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लालू के आदेश पर आडवाणी को गिरफ्तार करने वाला ये अफसर अब है बीजेपी सरकार में मंत्री

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कई बार बीजेपी की राजनीतिक सफलताओं का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी से ज्यादा लालकृष्ण आडवाणी को दिया जाता है. उसमें भी उनकी रथयात्रा को बीजेपी के कार्यकर्ता बड़े फख्र से याद करते हैं. लेकिन उतना ही याद किए जाते हैं उन्हें गिरफ्तार करने वाले लालू प्रसाद यादव. फिलहाल लालू प्रसाद यादव की आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना: माइ पॉलिटिकल जर्नी’ चर्चा में है. इसमें लालू प्रसाद यादव ने कहा है कि उन्होंने आडवाणी की गिरफ्तारी में बाधा डालने वाले को गोली मारने का आदेश दिया था.

बिहार में आडवाणी को 23 अक्टूबर की सुबह ही गिरफ्तार कर लिया था. लालू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि आडवाणी जी ने कहा था, ‘देखता हूं, कौन माई का दूध पिया है, जो मेरी रथयात्रा रोकेगा’. मैंने नहले पर दहला मारा, ‘मैंने मां और भैंस, दोनों का दूध पिया है… आइए बिहार में, बताता हूं’

ऐसा बिहार में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बनाए रखने के लिए किया गया था. लालू लिखते हैं कि पिछली सरकारों की नाकामी से बिहार एक दंगाग्रस्त राज्य बन चुका था. आरएसएस-भाजपा के रामशिला पूजन के जुलूस की वजह से अक्तूबर, 1989 में भागलपुर में हुए दंगे में लगभग 1,500 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि हम आपको आडवाणी की अयोध्या में राममंदिर बनाने के लिए की जा रही इस रथयात्रा के अलग-अलग पहलुओं से रूबरू करा रहे हैं-

जिस अफसर ने किया गिरफ्तार, वह अब है बीजेपी नेता

शहाबुद्दीन उन दिनों बाबरी मस्जिद आंदोलन संयोजन समिति के संयोजक थे. अमानुल्लाह उन दिनों धनबाद के डी.सी थे. वहीं आडवाणी का ‘रथ चालक’ यानी ड्राइवर एक मुस्लिम था. रथयात्रा के लिए एक मिनी बस को रथ का रूप दिया गया था.

आरके सिंह और आडवाणी
मंडल आरक्षण लागू होने के चलते हुआ मंदिर आंदोलन

आडवाणी की गिरफ्तारी के कारण ही तब बीजेपी ने वी. पी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था. जिससे वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी. वी.पी सरकार के मंडल अस्त्र के खिलाफ वह बीजेपी मंदिर ब्रहमास्त्र था. उस घटना ने देश की राजनीति की दिशा बदल दी थी. वी.पी सरकार के पतन के बाद कांग्रेस के सहयोग से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे.

बाद में एक बार आडवाणी ने एक भेंटवार्ता में कहा भी था कि यदि मंडल आरक्षण नहीं लागू हुआ होता तो हमारा मंदिर आंदोलन भी नहीं होता. यदि उन्हें पता होता कि बाबरी मस्जिद ध्वस्त कर दी जाएगी तो वे सन् 1992 में अयोध्या जाते ही नहीं.

रथयात्रा से पहले रोकने के भी हुए प्रयास
हालांकि मंदिर आंदोलन को गरमाने के लिए ही आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से राम रथयात्रा शुरू की थी. रथयात्रा का पहला चरण 14 अक्टूबर को पूरा हुआ था. आडवाणी दिल्ली पहुंचे. प्रधानमंत्री वी.पी सिंह ने 18 अक्टूबर को ज्योति बसु को दिल्ली बुलाया. बसु ने आडवाणी से बातचीत की और रथयात्रा स्थगित कर देने का आग्रह किया. पर आडवाणी ने बसु की सलाह ठुकरा दी. वे 19 अक्टूबर को धनबाद के लिए रवाना हो गए जहां से उन्होंने दूसरे चरण की शुरुआत कर दी. वे अयोध्या पहुंचकर राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का काम 30 अक्टूबर को शुरू करना चाहते थे.

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह को निर्देश दिया कि वे आडवाणी को वहीं गिरफ्तार कर लें. प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तारी का वारंट तैयार करके संबंधित अधिकारियों को दे दिया था लेकिन अमानुल्लाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया.

बाबरी विध्वंस के मामले में बीजेपी के कई नेताओं पर चला था मुकदमा

अमानुल्लाह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन के दामाद हैं. उन्हें लगा कि उनके इस कदम से गलत संदेश जा सकता है, समाज में तनाव बढ़ेगा. लेकिन उधर लालू प्रसाद भी यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि उन्होंने ‘सांप्रदायिक आडवाणी’ के रथ को बिहार में घुसने भी नहीं दिया.
बीजेपी ने दी थी वीपी सिंह सरकार को धमकी
86 सदस्यों वाली बीजेपी ने 17 अक्टूबर को ही यह धमकी दे दी थी कि आडवाणी की गिरफ्तारी के तत्काल बाद वी.पी सिंह सरकार से बीजेपी समर्थन वापस ले लेगी. वी.पी सिंह की सरकार बीजेपी के अलावा जनता दल के 140, सी.पी.आई के 12 और सी.पी.एम के 33 और कुछ अन्य लोकसभा सदस्यों के बल पर चल रही थी.

आडवाणी की रथयात्रा के दौरान लालू प्रसाद उनके खिलाफ अभियान में लग गए थे. आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद तो लालू प्रसाद अल्पसंख्यकों के चहेते बन कर उभरे. उससे पहले लालू प्रसाद ने एक और दांव खेला था. लालू प्रसाद ने 21 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में सांप्रदायिकता विरोधी रैली में कहा कि ‘कृष्ण के इतिहास को दबाने के लिए ही आडवाणी राम को सामने ला रहे हैं.’

इस तरह आडवाणी की राम रथयात्रा के विरोध के बहाने लालू प्रसाद अल्पसंख्यक के साथ-साथ अपने यादव वोट बैंक को भी मजबूत बना रहे थे. खैर जो हो, आडवाणी 22 अक्टूबर की शाम पटना पहुंचे. पटना के बाद वे समस्तीपुर चले गए. पर उनके साथ चल रहा मीडियाकर्मियों का दल पटना के होटल में ही विश्राम करता रहा. और उधर 23 अक्टूबर की सुबह ही समस्तीपुर में आडवाणी गिरफ्तार कर लिए गए.

लालू प्रसाद यादव के साथ लालकृष्ण आडवाणी (फाइल फोटो)

क्या पीएम और मुलायम सिंह के बीच मतभेद के कारण गिरफ्तार हुए आडवाणी?
समस्तीपुर में गिरफ्तार करने के लिए अफसरों के जिस दल को पटना से भेजा गया था, उसका नेतृत्व आई.ए.एस अधिकारी आर.के सिंह कर रहे थे जो कडे़ तेवर के अफसर माने जाते रहे. बाद में सिंह केंद्र के गृह सचिव भी बने. अब वह बिहार के आरा से बीजेपी सांसद हैं.

आडवाणी के साथ कुछ अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया था. एल.के आडवाणी को तो राज्य सरकार के हेलिकॉप्टर से प्रमोद महाजन के साथ मसान जोर स्थित मयूराक्षी सिंचाई परियोजना के निरीक्षण भवन में भेज दिया गया. बंगाल के सीमावर्ती दुमका जिले के मसानजोर में स्थित इस निरीक्षण भवन के कमरा नंबर तीन में आडवाणी और कमरा नंबर चार में महाजन को रखा गया.

इस निरीक्षण भवन के आसपास के 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सील कर दिया गया था. किसी को इन बंदियों से मिलने की इजाजत नहीं थी. पर एक स्थानीय संवाददाता ने आडवाणी से बात करने में सफलता प्राप्त कर ली. आडवाणी ने उससे कहा कि शांतिपूर्ण रथयात्रा को रेाककर सरकार ने अच्छा काम नहीं किया है. सरकार लगातार अपने वायदे से हट रही है और तुष्टिकरण की नीति अपना रही है.

लालकृष्ण आडवाणी (फाइल फोटो)

दुमका के उपायुक्त सुधीर कुमार ने कहा था कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार कड़ी सुरक्षा में एल.के आडवाणी को ससम्मान यहां रखा गया है. उनसे किसी को मिलने की इजाजत नहीं है. दूसरी ओर मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने 23 अक्टूबर को बताया कि सांप्रदायिक सदभाव बनाए रखने के लिए उनकी रथयात्रा पर रोक लगाने के सिवा हमारे पास कोई चारा ही नहीं था. इतना ही नहीं बिहार में हमने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद से संबंधित किसी भी तरह के जुलूस पर रोक लगाने का भी आदेश दे दिया है.

बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 अक्टूबर 1990 को एक रहस्योद्घाटन किया. उन्होंने दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी और वी.पी सरकार के बीच यह गुप्त सहमति बनी थी कि लाल कृष्ण आडवाणी अपनी रथयात्रा पूरी करने के साथ -साथ अयोध्या में कार सेवा भी करेंगे. यह सहमति 20 अक्टूबर को बनी थी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को भी इस बात की जानकारी थी. अटल जी ने कहा कि ‘मुझे पता नहीं कि इस सहमति से वापस जाने की वजह कोई दबाव था या जनता दल के आंतरिक संघर्ष और कलह इसके लिए जिम्मेदार थे. एक सवाल के जवाब में वाजपेयी ने कहा कि हो सकता है कि प्रधानमंत्री और मुलायम सिंह यादव के बीच मतभेद के कारण आडवाणी गिरफ्तार किए गये हों.

आडवाणी का सारथी भी हुआ गिरफ्तार
उस रथयात्रा को लेकर एक और अजूबी बात थी. आडवाणी जिस रथ पर सवार होकर बिहार पहुंचे थे, उसके सारथी का नाम था सलीम मक्कानी. आडवाणी को तो गिरफ्तार करके रमणीक व आरामदायक जगह मसान जोर के निरीक्षण भवन में भेज दिया गया, पर उनके सारथी यानी चालक सलीम को दफा 144 के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार करके समस्तीपुर परिसदन में रखा गया था.

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और मुलायम के साथ लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो)

मुंबई के मूल निवासी 26 वर्षीय सलीम ने अपनी गिरफ्तारी के बाद कहा कि रिहा होने के बाद मैं सीधे अयोध्या जाऊंगा. याद रहे कि प्रशासन ने आडवाणी के रथ को भी जब्त कर लिया था. इससे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी सिंह ने 22 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संदेश में कहा था कि ‘हम सब विश्वासों का आदर करते हैं. पर दो धर्मों के विश्वासों में कहीं टकराव आ जाए तो रास्ता क्या है?

रास्ते दो ही हैं. या तो उसका समन्वय किया जाए और आपस में किसी तरह के समझौते का रास्ता निकाला जाए और अगर वह नहीं निकलता है तो फिर कानून और इजलास का रास्ता है. जोर जबरदस्ती का रास्ता कोई हल का रास्ता नहीं.’