Home समाचार रजनीकांत बोले- एक भाषा देश के लिए अच्छी, पर भारत में संभव...

रजनीकांत बोले- एक भाषा देश के लिए अच्छी, पर भारत में संभव नहीं

0

साउथ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार और राजनीति में एंट्री कर चुके रजनीकांत (Rajinikanth) ने सरकार के (Common Language) के प्रस्ताव का विरोध किया है. रजनीकांत का कहना है कि देश के लिए अच्छी बात हो सकती है, मगर भारत जैसे विविधता वाले देश में इसे लागू करना संभव नहीं है. अगर ऐसा हुआ, तो दक्षिण राज्यों के साथ-साथ काफी हद तक उत्तरी राज्य भी इसका पुरजोर विरोध करेंगे.

रजनीकांत का बयान गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने हिंदी को देश की कॉमन भाषा बनाने की बात कही थी. 14 सितंबर को हिंदी दिवस (Hindi Divas) पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में शाह ने कहा था, ‘पूरे देश की एक भाषा होना बेहद जरूरी है, जिससे दुनिया में भारत की पहचान बने. ये काम सिर्फ सर्वाधिक बोली जाने वाली हिंदी भाषा कर सकती है.’

अमित शाह ने कहा, ‘भारत की भाषा सबसे समृद्ध है. अंग्रेजी में पति-पत्नी का प्यार भी लव होता है, भाई-बहन के प्यार को भी लव कहते हैं. हमारे यहां हर रिश्ते के लिए अलग शब्द है. ऐसे में एक राष्ट्र एक भाषा के विचार को आगे बढ़ाया जाना चाहिए.

अमित शाह के बयान का जिक्र करते हुए ‘थलाइवा’ नाम से मशहूर रजनीकांत ने कहा, ‘दक्षिण राज्यों की अपनी मातृभाषा है. उत्तरी राज्यों में भी कोई न कोई क्षेत्रीय भाषा बोली जाती है. ऐसे में हिंदी को सभी राज्यों पर थोपना उचित नहीं है. अगर ऐसा हुआ, तो ये देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

रजनीकांत ने कहा, ‘कॉमन भाषा न सिर्फ भारत, बल्कि किसी भी देश की एकता और उन्नति के लिए अच्छी है. लेकिन हमारा देश विविधता वाला देश है. ऐसे में आप तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में हिंदी नहीं थोप सकते.’

बता दें कि रजनीकांत से पहले शरद पवार, ममता बनर्जी और एमके स्टालिन भी ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ का विरोध कर चुके हैं. ममता बनर्जी ने कहा था कि हमें अपनी मातृभाषा को नहीं भुलाना चाहिए. ममता बनर्जी ने ट्वीट करके कहा, ‘सभी को हिंदी दिवस की बधाई. हमें सभी भाषा और संस्कृति का सम्मान करना चाहिए. हम कई नई भाषाएं सीख सकते हैं, लेकिन हमें अपनी मातृभाषा को नहीं भूलना चाहिए.’

वहीं, डीएमके के एमके स्टालिन ने भी कहा था कि गृहमंत्री अमित शाह को अपना बयान वापस लेना चाहिए. स्टालिन ने कहा कि हम हमेशा से हिंदी को थोपे जाने का विरोध करते रहे हैं. ये देश की एकता को प्रभावित करेगा. उधर, एनसीपी नेता शरद पवार भी एक राष्ट्र एक भाषा के खिलाफ हैं.