रायपुर – जीवन में पेशेंस होना जरूरी है । काेई अगर अपनी बात कह रहा है तो उसे चुपचाप सुनें । सुनने का पेशेंस आपके भीतर आ गया तो सॉल्यूशन मिल जाएगा । अगर आपके अंदर ये नहीं है तो जीवन में प्रॉब्लर्म ही प्रॉब्लर्म है । टैगोर नगर के श्री लालगंगा पटवा भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने ये बातें कही । उन्होंने एक प्रसंग बताते हुए कहा, राजा ने महिसार को देश निकाला दे दिया था। महिसार वापस लौटा। पूरा संघ उसे लेकर राजा के पास जाता है। राजा उसे देख रहे हैं। सोचिए कि उन पर क्या बीती होगी कि जिस व्यक्ति जिसे देश निकाला दे दिया गया है, वह राजाज्ञा का उल्लंघन करते हुए उनके सामने खड़ा हो गया है। फिर भी राजा चुप रहे। संघ प्रमुख ने उनसे कहा, महिसार अब अकेला नहीं है। पूरा संघ उसके साथ खड़ा है। ये सुनते ही महिसार को लगा कि मेरा मरण टल गया। आखिरकार सचमुच उसका मरण टल गया। इस कहानी से दो संदेश मिलते हैं कि हर व्यक्ति को धीरज रखना चाहिए। अगर ऐसा हो जाए तो कितने ही घरों में होने वाले महाभारत टल जाएं। अगर राजा ने उस दिन पेशेंस नहीं रखा होता और महिसार को मृत्युदंड दे दिया होता तो सोचिए कि उन्हीं की जनता उनके खिलाफ नहीं हो जाती? दूसरा संदेश ये कि संघ की शक्ति को पहचानिए। ये हमारा पर्सनल एक्सपीरियंस है कि जब कभी हम 2-4 लोग पैदल विहार कर रहे होते हैं तो कुत्तों का झुंड हमें देखकर भौंकता है। जब संघ हमारे साथ चलता है तो कुत्तों का झुंड दूर से ही देखकर हमें भाग जाता है। यानी संगठन में शक्ति है।
बिना पूछे सलाह मत दीजिए इससे बात बिगड़ भी सकती है
संतश्री ने कहा, हम अक्सर देखते हैं। जब कभी हम कहीं बैठे होते हैं तो हमारे ईर्द-गिर्द कई बार कुछ विद्वान भी बैठे होते हैं। कोई व्यक्ति अपनी समस्या बता रहा होता है तो वे विद्वान बीच में ही टोंककर समाधान बताने लगते हैं। ये गलत है। आपने उसकी पूरी समस्या सुनी भी नहीं और समाधान बताने लगे। उसे यदि आप से ही पूछना होता तो वह हमारे पास क्यों आता? आपके पास ही नहीं चला जाता। परमात्मा ने फरमाया है कि बिना पूछे कुछ मत बोल। परमात्मा ने और जोर देते हुए कहा है कि बिना पूछे एक शब्द भी मत बोल। कई बार ऐसा होता है कि दूसरों के सलाह की वजह से पूरी ट्रेन ही दूसरी ट्रैक पर चली जाती है और बनती बात भी बिगड़ जाती है। इसीलिए परमात्मा का छोटा सा मंत्र याद रखिए, बिना पूछे कुछ मत बोलो।
धर्म को भी जान, अधर्म को भी तब जाकर ही कोई फैसला ले
संतश्री ने कहा, पाप को भी जान। पुण्य को भी जान। धर्म को भी जान। अधर्म को भी जान। जानने का एक ही रास्ता है और वो दिमाग नहीं है। हम किसी बात को सुनकर ही जान सकते हैं। जब कोई बात जान गए तो उसे समझने में आसानी होगी। बिना जाने दिमाग से फैसले लेने लगे तो मूल बात कभी समझ नहीं आएगी। एक बार बात समझ आ गई, उसके बाद ही कोई फैसला करिए। तभी आप तय कर पाएंगे कि क्या सही है और क्या गलत? जीवन में कभी प्रिय को मत चुनना। उसे ही चुनना जो श्रेष्ठतम है। इस छोटे से सूत्र को गांठ बांधकर रख लीजिए क्योंकि जो प्रिय को चुनता है वो किसी न किसी गलत चक्कर में जरूर फंसता है।