Home धर्म - ज्योतिष मुनि श्री अजित सागर महाराज भाग्योदय में प्रवचन करते हुए

मुनि श्री अजित सागर महाराज भाग्योदय में प्रवचन करते हुए

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संत समागम में रहने वाला संतोषी बन जाता है- मुनि श्री अजितसागर

सागर – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज सामान्य श्रावको के लिए कहते हैं तुम अगर संत समागम में रहो संत संगति में बैठो तो तुम्हें फायदा होगा संत समागम की यही सार्थकता है संत बने या ना बने परंतु संतोषी अवश्य बन जाता है यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ मैं अपने प्रवचनों के दौरान कही मुनि श्री ने कहा कि आप आचार्य श्री के चरण स्पर्श तो करते हैं परंतु आचरण स्पर्श नहीं कर पाते हैं उन जैसा अपने आप को बना ले वे विरले जीव होते हैं । सागर जिला गुरुदेव के आचरण छूने वालों में सबसे ज्यादा है यहां से मुनि महाराज, आर्यिकाएं और क्षुल्लक महराजो की संख्या सबसे ज्यादा है। आचरण की दृष्टि से देखें तो सागर में रत्न बहुत निकले है और सर्वप्रथम नाम समाधिस्थ मुनि क्षमा सागर महाराज का आता है मुनि श्री ने कहा 1993 में पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव का आयोजन हुआ था तब एक खेत में भाग्योदय तीर्थ का शिलान्यास हुआ था खेत का उदय हुआ और वहां पर भाग्योदय बन गया। भाग्योदय तीर्थ जैन समाज की महान धरोहर है। मानव सेवा, स्वास्थ्य सेवा यहां पर गुरुदेव के आशीर्वाद से चल रही है सागर की शान और गौरव है भाग्योदय, इसी प्रकार गुरुदेव ने भाग्योदय तीर्थ पर ही सर्वतोभद्र जिनालय के लिए आशीर्वाद दिया है यह भी इतिहास के लिए धरोहर बनेगा और आने वाली पीढ़ी इसका संरक्षण करेगी। मुनि श्री ने कहा सागर में 93 के पंचकल्याणक के बाद उस समय 16 लाख रुपए की राशि बचत हुई थी तब आचार्य श्री के आशीर्वाद से उस राशि का उपयोग अंतरिक्ष पारसनाथ सिरपुर में किया गया था और 30 वर्ष बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वहां के मंदिर के बंद दरवाजे अब खुल गए हैं जिसने जितना दान दिया है वह उतना ऊपर बड़ा है। इसलिए दान देने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

आर्यिका अकंपमति माताजी ने कहा कि नर्मदा नदी जहां से निकली है वहां उसका स्वरूप बूंद बूंद जैसा है और धीरे-धीरे धारा बन गई  फिर अनेक धाराएं मिलकर के नदी बन गई और नदी ने सागर में अपने आप को विलीन कर दिया किसी ने नदी से पूछा कि अपने आप को समुद्र में क्यों बिलीन कर दिया तो नदी कहती है कि मैं अनंत की यात्रा पर जा रही हूं बूंद है तो सागर है और सागर में बूंद है आचार्य श्री ने मूक माटी महाकाव्य में लिखा है बूंद मिटती है तो सागर बनती है और मिट्टी पिटती है तो गागर बनती है। सत्य का कभी विनाश नहीं होता है सत्य हमेशा बना रहता है माताजी ने कहा अहंकार का विसर्जन करना है शांति को प्राप्त करना है तो प्रभु के चरणों में अपने को विलय कर दें क्योंकि यही मोक्ष मार्ग है और गुरुदेव के माध्यम से हम सबको यह पुण्य अवसर मिला है आचार्य श्री विद्यासागर महाराज खुली किताब है गुरुदेव ने जितने संस्कार बुंदेलखंड में दिए हैं और बुंदेलखंड से ही अनेक साधु उनके संघ में शोभायमान हैं बुंदेलखंड विदेह क्षेत्र जैसा लगता है।

धर्मसभा का संचालन मुकेश जैन ढाना ने किया।