इन्होंने दिल की सुनी। ज्यादा दिमाग नहीं लगाया। तभी तो लाखों रुपए का पैकेज छोड़ खेती चुनी। खुद एमबीए और पत्नी सीए डिग्रीधारी। दोनों ने नौकरी की बजाय खेती शुरू की। लोगों ने ताने मारे। बोले-‘ये ही करना था तो इतने पढ़े ही क्यों’, मगर इन्हें लीक से हटकर काम करना था। अपनी मिट्टी से मोहब्बत और इनके हौसलों में जान थी। यही वजह है कि खेती से ही छप्परफाड़ कमाई होने लगी है और जो लोग कभी ताना मारा करते थे वे भी अब इन गर्व करते नजर आते हैं।
जोधपुर के ललित देवड़ा व खुशबू देवड़ा की है कहानी
युवा पीढ़ी को प्रेरित करती यह कहानी है राजस्थान के जोधपुर शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर उजीर सागर मंडोर देवड़ा परिवार के ललित और खुशबू की। वन इंडिया हिंदी से खास बातचीत में ललित देवड़ा ने बताया कि जून 2012 में उन्होंने पुणे से मार्केटिंग और फाइनेन्स में एमबीए किया। तब एक निजी बैंक कम्पनी से सिक्योरिटी रिलेशनशिप मैनेजर की नौकरी के लिाए सालाना 6 लाख रुपए का ऑफर आया।
शादी के बाद पति का साथ दिया
इसके अलावा अन्य निजी कम्पनियों से भी आठ से दस लाख रुपए तक के ऑफर मिले, लेकिन इन्हें कुछ लीक से हटकर करना था। मिट्टी से जुड़ने की ललक इन्हें घर व माटी तक खींच लाई। यहां आने के बाद ललित ने पाली निवासी खुशबू से शादी। सीए खुशबू भी जॉब किया करती थी, मगर पति ललित ने जब उसे अपने ख्वाब के बारे में बताया तो खुशबू लाखों की नौकरी छोड़ पति के साथ खेतीबाड़ी में जुट गई।
गुजरात से आया आइडिया
जोधपुर के ललित देवड़ा ने बताया कि एक बार गुजरात जाना हुआ तो देखा कि वहां लोग एक-दो बीघा जमीन पर ही आधुनिक तरीके से खेती करके अच्छी कमाई कर रहे हैं। इसके बाद मैंने भी फैसला किया कि जोधपुर जाकर खेती की जाए। घर आकर पिता ब्रह्मसिंह से पारिवारिक 12 बीघा में से केवल 400 वर्ग मीटर जमीन खेती के लिए मांगी। फिर उसमें सेडनेट हाउस लगाया। बाद में पोली और नेट हाउस भी बना दिए। सबसे पहले टर्की से बीज मंगवाकर खीरा उगाया। कुल 40.50 टन खीरा ककड़ी का उत्पादन हुआ। इस कामयाबी के बाद तो ताना मारने वाले भी साथ देने लगे।
बागवानी पर है ललित व खुशबू का जोर
ललित ने बताया कि खेती में उनका जोर सब्जियों के उत्पादन पर है। अपने खेत पर ग्रीन हाउस बनवाया। बूंद-बूंद सिंचाई सिस्टम लगवाया। फिर ककड़ी, लाल, पीली व शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा आदि उगाने शुरू किए। खेती में बढ़ते रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया। वर्मी कंपोस्ट इकाई भी लगाई।
नर्सरी में आजमा रहे हाथ
ललित ने बताया कि खेती के साथ-साथ वे देवड़ा फार्म में नर्सरी में भी हाथ आजमा रहे हैं। यहां पर स्वास्तिक नर्सरी खोली है, जो जोधपुर की सबसे बड़ी नर्सरियों में से एक है। यहां पर इनडोर-आउटडोर, फूल, घास व सजावटी पेड़-पौधे, वर्मी कम्पोस्ट खाद और सभी प्रकार के गमले उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। ललित की मानें तो बागवानी, नर्सरी से सालाना 40 से 50 लाख का टर्न ओवर है। इनमें 15 से 20 लाख की बचत हो जाती है।