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विषय,कषाय और परिग्रह के त्याग करने पर आप आत्मानंदी होंगे – आचार्य श्री वर्धमान सागर महाराज

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शुद्ध आत्मा कर्मों से मलिन होती है

उदयपुर – अभी धर्म सभा में आपने भेद विज्ञान का उपदेश सुना। भेद विज्ञान को भली-भांति समझने की जरूरत है क्योंकि भेद के साथ विज्ञान भी जुड़ा है आधुनिक समय का विज्ञान और तीर्थंकर देवों के विज्ञान में अंतर है । आचार्य श्री ने भेद विज्ञान पर चर्चा करते हुए बताया कि आत्मा और शरीर हमारे पास है हमारे शरीर में आत्मा निवास करती है आत्मा शरीर के अनुसार संकुचित या विस्तृत होती है, पेंसिल के डॉट बराबर भी जीव होता है अर्थात पेंसिल के डॉट बराबर भी आत्मा होती है । गजू भैय्या ,राजेश पंचोलिया के अनुसार आचार्य शिरोमणी श्री वर्धमान सागर महाराज ने मंगल देशना में आगे बताया कि दुख और सुख यह शरीर का विषय है क्योंकि आत्मा अजर अमर है आत्मा पैदा नहीं होती, आत्मा मरती नहीं। हर जीव को उसके कर्म अनुसार पर्याय मिलती है ,आत्मा शुद्ध स्वरूप है कर्म आश्रव और परिणामों के कारण आत्मा मलिन होती है।

आत्मा की मलिनता दूर करने के लिए धर्म पुरुषार्थ से आपको परिणामों में निर्मलता लाकर कर्मों में कमी करना होगा इच्छाओं से रहित होने पर ही मोक्ष पुरुषार्थ होता है शरीर का संसार का आवागमन कम करने के लिए धर्म पुरुषार्थ करना होगा। वर्तमान संसारी प्राणी विषयानंदी ,कषाय नंदी  और परिग्रह नंदी है, जब  संसारी प्राणी विषय ,कषाय और परिग्रह से दूर  होंगे तभी वह आत्मा नंदी होंगे अर्थात मोक्ष गामी होंगे। कार्यक्रम का संचालन प्रकाश सिंघवी ने किया । इसके पूर्व मंगलाचरण के बाद आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन रजत अखावत,शास्त्र भेट श्याम सुंदर अखावत, आरती सुरेश राजकुमार पद्मावत परिवार द्वारा  की गई।

– अभिषेक जैन लुहाड़िया