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भारत में फिर हुई ये भयानक घटना 33 साल बाद, देख लोग छोड़ कर जाने

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राज्यों के बीच नदी जल विवाद को जल्दी सुलझाने वाले अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019 को लोकसभा में बुधवार को ध्वनिमत से पारित किया गया। इसमें 1956 में बने विधेयक में संशोधन का प्रावधान होगा और इसके तहत पूरे देश में एकल न्यायाधिकरण बनाया जाएगा जिसकी अलग-अलग पीठ होंगी।

मामलों के निपटान के लिए अधिकतम दो साल की समयसीमा तय की जाएगी। इस न्यायाधिकरण का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करेंगे।केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बिल पर चर्चा के दौरान कहा, मौजूदा न्यायाधिकरण जल विवाद के मामले निपटाने में असफल रहा है इस लिए यह विधेयक बेहद जरूरी है

कुछ राज्यों के बीच विवाद पिछले 33 साल से जस का तस है। इस बीच कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि इसमें राज्यों की राय लेने का प्रावधान नहीं किया गया है, यह संघीय व्यवस्था पर हमला है।

इसके जवाब में शेखावत ने कहा, बिल को लेकर राज्यों से 2013 में ही चर्चा कर ली गई थी इसके बाद बिल को तैयार कर प्रवर समिति के पास भेजा गया था। समिति की सिफारिशों को बिल में शामिल भी किया गया।

उन्होंने कहा, राज्यों के बीच लंबे समय से लंबित मामलों को शीघ्र निपटाने के लिए लाया जा रहा है इस लिए लिए सभी दलों को इसका समर्थन करना चाहिए। अभी देश में नौ न्यायाधिकरण हैं जिनमें कावेरी, महादायी, रावी और ब्यास, वंसधारा और कृष्णा नदी शामिल हैं।

शेखावत ने कहा, हमें 2050 में देश की जरूरतों को ध्यान में रखना होगा, यह बिल इसी आधार पर तैयार किया गया है। सदस्यों की तमाम चिंताओं को समझते हुए शेखावत ने कहा देश में दुनिया की 18 फीसदी आबादी है लेकिन इसके पास कुल चार फीसदी पानी है। जलवायु परिवर्तन की तरह यह भी एक बड़ी समस्या बन जाएगा ऐसे में इस विधेयक को लाना बेहद जरूरी है।