Home समाचार ट्रंप ने मोदी को क्यों दिया झटका, भारत को नुकसान कितना

ट्रंप ने मोदी को क्यों दिया झटका, भारत को नुकसान कितना

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अमरीका ने मंगलवार को अपनी ‘जीएसपी स्कीम’ में बदलाव करते हुए भारत को इससे बाहर करने का फ़ैसला किया है, जो कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक साबित हो सकता है.

पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के लिए भी ये क़दम काफ़ी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ट्रंप सरकार ने ये फ़ैसला आम चुनाव से ठीक पहले किया है. ऐसे में केंद्र सरकार के पास इसका जवाब देने के लिए पर्याप्त समय नहीं है.

बीजेपी अब तक अपनी सरकार की विदेश नीति को सफल बताती आई है, लेकिन ट्रंप सरकार के इस फ़ैसले को मोदी सरकार की असफलता के रूप में देखा जा सकता है.

आख़िर ट्रंप ने क्या फ़ैसला किया?

अमरीकी सरकार अपनी प्रिफ्रेंशियल ट्रेड पॉलिसी (कारोबार में तवज्जो) के जनरल सिस्टम ऑफ़ प्रिफरेंसेज़ में से भारत को बाहर निकाल रही है.

अब तक इस नीति की वजह से भारत से अमरीका जाने वाले 1930 उत्पाद अमरीका में आयात शुल्क देने से बच जाते थे.

इस बदलाव से अमरीका में भारत की हस्तशिल्प चीज़ें, केमिकल, मतस्य पालन से जुड़े उत्पाद और कृषि आधारित उत्पादों को आयात शुल्क देना पड़ेगा.

अगर इसके असर की बात करें तो इससे हज़ारों नौकरियों पर संकट आ सकता है.

दरअसल, साल 1970 के दशक में अमरीकी सरकार ने विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत करने के मंसूबे के साथ इस नीति को अपनाया था.

इस नीति के तहत विकासशील देश अपने कुछ उत्पादों को बिना आयात शुल्क दिए अमरीका को निर्यात कर सकते थे.

दुनिया भर में भारत ने इस नीति का सबसे ज़्यादा फ़ायदा उठाया है.

भारत पर इस फ़ैसला का असर

फेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के अध्यक्ष गणेश कुमार गुप्त बताते हैं, “जीएसपी से बाहर निकाले जाने से कई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स की प्रतिस्पर्धा को नुक़सान होगा. साथ ही साथ इससे उपभोक्ताओं को भी नुक़सान होगा. ज़्यादातर केमिकल उत्पादों की क़ीमत पांच फ़ीसदी की दर से बढ़ने की संभावना है जो कि भारत के कुल निर्यात का एक बड़ा हिस्सा है.”

वो कहते हैं, ”इसके साथ ही इस क़दम से अमरीका की ‘इंपोर्ट डायवर्सिफिकेशन’ नीति भी प्रभावित होगी, जिससे वह विकासशील देशों के मुख्य सप्लायर के रूप में चीन की जगह लेने की चाहत रखता है.”

अमरीकी राष्ट्रपति चाहते क्या हैं?

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप लगातार टैरिफ़ ड्यूटी को लेकर भारत को निशाना बनाते आए हैं. बीते साल अक्टूबर में उन्होंने भारत को टैरिफ़ किंग की उपाधि भी थी और अमरीकी उत्पादों के लिए खुली छूट देने की मांग उठाई थी.

अमरीका बीते काफ़ी समय से मेडिकल डिवाइसों पर लगने वाले प्राइसिंग कैप को हटाने की मांग कर रहा है जिससे अमरीकी कंपनियों को नुक़सान हो रहा है.

इसके साथ ही अमरीका चाहता है कि भारत अमरीका से आने वाले आईटी उत्पादों और कृषि क्षेत्र से जुड़े उत्पादों को अपने बाज़ार में ज़्यादा पहुंच उपलब्ध कराए.

अमरीकी सरकार ये भी चाहती है कि भारत डेयरी उत्पादों पर लगी हुई अपनी शर्त हटाए जिसके तहत उन जानवरों के ख़ून से बनी चीज़ें ना खिलाने की शर्त है जिनसे डेयरी उत्पाद पैदा किए जा रहे हैं.

 

भारत क्या कर सकता है?

भारत के वित्तीय सचिव अनूप वाधवान ने बीबीसी से कहा कि अभी तक दोनों देश कोई बीच का रास्ता निकालने के लिए वार्ता की प्रक्रिया में हैं.

उन्होंने अमरीकी उत्पादों पर लगाए गए करों का बचाव करते हुए कहा कि ये डब्ल्यूटीओ के लिए बंधी हुई दरों के अनुसार ही हैं.

बीबीसी से बात करते हुए वाधवान ने कहा, “हम अमरीका से बात कर रहे थे और अमरीका के कृषि उत्पादों, डेयरी उत्पादों और सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों को बाज़ार तक सशर्त पहुंच देने और मेडिकल उपकरणों की क़ीमत तय करने के लिए तैयार थे लेकिन दुर्भाग्यवश अमरीका के साथ वार्ता के नतीजे अलग नहीं आ सके. हमारे व्यापारिक रिश्ते अच्छे बने हुए हैं, व्यापार वार्ता पर भी कोई असर नहीं हुआ है.”

उन्होंने कहा कि जीएसपी हटाए जाने का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ज़्यादा नहीं होगा और ये 19 करोड़ डॉलर तक ही सीमित रहेगा.

इससे व्यापार संबंधों पर क्या असर होगा?

भारत और अमरीका के राजयनिक संबंधों के केंद्र में व्यापार ही है. अमरीकी आंकड़ों के मुताबिक़ दोनों देश सालाना 126.2 अरब डॉलर का व्यापार करते हैं. लेकिन हाल के दिनों में संरक्षणवादी आवाज़ें तेज़ी से उठी हैं.

बीते साल, भारत से आयात होने वाले स्टील और एल्यूमुनियम पर कर बढ़ा दिए थे. इसके जबाव में भारत ने भी 29 अमरीकी उत्पादों पर कर बढ़ाए थे जिनमें बादाम भी शामिल हैं. लेकिन भारत ने ये बढ़े हुए कर कुछ अच्छा समाधान होने की उम्मीद में लागू नहीं किए.

भारत ने हाल ही में नई ई-कॉमर्स नीति भी जारी की जिससे भारत में व्यापार कर रहीं अमरीकी कंपनियों एमज़ॉन और वॉलमॉर्ट के व्यवसाय पर असर हुआ है. इससे भी दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों में तनाव आया.

इसके बाद भारत में डेटा को लेकर नए नियम लाए गए जिनके तहत भारत में व्यापार कर रहीं मास्टरकार्ड और वीज़ा जैसी कंपनियों से कहा गया कि वो भारतीयों से जुड़े डेटा को भारत में ही रखें. इससे इन कंपनियों के बिज़नेस मॉडल पर असर हुआ है.

अब अमरीका ने जो ये नया क़दम उठाया है इससे दोनों देशों के रिश्तों में व्यापारिक तनाव और बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं.

 

आगे क्या?

अमरीका ने भारत के लिए जीएसपी फ़ायदों को रोकने के लिए साठ दिनों का समय दिया है. भारत को उम्मीद है कि इसी दौरान वार्ता करके कुछ हल निकाल लिया जाएगा. दोनों ही ओर के व्यापारिक संगठन को उम्मीद है कि जल्द ही कोई रास्ता निकलेगा.

यूएस-इंडिया बिज़नेस काउंसिल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “जीएसपी कार्यक्रम को अमेरीकी चैंबर से मिल दीर्घकालिक समर्थन को ध्यान में रखते हुए, यूएसआईबीसी मांग करता है कि भारत के लिए जीएसपी फ़ायदे ज़ारी रखे जाएं. दोनों देशों के बीच कई गंभीर व्यापारिक विवादों के बावजूद, भारत और अमरीका दोनों को ही जीएसपी कार्यक्रम के तहत हुए व्यापार से फ़ायदा पहुंचा हैं.”

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