Home धर्म - ज्योतिष धर्म का मार्ग इच्छाओं को जितना सिखाता है 

धर्म का मार्ग इच्छाओं को जितना सिखाता है 

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भाव लिंगी संत आचार्य विमर्शमागर जी महामुनिराज

जतारा – धर्मनगरी जतारा में विराजमान परम पूज्य आचार्य विमर्श सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा,भो जिनागम पंथी भव्यात्माओं ! धर्म का मार्ग इच्छाओं को जीतना सिखाता है, लेकिन धर्म हमारी भावनाओं को अवश्य पूर्ण करता है। इच्छाओं को पैदा करना अपने ही ऊपर निर्भर है आप इच्छा कर में कि मैं राज भोग को प्राप्त करूं, में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति बनूं, करलो, इच्छायें ही तो करना है। एक बात हमेशा ध्यान रखना इच्छायें, मात्र करते रहने से से पूर्ण नहीं हो जाती, लेकिन आप यदि धर्म की शरण को प्राप्त होते हैं तो आपकी सम्पूर्ण इच्छायें अवश्य पूर्ण होगी। आज भले ही कोई प्राणी प्रलोभन में आकर धर्म क्रियायें करना प्रारंभ कर दें, धर्म पालन करते हुए जब प्राणी धर्म की सत्यता से परिचित होते है तो उनकी वह धर्म क्रिया प्रलोभन वस न होकर आत्म कल्याण के लिए हुआ करती है। धर्म की वास्तविकता से परिचित हुए विना, प्राणी सतत अनित्य भावना का चिंतन किया करते हैं। बन्धुओं! धर्मात्मा जीव विचार करते हैं कि पूर्व कर्मोदय से आज मुझे पाँच इन्द्रियों की पूर्णता प्राप्त हुई है, भले नौकर-चाकर धन-वैभव आदि जो भी संपत्तियां प्राप्त हुई है ये सब धन-वैभव आकाश में उत्पन्न हुए इन्द्रधनुष की तरह क्षण भर मे नाश को प्राप्त हो जाने वाला है। बन्धुओं! आज आपकी आंख अच्छे से देख पाती है तो जिनदेव, सद्गुरुओं के पावन दर्शन करते हुए अपने नेत्रों को सफल कर लेना, आज यदि आपके कान में ये शब्द गुंजायमान हो रहे हैं, आपकी इंद्रियां ठीक से काम दे रही है तो इस कर्णेइंद्रिय से भगवान का गुणगान, जिनवाणी, गुरुवाणी ही सुनना, कभी दूसरों की वुराई, निंदा-चुगली आदि खोटे वचन कभी मत सुनना । अपने मुख से महापुरुषों का गुणगान करना, कभी अपशब्द- खोटे वचन मुख से मत निकालना। यदि आपने अपनी इन्द्रियों का भरपूर सदुपयोग किया तो निश्चित ही आपके द्वारा इन्द्रियों को प्राप्त करना सार्थक हो आएगा । ये इन्द्रियाँ आपके कल्याण मे भी निमित्त बन सकती है और इन्द्रियों के दुरुपयोग से जीवन अंधकार मय भी बन सकता है।

भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि, जन्म भूमि जतारा में नगर गौरव आचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज के सानिध्य में ग्रीष्म कालीन वाचना चल रही हैं, साथ ही साथ प्रतिदिन प्रातः, अति प्राचीन चतुर्थकालीन जिन प्रतिमाओं की भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से महार्चना  संपन्न हो रही है ।संपूर्ण भारतवर्ष से,आचार्य गुरुवर के भक्तगण जन्मभूमि पर पधारकर  अपने सौभाग्य का वर्धन कर रहे हैं । भक्तामर विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्रीमति गुणमाला-सुरेन्द्र जैन (पट्टू)श्रीमति प्रेमलता-सुनील श्रीमति मोनिका-सौरभ, अविनाश,प्रिंस,अर्हम एवं समस्त रानीपुर परिवार जतारा को प्राप्त हुआ ।आचार्य श्री की जन्मभूमि पर तैयार हो रहा है भव्यातिभव्य श्री जिन मंदिर।