारण के लिए परामर्श करने के लिए दिन निर्धारित करेंगे.

लेबनान की धार्मिक सत्ता-साझेदारी प्रणाली के तहत, प्रधानमंत्री एक सुन्नी, राष्ट्रपति एक ईसाई और संसद का अध्यक्ष एक शिया होना चाहिए.

न्यूज़ एजेसी एपी ने अन-नाहर अख़बार के राजनीतिक मामलों के जानकार नबील बौ मोंसेफ के हवाले से लिखा है कि- हरीरी के इस्तीफ़े ने लेबनान के संकट को और बढ़ा दिया है.

वो कहते हैं कि ऐसे समय में प्रधानमंत्री पद के लिए कोई भी नया नाम चुनना बेहद मुश्किल होगा.

वो कहते हैं कि फ़िलहाल जो हालात हैं उन्हें देखते हुए तो लगता है कि हम सरकार बनाने या साद हरीरी का विकल्प खोजने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.

मोंसेफ़ कहते हैं कि हरीरी के पद से हटने से हो सकता है कि राष्ट्रपति माइकल इयोन अपनी जीत के तौर पर देखें लेकिन वास्तव में उन्होंने पूरे देश को संकट में झोंकने का काम किया है.

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के बावजूद हरीरी और इयोन के बीच का गतिरोध ख़त्म नहीं हो सका.

यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख, जोसेप बोरेल ने पिछले महीने लेबनान की यात्रा के दौरान कहा भी था कि राजनीतिक नेताओं के बीच लड़ाई की मुख्य वजह केंद्र में सत्ता संघर्ष और अविश्वास है.

हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि लेबनान के सबसे शक्तिशाली सुन्नी मुस्लिम नेताओं में से एक हरीरी की जगह कौन ले सकता है.

लेबनान की सामुदाय आधारित राजनीतिक व्यवस्था के अनुसार, प्रधानमंत्री को सुन्नियों के रैंक से चुना जाता है.

हरीरी इससे पहले दो बार प्रधानमंत्री के रूप में काम कर चुके हैं. पहली बार 2009-2011 तक. दूसरी बार 2016 में. जब वह इयोन के साथ साझेदारी में आए, उस समय हरीरी ने राष्ट्रपति के लिए इयोन का समर्थन किया था.