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कोविशील्ड, कोवैक्सीन स्पुतनिक V और मॉडर्ना: भारत की कोविड-19 वैक्सीनों के बारे में हम क्या जानते हैं

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देश में नई वैक्सीन पॉलिसी लागू हुई है. भारत में अब तक 36 करोड़ से ज़्यादा लोगों को वैक्सीन की कम से कम एक ख़ुराक मिल चुकी है जबकि सात करोड़ से ज़्यादा लोगों को वैक्सीन की दोनों ख़ुराक मिल चुकी है.

भारत में वैक्सीनेशनल की रफ़्तार तेज़ होने के साथ-साथ उपलब्ध वैक्सीन की संख्या भी बढ़ी है. तीसरी लहर के ख़तरे की आशंका के बीच भारत में चौथी कोरोना वैक्सीन मॉडर्ना को इस्तेमाल की मंज़ूरी मिली है. इससे पहले रूसी वैक्सीन स्पुतनिक V को आपातकालीन उपयोग के लिए मंज़ूरी दी गई थी.

देश की ड्रग नियामक संस्था ने माना है कि रूस में विकसित कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक V सुरक्षित है. यह वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन की तरह ही काम करती है. साइंस जर्नल ‘द लैंसेंट’ में प्रकाशित आख़िरी चरण के ट्रायल के नतीजों के अनुसार स्पुतनिक V कोविड-19 के ख़िलाफ़ क़रीब 92 फ़ीसद मामलों में सुरक्षा देता है.

इन वैक्सीन की मंज़ूरी के साथ अब कोविड-19 से बचाव की चार वैक्सीन उपलब्ध हैं. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया और ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका के सहयोग से बनी कोविशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन, रूस की स्पुतनिक V और मॉडर्ना.

मॉडर्ना वैक्सीन कितनी असरदार है?

मॉडर्ना वैक्सीन एक आरएनए वैक्सीन है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करने के लिए वायरस के आनुवंशिक कोड के हिस्से को इनजेक्ट करती है.

30,000 लोगों पर किए एक ट्रायल में पाया गया कि मॉडर्ना वैक्सीन गंभीर कोविड से क़रीब 95% तक सुरक्षा देती है.

भारतीय केंद्र सरकार ने मॉडर्ना वैक्सीन को भारत में इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है. नीति आयोग के मेंबर हेल्थ डॉक्टर वीके पॉल ने 29 जून को इसकी जानकारी देते हए बताया कि ये मंज़ूरी सीमित इस्तेमाल के लिए है जिसे आपातकालीन इस्तेमाल मंज़ूरी भी का जा सकता है.

उनके मुताबिक़, ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित पहली वैक्सीन है जिसे भारत में इस्तेमाल की इजाज़त दी गई है. वीके पॉल के मुताबिक़, इससे निकट भविष्य में मॉडर्ना को देश में आयात करने की संभावनाओं को बल मिलेगा.

डॉ. पाल ने कहा कि स्पुतनिक को हम साझा वैक्सीन मानते हैं क्योंकि भारत में ही उसका मैन्युफैक्चरिंग का बेस भी बन गया है और वह यहां बनना भी शुरू हो गई है. इस लिहाज़ से मॉडर्ना भारत आने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन है क्योंकि वह सीधे आएगी और यहां लोगों को लगाई जाएगी. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि मॉडर्ना भी जल्दी ही भारत में बनने लगेगी.

उन्होंने कहा कि मॉडर्ना के भारत में अलग से ट्रायल की जरूरत नहीं है. हालांकि, पहले 100 डोज़ जिन्हें लगाए जाएंगे, उनपर नज़र रखी जाएगी. उन्होंने कहा कि मॉडर्ना वैक्सीन को -25 से -50 डिग्री में सात महीने के लिए स्टोर किया जा सकता है. अगर वैक्सीन की वाइल खुली नहीं है तो उसे 2 से 8 डिग्री तापमान में 30 दिनों तक रख सकते हैं.

उन्होंने तब बताया था कि कुछ औपचारिकताएं बाक़ी हैं जो पूरी की जा रही हैं लेकिन लाइसेंस को मंज़ूरी दे दी गई है.

मॉडर्ना ने ये भी बताया है कि अमेरिकी सरकार इस वैक्सीन की एक निश्चित खुराक कोवैक्स प्रोग्राम के तहत भारत सरकार को इस्तेमाल के लिए देगी.

इस वैक्सीन को अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने बनाया है और भारत में सिप्ला कंपनी से साझेदारी की है.

मॉडर्ना वैक्सीन की भी दो डोज लगती हैं और पहली और दूसरी डोज के बीच 4 हफ्तों का गैप होता है.

वीके पॉल ने ये भी बताया था कि इसके अलावा दूसरी वैक्सीन कंपनियों के साथ समझौता करने की कोशिश भी जारी है. ख़ास तौर पर फाइज़र और जॉनसन एंड जॉनसन के साथ ये कोशिश की जा रही है. इसकी प्रक्रिया जारी है.

यूरोपीय संघ और अमेरिकी नियामक पहले ही मॉडर्न वैक्सीन को मंजूरी दे चुके हैं.

स्पुतनिक V कितनी प्रभावी ?

मॉस्को के गैमालेया इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के अंतिम नतीजे सामने आने के पहले ही इसकी मंज़ूरी के चलते शुरू में कुछ विवाद पैदा हो गया था. हालांकि वैज्ञानिकों के अनुसार अब इसके फ़ायदे ज़ाहिर हो गए हैं.

इसे विकसित करने के लिए सर्दी का कारण बनने वाले वायरस का उपयोग किया गया है. इस वायरस का उपयोग कोरोना वायरस के छोटे अंश को शरीर में डालने के लिए वाहक के रूप में किया गया है. और इसमें ऐसे बदलाव किए गए हैं कि शरीर में जाने के बाद वह लोगों को नुक़सान न पहुँचा सके.

कोरोना के जेनेटिक कोड का एक अंश जब शरीर में जाता है तो इम्यून सिस्टम बिना शरीर को बीमार किए इस ख़तरे को पहचानकर उससे लड़ना सीख जाता है. टीका लगाने के बाद शरीर कोरोना वायरस के अनुरूप एंटीबॉडी का उत्पादन करना शुरू कर देता है. इसका अर्थ यह हुआ कि टीके के बाद शरीर का इम्यून सिस्टम वास्तव में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.

इस वैक्सीन की ख़ासियत है कि इसे दो से आठ डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान पर स्टोर किया जा सकता है. इस वजह से इस वैक्सीन का भंडारण और ढुलाई करना आसान है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन की मार्केटिंग करने वाले रूसी कंपनी रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फ़ंड यानी आरडीआईएफ़ ने भारत में स्पुतनिक V की 75 करोड़ से अधिक ख़ुराक बनाने के लिए क़रार किया है.

वैसे स्पुतनिक V को अब भारत सहित 60 से ज़्यादा देशों में मंज़ूरी मिल चुकी है. आरडीआईएफ़ ने भारत में इसके वितरण के लिए डॉ रेड्डीज़ लैब और ग्लैंड फ़ार्मा सहित कुल पाँच कंपनियों से क़रार किया है.

कोरोना की दूसरी वैक्सीन से इतर स्पुतनिक V पहली और दूसरी ख़ुराक के लिए टीके के दो अलग-अलग संस्करण का उपयोग करता है. वैसे दूसरी ख़ुराक पहली के 21 दिन बाद लगाई जाती है.

दोनों ख़ुराकों में कोरोना वायरस के विशिष्ट ‘स्पाइक’ का लक्ष्य किया जाता है. हालांकि इसके लिए दो अलग-अलग न्यूट्रल वायरस को वेक्टर यानी रोगवाहक के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके पीछे तर्क यह है कि दो अलग-अलग वेक्टर के उपयोग से शरीर का इम्यून सिस्टम तब की तुलना में ज़्यादा मज़बूत होगा जब शरीर में एक ही वेक्टर दो बार जाए.

कोवैक्सीसे जुड़ा विवाद क्या था?

रूसी वैक्सीन को मान्यता देने से पहले भारत में विकसित दो वैक्सीन लोगों के लिए उपलब्ध थे- कोवैक्सीन और कोविशील्ड.

कोवैक्सीन को भारत बायोटेक ने तैयार किया था जबकि कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया के लैब में तैयार किया गया था.

हालांकि इसी साल जनवरी में कोवैक्सीन को मंजूरी देने पर विवाद भी देखने को मिला था. तब भारतीय ड्रग रेगुलेटर ने ऐलान किया था, ”इमरजेंसी की हालत में जनहित को देखते हुए पर्याप्त सावधानी के साथ सीमित उपयोग के लिए क्लिनिकल ट्रायल (ख़ासकर म्यूटेंट स्ट्रेन से संक्रमण के केस में) के रूप में कोवैक्सीन के उपयोग की मंज़ूरी दी जाती है.”

विशेषज्ञों को हैरानी हुई कि अभी ट्रायल के दौर से गुज़र रही किसी वैक्सीन को लाखों अतिसंवेदनशील लोगों को लगाने की मंज़ूरी कैसे दे दी गई. ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क ने उस समय कहा कि एक अधूरी ट्रायल वाली वैक्सीन की मंज़ूरी के लिए दिए गए वैज्ञानिक तर्क सुनकर वह चकित हो गया.

संस्था ने कहा कि इस वैक्सीन के प्रभाव वाले आंकड़ों के अभाव में कई गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं. हालांकि वैक्सीन निर्माता कंपनी और ड्रग्स रेगुलेटर दोनों ने कोवैक्सीन का बचाव करते हुए कहा कि यह सुरक्षित है और इससे मज़बूत इम्यून सिस्टम विकसित होता है.

भारत बायोटेक ने कहा कि भारत के क्लिनिकल ट्रायल क़ानून देश में गंभीर और जीवन को ख़तरा पहुँचाने वाली बीमारियों से बचाव के लिए दूसरे चरण के ट्रायल के बाद दवाओं की त्वरित मंज़ूरी की इजाज़त देता है. कंपनी ने फ़रवरी तक वैक्सीन के प्रभावी होने संबंधी आंकड़े देने का वादा किया था जिसे बाद में उसने दिया भी.कोविशील्ड का विकास चिंपाजी में सर्दी पैदा करने वाले सामान्य वायरस (एडेनोवायरस) के कमज़ोर संस्करण से किया गया है.

कोविशील्ड क्या है?

ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन को दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया भारत में बना रही है. कंपनी का कहना है कि वह एक महीने में इसके छह करोड़ से ज्यादा ख़ुराक बना रही है. इस टीके का विकास चिंपाज़ी में सर्दी पैदा करने वाले सामान्य वायरस (एडेनोवायरस) के कमज़ोर संस्करण से किया गया है. इसे कोरोना वायरस जैसा लगने के लिए बदला गया.

हालांकि जब इसे शरीर में डाला जाता है तो इससे कोई बीमारी नहीं होती. इसे जब शरीर में टीके के रूप में लगाया जाता है तो यह इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रेरित करता है. और जब कोरोना वायरस का संक्रमण होता है तो एंटीबॉडी को हमले के लिए उकसाता है.

भारत में कोविशील्ड की दोनों खुराक के बीच के अंतराल को बढ़ाकर 12 से 16 हफ़्ते कर दिया गया है. इसका भंडारण करना काफ़ी आसान है क्योंकि इसके लिए दो से आठ डिग्री के तापमान की ज़रूरत होती है. इस चलते इसका आसानी से वितरण संभव हो सकता है. दूसरी ओर फ़ाइज़र-बायोटेक द्वारा विकसित टीके को शून्य से 70 डिग्री कम तापमान पर स्टोर करना होता है. भारत जैसे गर्म देश में इतने कम तापमान पर टीकों के विशाल भंडार को स्टोर करना बहुत बड़ी चुनौती है.

कोविशील्ड कितनी प्रभावी है?

ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन कोविशील्ड के अंतरराष्ट्रीय क्लिनिकल ट्रायल बताते हैं कि जब लोगों को एक आधा ख़ुराक और फिर एक पूरी ख़ुराक दी गई तब वह 90 फ़ीसद तक प्रभावी थी. हालांकि ‘आधा-ख़ुराक और पूरी ख़ुराक’ विचार की मंज़ूरी के लिए पर्याप्त और स्पष्ट आंकड़े नहीं दिए जा सके.

वहीं अप्रकाशित आंकडों से पता चला कि पहली और दूसरी ख़ुराक के बीच एक लंबा अंतर रखने से वैक्सीन का कुल प्रभाव बढ़ जाता है. एक उप-समूह में इस तरह से पहली ख़ुराक देने के बाद टीके को 70 फ़ीसद तक प्रभावी पाया गया. वैक्सीन की भारतीय निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया (एसआईआई) ने दावा किया कि कोविशील्ड को बहुत अधिक प्रभावी पाया गया है. ब्राज़ील और ब्रिटेन से तीसरे चरण के मिले आंकड़े भी इसका समर्थन करते हैं.

क्लिनिकल ट्रायल तीन चरणों की एक प्रक्रिया है जिससे तय किया जाता है कि टीका कैसे शरीर के इम्यून सिस्टम को मज़बूत करता है और शरीर पर किसी तरह का कोई ख़राब प्रभाव तो पैदा नहीं कर रहा. हालांकि मरीज़ों के अधिकार समूह ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क ने बताया कि भारतीयों पर वैक्सीन का अध्ययन पूरा किए बग़ैर इस टीके को मंज़ूरी दे दी गई. दावा किया गया कि इससे इम्यून सिस्टम ज़्यादा समय तक कोरोना वायरस से शरीर की रक्षा कर सकता है.

ट्रायल के दौरान पाया गया है कि प्रभावी होने के साथ-साथ इस वैक्सीन की कोई गंभीर प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली. एक वैक्सीन के कुछ साइड-इफ़ेक्ट होंगे ये माना जाता है. इस वैक्सीन के केस में पाया गया कि इसे देने के बाद गले में दर्द, थकान और हल्का बुख़ार हुआ. वहीं इससे जुड़े टीकाकरण समूह में किसी की मौत या गंभीर बीमारी का कोई मामला सामने नहीं आया. रूस के अलावा स्पुतनिक V का उपयोग अर्जेंटीना, फ़लस्तीन, वेनेज़ुएला, हंगरी, यूएई और ईरान सहित 60 से ज़्यादा देशों में किया जा रहा है.

हालांकि कोवैक्सिन और कोविशील्ड की तरह इसका आम उपयोग शुरू होने में अभी कुछ हफ़्ते लग सकते हैं.कोवैक्सिन एक निष्क्रिय टीका है, इसका मतलब कि इसे मरे हुए कोरोना वायरस से बनाया गया है

कोवैक्सीन कितनी प्रभावी है?

कोवैक्सीन एक निष्क्रिय टीका है. इसका मतलब हुआ कि इसे मरे हुए कोरोना वायरस से बनाया गया है जो टीके को सुरक्षित बनाता है. इसे बनाने वाली भारत बायोटेक ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी द्वारा चुने गए कोरोना वायरस के सैंपल का उपयोग किया है. देश की 24 साल पुरानी कंपनी भारत बायोटेक कुल मिलाकर 16 बीमारियों से बचाव के टीके बनाती है. इन टीकों को दुनिया के 123 देशों में भेजा जाता है.

शरीर की इम्यून कोशिकाएं टीका लगाने के बाद मरे हुए वायरस को भी पहचान लेता है. इसके बाद वह इम्यून सिस्टम को इस वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी बनाने को प्रेरित करती हैं. इस वैक्सीन के दोनों ख़ुराकों के बीच चार हफ़्तों का अंतर रखा जाता है. इसे दो से आठ डिग्री के तापमान पर स्टोर किया जा सकता है. इस वैक्सीन के ट्रायल के तीसरे चरण के नतीजे बताते हैं कि यह टीका 81 फ़ीसद तक प्रभावी है.

भारत बायोटेक के अनुसार उसके पास कोवैक्सीन की दो करोड़ ख़ुराक का भंडार है. इस साल के अंत तक दो शहरों में मौजूद अपने चार संयंत्रों में 70 करोड़ ख़ुराक बनाने का इसका लक्ष्य है.

भारत में बन रहीं दूसरी वैक्सीनें

वैक्सीन की सुरक्षा और इसके प्रभाव की जाँच के लिए भारत में ट्रायल के विभिन्न चरणों में कई वैक्सीन हैं. इनका विवरण इस प्रकार है-

1. ज़ाईकोव-डी, इसे अहमदाबाद की ज़ाइडस-कैडिला कंपनी बना रही है.

2. हैदराबाद की बायोलॉजिकल ई अमेरिका की डायनावैक्स और बायलर कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन के सहयोग से एक वैक्सीन बना रही है. बायोलॉजिकल ई भारत की पहली निजी वैक्सीन निर्माता कंपनी है.

3. एचजीसीओ19, भारत का पहला एमआरएनए वैक्सीन है जो पुणे की जेनोवा और अमेरिका के सिएटल की एचडीटी बायोटेक कॉर्पोरेशन के सहयोग से बनाया जा रहा है. इसके लिए जेनेटिक कोड के अंश का उपयोग किया गया है.

4. भारत बायोटेक नाक से लेने वाली एक वैक्सीन पर भी काम कर रही है.

5. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया और अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स मिलकर एक और वैक्सीन के विकास के लिए काम कर रहे हैं, इसे ही कोवोवैक्स कहा जा रहा है और इसके आख़िरी चरण के ट्रायल के बाद इसे 90 फ़ीसदी कारगर बताया जा रहा है.

भारत से कौन से देश वैक्सीन चाहते हैं?

भारत ने लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और कैरिबिया के 86 देशों को 6.4 करोड़ से ज़्यादा ख़ुराकों का निर्यात किया है. ऐसे देशों में ब्रिटेन, कनाडा, ब्राज़ील और मैक्सिको शामिल हैं.

यहां से कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों का निर्यात किया गया है. कुछ उपहार के रूप में दिए गए हैं जबकि कुछ को वैक्सीन निर्माताओं और देशों के बीच कारोबारी समझौतों के तहत भेजा गया है. बाक़ी टीकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की कोवैक्स योजना के तहत निर्यात किया गया है. मालमू हो कि कोवैक्स योजना दुनिया के 190 देशों में कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति के लिए बनाई गई है. इसके तहत एक साल के भीतर दो अरब से अधिक ख़ुराक देने का लक्ष्य रखा गया है.

हालांकि मार्च में भारत ने ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के सभी निर्यातों पर अस्थायी रोक लगा दी. सरकार ने कहा कि कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते घरेलू माँग बढ़ने की उम्मीद है. ऐसे में अपनी ज़रूरतों के लिए भारत को बड़ी मात्रा में वैक्सीन की ज़रूरत है.

कोई भी वैक्सीन 100% प्रभावी नहीं होती और काम करने में भी वक़्त लेती है. हम अभी नहीं जानते कि किसी भी वैक्सीन से मिली इम्युनिटी कब तक चलेगी.