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रक्त का संबंध अशुद्धि और भक्त का संबंध पवित्रता लाता है – श्रमणाचार्य विमर्श सागर जी महा मुनिराज       

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जन्मभूमि पर हुआ दो संघो का परस्पर वात्सल्य मिलन

जतारा – अतिशय क्षेत्र, पूज्य आचार्य गुरुवर विमर्श सागर जी महाराज की जन्मभूमि जतारा नगरी में भोथरे जी (भूगर्भ) से प्राप्त- 1008 देवाधिदेव श्री आदिनाथ भगवान की जिनप्रतिमा हजारों वर्ष प्राचीन हैं। दिगम्बर जैन मंदिर जतारा में, चतुर्थ कालीन ऐसी ही अनेक जिन प्रतिमायें विराजमान हैं। सम्पूर्ण भारत वर्ष से प्रतिदिन बाबा के अतिशय कारी दरबार में सैकड़ों भक्तगण पहुंचकर अपनी मनोकामनायें पूर्ण कर रहे हैं।परम पूज्य भावलिंगी संत, आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज अपनी जन्मभूमि धर्मनगरी जतारा मे विराजमान हैं। वर्ष 2023 का स्वर्णिम वर्षायोग जन्मभूमि जतारा को प्राप्त हो रहा है। आचार्य श्री ससंघ के सानिध्य में हर रोज बरष रहा है धर्म का अमृत । 18 जून, रविवार को प्रातः काल की बेला में परम पूज्य आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज की चरण बन्दना करने के लिए पद विहार करते हुए मुनि श्री विश्रांत सागर जी एवं मुनि श्री विनिवेश सागर जी द्वष मुनिराज संघ सहित पधारे। 

दोनों संघों का वात्सल्य मिलन देखकर भक्त समूह झूम उठा, मुनि द्वय ने आचार्यश्री के चरणों में बैठकर अपनी भक्ति प्रदर्शित की। मुनिश्री विश्रांत सागर जी ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा, इस जतारा नगर में 50 वर्ष पूर्व राकेश जैन का जन्म हुआ था लेकिन मैं कहता हूँ आपकी जतारा नगरी में कोई सामान्य पुरुष का जन्म नहीं हुआ था आपके नगर में वर्तमान के भगवान आचार्य विमर्श सागर मुनिराज का जन्म हुआ था।आज आपके नगर का नाम एक मात्र आचार्य श्री के नाम से ही जाना जाता है। मुनिश्री ने अपने उद्बोधन के पश्चात आचार्य श्री के चरणों में निवेदन किया कि आप हमें अपनी पवित्र वाणी से अभिसिंचित करें। आचार्यश्री में अपना मंगल आशीर्वाद देते हुए कहा,इस धरा पर जो भी प्राणी जन्म लेते हैं वे रक्त का सम्बंध लेकर जन्म लेते हैं,जन्म होते ही आपके परिवार में सूतक (अधुद्धि) हो जाता है और जब जीवन के पश्चात मरण होता है तब भी आपके परिवार में पातक (अशुद्धि)हो जाती है, रक्त का सम्बंध कभी शुद्धि प्रदान नहीं करता। जन्म लेने के बाद एक होता है भक्त का संबंध,भक्त का संबंध पवित्रता का संबंध हुआ करता है जो जुड़ने पर भी पवित्रता प्रदान करता है और जीवन के अंत समय में भी सम्पूर्ण जीवन का सार उत्तम समाधिमरण को प्रदान करता है जो पवित्रता का प्रतीक है। रक्त का संबंध आपका अनादि से बनता आया है, इस दुर्लभ मनुष्य भव को पाकर, अब भक्त का संबंध भगवान और गुरु से बना लेना जिससे पुन: इस अशुद्ध रूप रक्त के संबंध में न गिरना पड़े । भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष एवं जैन समाज जतारा उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि पूज्य आचार्य गुरुवर ससंघ के सानिध्य में भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्री मति कमलेश-अक्षत जैन छवि, कीर्ति,आयशा जैन आगरा, ज्ञानचंद, सुधा, राहुल, रोहित, प्रवीण, छोटू, शिवानी जैन टीकमगढ़ एवं जिया, धैर्या, नेहा, अमित कुमार जैन दुर्ग-भिलाई परिवार को प्राप्त हुआ ।