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कर्नाटक बना कठिन चुनौती, क्या बोम्मई की नाकामी को ‘मोदी मैजिक’ से छिपा पाएगी BJP

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव मुश्किल से दो महीने बाद हैं और सत्ताधारीभारतीय जनता पार्टीने अपने अभियान को तेज कर दिया है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इस साल राज्य की अपनी छठी यात्रा की और कुछ सार्वजनिक रैलियों को संबोधित किया.

उन्होंने विपक्षी कांग्रेस पार्टी पर जमकर निशाना साधते हुए कहा जब वे उनकी कब्र खोदने की कोशिश कर रहे थे, तब वे कर्नाटक के लोगों के हित में नई सड़कों का उद्घाटन और नए प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास कर रहे थे.

बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि पिछले साल के अंत में हिमाचल प्रदेश के चुनावों में मिली हार के बाद उसे कई राज्यों में जीत हासिल हुई है, मगर कर्नाटक में उसके सामने कठिन चुनौती है. कर्नाटक में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के आसार हैं. राज्य में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाया गया है. जनमत सर्वेक्षणों में कांग्रेस पार्टी बीजेपी पर बढ़त बनाए हुए है.

क्या मोदी ही एकमात्र विकल्प ?

केंद्रीय नेतृत्व पर जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी काफी हद तक होती है. मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को एक और मौका देने की मांग करने के बजाय बीजेपी राज्य सरकार के खराब प्रदर्शन के चलते अपने लोकप्रिय नेता मोदी के नाम पर वोट मांगना चाहती है.आंतरिक तौर पर बीजेपी को पता है कि बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाना उसके लिए सबसे अच्छा फैसला नहीं था. हालांकि पार्टी को उम्रदराज दिग्गज नेता वाईएस येदियुरप्पा के सामने झुकना पड़ा, जिन्होंने जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री पद छोड़ने पर सहमति जताते हुए बोम्मई को उनकी जगह लेने पर जोर दिया.

येदियुरप्पा से इस्तीफा मांगने का कारण यह था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के कई आरोपों से घिरी हुई थी. बोम्मई को इस उम्मीद में मुख्यमंत्री बनाया गया कि वे एक ईमानदार और कुशल सरकार चलाने के साथ पार्टी की गिरती लोकप्रियता को उलट देंगे. हालांकि बोम्मई ने राज्य सरकार के खिलाफ केवल भ्रष्टाचार के और आरोप जोड़ने का काम किया.

एंटी-इनकंबेंसी को मात देने के लिए सीएम बदलना

चुनावों में अक्सर अहम भूमिका निभाने वाले एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर यानी सत्ता-विरोधी लहर को दबाने के लिए बीजेपी ने सफलतापूर्वक एक नई रणनीति तैयार की है.इससे पहले बीजेपी ने राज्य के चुनावों में कुछ मंत्रियों सहित अपने एक-तिहाई विधायक को टिकट देने से इनकार करके एंटी-इनकंबेंसी से निपटने का अलग फॉर्मूला तैयार किया.

बाद में चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री बदले जाने लगे. राज्य में मार्च 2022 के विधानसभा चुनाव से नौ महीने से भी कम समय बचे थे और पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाकर इसकी शुरुआत की गई.धामी के नेतृत्व में पार्टी को सफलता मिली. प्रदेश में लगातार दूसरी बार सत्ता बरकरार रखने वाली पहली पार्टी बनकर बीजेपी ने इतिहास रच दिया. इससे पहले बीजेपी और कांग्रेस बारी-बारी से उत्तराखंड में सरकार बनाती रही है.

गुजरात में काम कर गया प्लान

इसी तरह का अगला कदम मोदी के गृह राज्य गुजरात में उठाया गया. गुजरात विधानसभा चुनाव से 15 महीने पहले सितंबर 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल ने ले ली.फिर से पार्टी को इस कदम से लाभ मिला. बीजेपी ने लगातार सातवीं बार सत्ता बरकरार रखी और राज्य में किसी भी पार्टी द्वारा जीती गई अधिकतम सीटों को जीतने का नया रिकॉर्ड बनाया.नार्थ-ईस्ट में अगला बीजेपी शासित राज्य त्रिपुरा है जहां पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को मात देने और सरकार के खिलाफ गुस्से को शांत करने के सफल फॉर्मूले का इस्तेमाल किया.

पार्टी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को पद छोड़ने के लिए कहा और फरवरी 2023 के चुनावों से नौ महीने पहले उनकी जगह डॉ माणिक साहा को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाया. यह कदम फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि बीजेपी कम सीटों के बावजूद सत्ता बरकरार रखने में सफल रही.

हिमाचल में गच्चा खा गई पार्टी

पार्टी को ऐसे संकेत मिल रहे थे कि जय राम ठाकुर सरकार की लोकप्रियता प्रदेश में खतरनाक तरीके से कम हो रही है. इसके बावजूद बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में अपने इस खास फॉर्मूले को नहीं अपनाया और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.ऐसा ही संकेत दिसंबर 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव के दौरान पार्टी की मिला था.

बीजेपी ने ठाकुर की जगह किसी और को लाने के किसी भी प्रलोभन का विरोध किया. बीजेपी ने गलत अनुमान लगाया कि उपचुनाव में पार्टी की हार कृषि कानूनों को लेकर मचे बवाल और पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों के कारण हुई.कृषि कानूनों को रद्द कर दिया गया और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें कम कर दी गईं. जय राम ठाकुर अपने पद पर बने रहे लेकिन पार्टी को नहीं बचा सके.

बीजेपी ने लिया गलत फैसला

कर्नाटक में पार्टी की बिगड़ती स्थिति को ठीक करने के लिए बसवराज बोम्मई को 22 महीने का समय मिला, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके.नतीजतन, बीजेपी मोदी के नाम पर वोट मांगने को है. पार्टी दावा करती है कि केवल डबल-इंजन सरकार यानी केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार ही कर्नाटक की जनता के हित में हैं और इससे लोगों को फायदा मिलेगा.

इसके साथ ही बीजेपी कर्नाटक के मतदाताओं को 2004 और 2014 के बीच केंद्र में कांग्रेस पार्टी के शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार की याद दिलाने की कोशिश कर रही है.बीजेपी यह नहीं कह रही है कि कर्नाटक में सत्ता में रहते हुए कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है, बल्कि मतदाताओं को केवल यह बताने की कोशिश कर रही है कि येदियुरप्पा और बोम्मई सरकारों के कार्य की तुलना में कांग्रेस पार्टी अधिक भ्रष्ट है.