Home धर्म - ज्योतिष साधु और श्रावक धर्म के दो पहिए हैं मुनि श्री अजितसागर

साधु और श्रावक धर्म के दो पहिए हैं मुनि श्री अजितसागर

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सागर – श्रावक और साधु धर्म के दो पहिए होते हैं एक पहिया पर ना तो धर्म चल सकता है और ना ही वाहन इसी प्रकार धर्म का अर्थ चर्तुविद संघ के साथ चलता है धर्म की गाड़ी को आगे बढ़ाना है तो साधु और साधक दोनों का रहना आवश्यक है यह बात बाहुबली कॉलोनी में मुनि श्री अजितसागर महाराज ने अपने प्रवचन में कही उन्होंने कहा श्रावक परंपरा को चलाने वाले व्यक्ति की प्रशंसा हुई है और जिन्होंने इसे प्रारंभ किया था वे भरत चक्रवर्ती थे कुछ श्रावक ऐसे थे जो अहिंसा धर्म का पालन करने वाले थे एक बार एक राजा ने खबर भिजवा दी कि राजा आज दान करेंगे कोई भी आकर ले जा सकता है एक रास्ता हरी घास वाला था और दूसरा रास्ता टेड़ा मेडा लेकिन सूखा और लंबा था अहिंसा धर्म को पालन करने वाले सूखे और लंबे रास्ते से राज महल पहुंचे तब तक वहां पर धन समाप्त हो गया था राजा भरत चक्रवर्ती ने उनसे कहा कि आप लोग लेट हो गए हैं उन्होंने कहा हरी घास पर चलकर आते तो असंख्य जीवो की मृत्यु होती उससे अच्छा अहिंसा धर्म का पालन करते हुए हम लोग लंबे रास्ते से आए हैं भरत चक्रवर्ती को ही प्रथम श्रावक श्रेष्टि माना जाता है मुनि श्री ने कहा आपके पास जो प्रॉपर्टी है संपत्ति है वह धर्म के क्षेत्र में लगने वाली कम है नहीं लगना हो तो वह अधर्म के क्षेत्र में लगती है यह सब पाप और पुण्य के कारण होता है आज की स्थिति में लोगों ने शादी को भोगो का विषय बना दिया है जबकि शादी विषय भोगों कि नहीं बल्कि पाणिग्रहण संस्कार कहा जाता है 

मुनि श्री ने कहा बहू को बहुमान के साथ घर लाएं विषय भोगों के साथ नहीं, अन्यथा धर्म का रथ आगे बढ़ने वाला नहीं है मुनि श्री ने कहा अगले भव की दुर्गति को मिटाना है तो दान करना सीखो दान दरिद्रता का नाश करता है देव शास्त्र गुरु के लिए लगने वाला द्रव्य यही सच्चा पुण्य है 20 जून को मुनि संघ का प्रवास बाहुबली कॉलोनी में रहेगा जबकि 21-22 जून को मुनि संघ वर्णी कॉलोनी में विराजमान होगा यह जानकारी मुकेश जैन ढाना ने दी।