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धान खरीद में क्यों हो रही थी देरी? जानें किसानों का कैसे हो रहा था नुकसान

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भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India) के अनुरोध के केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं आपूर्ति वितरण मंत्रालय ने हरियाणा और पंजाब (Haryana and Punjab) में 10 अक्टूबर तक धान (Paddy) की खरीद को इस आधार पर स्थगित कर दिया था. केंद्र सरकार का तर्क था कि इन दोनों राज्यों में भारी बारिश के कारण धान पकने में देरी हुई है और नये आवक में नमी की मात्रा तय सीमा से अधिक है. इसके बाद दोनों राज्यों के किसानों ने आंदोलन की घोषणा की है और शनिवार को हरियाणा में जमकर बवाल हुआ. इस दौरान सीएम मनोहर लाल खट्टर, कृषि मंत्री जेपी दलाल समेत कई मंत्रियों और विधायकों के घरों को घेराव किया. वहीं, पहले से धान खरीद के लिए केंद्र को मनाने में जुटी हरियाणा सरकार (Haryana Government) को शाम होते-होते सफलता मिल गयी और आज यानी 3 अक्‍टूबर से धान खरीद का दौर शुरू हो गया है.

इस साल धान की बुवाई की आधिकारिक तारीख पंजाब में 10 जून और हरियाणा में 15 जून थी. इस साल दोनों राज्यों में लगभग 31 लाख हेक्टेयर (गैर-बासमती परमल चावल) की बुवाई हुई थी, जिसमें पंजाब में लगभग 25- 26 लाख हेक्टेयर और बाकी हरियाणा में हुई. वहीं, करीब 11-12 लाख हेक्टेयर में बासमती चावल के तहत बुवाई हुई है, जिसमें पंजाब में 4.61 लाख हेक्टेयर शामिल हैं. सरकार द्वारा केवल धान की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जाती है. जबकि दोनों राज्यों में बासमती की खरीद निजी कंपनियों/बासमती निर्यातकों द्वारा की जाती है.

फसल को सामान्य तौर पर किस समय पकना चाहिए?
आज किसान कई छोटी अवधि की किस्मों में से किसी एक को चुनते हैं जो बेहतर उपज प्रदान करती है. पंजाब में किसान मुख्य रूप से 93 से 110 दिनों में परिपक्व होने वाली किस्मों को पसंद करते हैं, जिसमें 20-25 दिनों की नर्सरी अवधि शामिल नहीं है, जब बिचड़ा उगाया जाता है और फिर तय तिथि (10 जून और 15 जून) से खेतों में रोपा जाता है. छोटी किस्में सितंबर के अंत तक परिपक्व होने लगेंगी.
लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के अनुसार, पंजाब में धान का 70 फीसदी से अधिक क्षेत्र अब छोटी अवधि की किस्मों के लिए है. जबकि 160 दिनों में पकने वाली पूसा-44 जैसी पारंपरिक किस्मों के लिए बहुत कम क्षेत्र बचा है. इसके अलावा दोनों राज्यों में संयुक्त रूप से लगभग 6 लाख हेक्टेयर डीएसआर यानी सीधी बुवाई के अधीन है. हालांकि डीएसआर की बुवाई की औपचारिक तिथि 1 जून थी, किसानों ने 20 मई के बाद ही बुवाई शुरू कर दी थी, क्योंकि डीएसआर को बुवाई के बाद कम से कम तीन सप्ताह तक खेत में पडलिंग प्रोसेस के साथ-साथ स्थिर पानी की आवश्यकता नहीं होती है.
सरकार के इस कदम से किसान क्यों हुए खफा?
यदि किसान पहले से पकी हुई फसल की कटाई में 11 दिन की देरी करते हैं, तो बालियों से दाना गिर जाएगा और उपज कम हो जाएगी. अगर वे इसे प्राइवेट व्‍यापारियों को बेचते हैं, तो उन्हें 1,960 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर भुगतान नहीं किया जाएगा. बहुत से किसानों को यह क्षमता नहीं है कि वे समय पर फसल काट लेने के बाद चावल को स्टोर कर सकें.

भारती किसान यूनियन (बीकेयू), दकौंदा के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘खरीद में देरी करके सरकार चाहती है कि किसान पहले से पकी हुई फसल को निजी व्‍यापारियों को बेचें. उसके बाद ही वह बाजार में प्रवेश करेगी.’ उन्‍होंने कहा कि 2019 में अक्टूबर के पहले सप्ताह में भारी बारिश के बाद भी धान की खरीद में पहले कभी देरी नहीं हुई. जबकि अमृतसर के अटारी गांव के किसान किरणदीप सिंह ने कहा, ’16 एकड़ में मेरा सारा धान कटाई के लिए तैयार है और मैं 1 अक्टूबर के आने का इंतजार कर रहा था. अब मैं उलझन में हूं, क्योंकि देरी से कटाई से उपज का नुकसान होगा और एक प्राइवेट व्‍यापारियों ने मुझे केवल 1500-1600 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश की अर्थात एमएसपी की तुलना में 460-360 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान होगा.’ जबकि संगरूर जिले के जगदीप सिंह ने कहा कि आलू और हरी मटर की बुवाई में भी देरी होगी, क्योंकि इनकी बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह में धान की कटाई के बाद की जाती है. वैसे सभी छोटी और लंबी अवधि की किस्में, जो 15 अक्टूबर तक पक जाएंगी, 11 अक्टूबर को मंडियों में पहुंच जाएंगी, तो फसल रखने के लिए शायद ही कोई जगह होगी. यहां तक कि जब खरीद सामान्य तौर पर होती है, तब भी ऐसे दिन होते हैं जब मंडियों में जगह नहीं होती है.