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मंदी का असर: सात करोड़ ट्रकों पर टिकी परिवारों की रोजी-रोटी क्या संकट में है?

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देश में आर्थिक मंदी का असर अब ट्रकों पर भी दिखने लगा है। जो ट्रक पहले 30 दिन चलता था, अब वह औसतन 18 से 20 दिन ही चल पा रहा है। यह मंदी का ही असर है कि ट्रांसपोर्टर्स को माल लाने और ले जाने का ऑर्डर नहीं मिल रहा है। ऐसे में करीब 80 लाख ट्रक धीरे धीरे सड़क से दूर होते जा रहे हैं। ऑल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन (एआइटीडब्ल्यूए) तथा ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआइएमटीसी) के पदाधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिन ट्रकों के धंधे में लगे लोगों के लिए शुभ नहीं हैं। अभी तो महीनें में दो-तीन सप्ताह का काम मिल रहा है, लेकिन जो आर्थिक हालात बन रहे हैं, उन्हें देखकर कहा जा सकता है कि बहुत जल्द ट्रक व्यवसाय से जुड़े पांच करोड परिवारों की रोजी रोटी पर संकट आ सकता है। इनमें ट्रक मालिक, चालक, क्लीनर और ऑफिस कर्मचारी आदि शामिल हैं। यदि मेकेनिक, टायर शॉप, रोड साइड पर पंक्चर लगाने वाले और सर्विस सेंटर को मिला लें तो प्रभावित परिवारों की संख्या सात करोड़ के पार पहुंच जाएगी। एआइटीडब्ल्यूए के चेयरमैन प्रदीप सिंघल बताते हैं कि ट्रक व्यवसाय पर पड़ रही मार के कई कारण हैं। 

पहला, मार्केट में नई मांग नहीं आ पा रही है। लंबी दूरी के ट्रक ट्राले ऑर्डर के इंतजार में खड़े हैं। ये वे ट्रालें हैं जिनमें, भारी मशीनरी जैसे वाहन या मशीनें, आदि का लदान होता है। पार्किंग या ट्रक यूनियन वाली जगहों पर खड़े ट्रालों की लाइन अब लंबी होती जा रही है। सरकार की जीएसटी नीति के तहत 25 प्रतिशत अधिक लदान की छूट ने भी मंदी की मार को ज्यादा बढ़ा दिया है। जीएसटी के बाद छोटी गाड़ियों को तो बिल्कुल काम नहीं मिल पा रहा है। दूसरी ओर पिछले साल जीएसटी की 28 प्रतिशत छूट के चलते लोगों ने खुद के हैवी ट्रक खरीद लिए थे। 

सिंघल के मुताबिक, बैंकों ने दिल खोल कर लोन दिया तो वहीं टाटा जैसी कंपनियों ने भारी छूट भी दे दी। इससे बाजार में ओवर केपेस्टी की समस्या पैदा हो गई। गाड़ियों की उतनी जरूरत नहीं थी, लेकिन छूट और लोन की सुविधा के चलते मार्केट में नई गाड़ियों की संख्या बढ़ गई। बड़े ट्रांसपोर्ट संगठनों ने अब ट्रकों की खरीद पर पूरी तरह रोक लगा दी है। एक तरफ डीजल पर दो रुपये प्रति लीटर का सेस लग गया तो दूसरी ओर इंश्योरेंस में बढ़ोतरी कर दी गई। इसके चलते ट्रक कारोबारी अपने धंधे का विस्तार करने की बजाए उसे समेटने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। 

ट्रकों का सालाना 12 लाख करोड़ रुपये का कारोबार अब तेजी से गिर रहा है

एआइटीडब्ल्यूए के अध्यक्ष महेंद्र आर्या कहते हैं, मंदी की वजह से अब ट्रांसपोर्ट का धंधा कमजोर होता जा रहा है। देशभर में हमारे साथ पांच सौ से अधिक एसोसिएशन जुड़ी हैं। सभी जगह से एक ही खबर आ रही है कि नए ट्रकों की खरीद बिल्कुल बंद हो गई है। बाजार में लदान के ऑर्डर आधे रह गए हैं। एआइटीडब्ल्यूए के चेयरमैन प्रदीप सिंघल का कहना है कि मंदी का दौर तो अभी शुरू हुआ है। जिन लोगों ने पिछले साल ट्रक खरीदा था, अब उनके सामने लोन की किश्त देने का संकट खड़ा हो गया है। सौ से ज्यादा शहरों में ट्रक व्यवसाय से जुड़े लोग बैंक अधिकारियों से लोन के भुगतान की समय सीमा आगे बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं। 

ये 80 लाख ट्रक हैं। इनमें करीब 12 लाख गाड़ियां ऐसी हैं जिनके पास नेशनल परमिट है। इन्हें बीस दिन का भी काम नहीं मिल पा रहा है। बतौर सिंघल, हम ये मानते हैं कि एक ट्रक सालाना 10-11 लाख रुपये की आमदनी देता है। कुल मिलाकर यह कारोबार 12 लाख करोड़ रुपये सालाना के आसपास पहुंच जाता है। अगर यह मंदी छह सात महीने तक चलती है तो 80 लाख में से अधिकांश ट्रक खिलौना बनकर रह जाएंगे। ऐसी हालत में कारोबार और इसे जुड़े लोगों की रोजी रोटी का क्या होगा, यह अंदाजा लगाया जा सकता है। 

टायर शॉप, पंक्चर लगाने वाले, सर्विस कार्य और क्लीनर, इन सब का क्या होगा

मंदी की वजह से ट्रांसपोर्ट में लगी गाड़ियों को जब माल ढुलाई का ऑर्डर नहीं मिल रहा है तो इस धंधे से जुड़े दूसरे लोगों का काम भी प्रभावित होने लगा है। इससे करीब दो करोड़ परिवारों के जीवन यापन पर संकट आ सकता है। इनमें टायर शॉप पर काम करने वाले, सड़क किनारे पंक्चर लगा रहे, ग्रीस डालने, मेकेनिकल जॉब, सर्विस और ट्रक पर बतौर क्लीनर चलने वाले लोग शामिल हैं। मंदी के चलते अब एक जगह से दूसरी जगह पर जाने वाले ट्रक ट्रालों की आवाजाही बहुत कम हो गई है। बड़े ट्राले तो कई दिनों से एक ही जगह पर खड़े हैं। 

ट्राले के ड्राइवर और क्लीनर भी खाली बैठे हैं। बहुत से ड्राइवर और क्लीनर अपने गांवों को लौट गए हैं। यही सड़क किनारे बैठे ट्रक के मेकेनिक या सर्विस करने वालों का हाल है। वे भी अपने ठिकाने पर ताला जड़कर गांव चले गए हैं। ड्राइवर मलकीत सिंह बताते हैं कि 15-20 दिन हो गए हैं, लेकिन ट्रक पर माल लदान का नंबर नहीं आ रहा है। ऐसे में अपनी जेब से कब तक खाते रहेंगे। ट्रक मालिक सीधे तौर पर नहीं कह रहे हैं, लेकिन उनका इशारा सब कुछ समझने के लिए काफी है।