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प. पू. भारत गौरव श्रमणी गणिनी आर्यिका रत्न 105 विज्ञाश्री माताजी ससंघ धर्म नगरी कोटा में धर्म की महती प्रभावना कर रही है

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कोटा (विश्व परिवार)। पूज्य गुरू मां ने सभी को धर्म का मर्म समझाते हुए कहा कि – जीवन में कितने भी कष्ट क्यों न आ जाये कभी भी धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि संकट के समय अपने भी पराये हो जाते हैं एक धर्म ही हमारा साथी होता है । वर्तमान में कोरोना काल में सभी अपने पराये हो गये । सभी को अपना जीवन ही प्रिय लगा । सरकार ने शराब खाने नहीं बंद करवाई। दुकानें नहीं बंद करवाई । करवाया तो ज्ञान का , धर्म का आलय विद्यालय , मंदिर बंद करवाये । ये कार्य गर्त में अर्थात नरक निगोद में ले जाने वाले हैं ।  चम्पापुर नगर में एक सेठ और सेठानी थे ।

दोनों बहुत ही धर्मात्मा और दयालु थे । उसी नगर में एक साफ़ सफाई करने वाले ,भीख मांग कर खाने वाले ,मजदूरी करके जैसे तैसे मुश्किल से कमाने वाले गरीब मेतर पति पत्नी रहते थे। जिनमें आपस में अच्छा प्रेम था दिन भर जो भी मिलता वो रात को साथ बैठ कर खाते ।

एक दिन सेठ को अपने व्यापार में किसी काम हेतु उन मेतर की आवश्यकता पड़ी तो सेठ उसके पास गया उन्हें काम बताया फिर मेतर ने उसकी पत्नी जाग्रा को सेठ के साथ भेज दिया । जाग्रा ने दोपहर पूरी होने तक काम किया, सेठ दयालु था उसको लगा की ये जाग्रा अब भूखी हो गयी होगी  तो उन्होंने जाग्रा को कहा की तू मेरे घर पर जाना वहा सेठानी को बोल देना  तो वो तेरे को खाना देगी वो खा लेना । जाग्रा खुशी ख़ुशी सेठ के घर के लिये रवाना हुई । रस्ते में सहेली मिल गयी तो बातो बातो में रात हो गयी  और जब रात को सेठ के घर पहुच कर सेठानी से खाना मांगने लगी  तो सेठानी ने कहा की बहन हम रात को खाना नही खाते और ना ही बनाते हे। इसलिये अब तो मेरे पास नही हे में सुबह होते ही दूँगी तुम यही रात को विश्राम कर लो । जाग्रा बोली  सेठानी मुझे सेठ ने बोला था की मेरे घर पर खाना लेकर खा लेना । मुझे भूख भी लगी हे आप मुझे झूठ बोल रही है खाना नहीं देने के लिए बहाना कर रही हे । तब सेठानी ने कहा कि हम लोग कभी भी रात्रि भोजन नही करते हे। रात्रि भोजन पानी का हमारा त्याग रहता हे। फिर वह जाग्रा व्याकुल होकर वही रात्रि गुजारने बैठ जाती हे इतने में शाम से खेल कूदने गया सेठ का लड़का घर आता हे और माँ से खाना मागता हे तो सेठानी बोली  में तेरे को शाम को बार बार बुला रही थी तब तो तू आया नही  इसलिये बेटा अब तो रात हो गयी हे अपन जिनकुल में जन्मे हे रात में खाना नही खाते । तो बेटा भी माँ के वचन सुनकर शांत हो चला जाता हे ।

जब ये मामला जाग्रा देखती हे तो सोचने लगती हे की इसने बेटे को भी रात को खाना नही खिलाया इसका मतलब ये सत्य बोल रही हे । उसके मन में प्रश्न उठने लगती हे और फिर वह सेठानी से पूछती हे आप रात्रि को खाना पानी क्यों नही करते । तो सेठानी कहती हे की रात को खाना मांस खाने के बराबर हे रात को पानी पीना खून पिने के बराबर हे क्योंकि रात को असंख्यात जीवो की उत्पत्ति होती है जो हमारे भोजन में प्रवेश कर जाते हैं। रात्रि भोजन से महापाप का बन्ध होता हे । रात्रि भोजन करने वाले अगले भव में दरिद्र ,भिखारी ,बाज,सूअर ,चील जैसी नीच पर्यायों में जन्म मिलता हे। मांग मांग कर जूठे भोजन से पेट भरना पड़ता हे जीवन अभावो में गुजरता हे और जो रात्रि को भोजन नही करते रात में आहार पानी का त्याग रखते हे वो नियम से अगले भव में राजा ,महाराजा, सेनापति,नारायण,चक्रवर्ती,बड़े बड़े सेठ जैसी वैभवशाली उच्च पर्यायों में जन्म लेते हैं ।

जीवन भर अन्न और धन के भण्डार भरे रहते हैं  इत्यादि वचनो को सुनकर जाग्रा कहती हे ओह सेठानी लगता हे मेने भी पहले भव में जीवन भर रात को ही खाया पिया इसलिये आज इस भव में भिखारी की तरह सदैव इधर उधर भटक रही हु । जाग्रा के मन में रात्रि भोजन के प्रति उदासीनता उठने लगी ।

वो सेठानी से बोली की मालकिन आप मुझे नियम दे तो में भी रात को कभी खाना नही खाऊँगी  में भी अपना भव सुधारना चाहती हु ।

तो सेठानी बोली  नही ये तुमसे सम्भव नही तुम मेतर् हो तुम्हारे घर में अधर्म क्रियाओ का चलन रहता हे  इसलिए तुम ये नियम नही सम्भाल पाओगी फिर भी जाग्रा ने जबरदस्ती सेठानी को साक्षी मानकर नियम अंगीकार कर लिया और रात को वही सो गयी  अगली सुबह सेठानी ने उसे वहा खाना खिलाकर शाम के लिए अच्छा भोजन देकर उसको विदा किया  जाग्रा भी शाम ढलते ढलते अपने घर को लौट आई  फिर रात को जाग्रा का पति नशे में घर पर आया जाग्रा ने उसे भोजन परोसा तब उसका पति बोला की तुम भी खाओ  जाग्रा बोली   में रात को नही खाऊँगी मेने सेठानी से नियम लिया हे मेतर गुस्से में बोला ये कैसे सम्भव हे हम दोनों हमेशा रात को साथ साथ खाना खाते हे आज तक कभी अलग अलग नही खाया फिर तू ऐसा कैसे कर सकती हे

मेरी इजाजत के बिना तूने ऐसे कैसे किया । ये कोई नियम वीयम कोई नही चलेगा तुझे मेरे साथ खाना होगा नही तो तुम ये घर छोड़ कर चली जाओ और भटक भटक कर अपना नियम पालो तो जाग्रा बोली मुझे घर छोड़ना मंजूर हे पर नियम नही तोड़ूँगी । रात्रि भोजन  की वजह से इस भव में दरिद्र भिखारिन बनी हूं पूरा जीवन अभावो में गुजरा है । आजतक कोई सुख नही पाया में कभी रात्रि भोजन नही करूंगी ऐसा बोलकर घर से बाहर निकल गयी  इतने में मेतर् भी क्रोधित हो बाहर आया और जाग्रा की चोटी पकड़ कर खीच कर घर पर लाया

उससे  अतिक्रोधित होकर खाने के लिए जबरदस्ती करने लगा | लेकिन जाग्रा बोली में मर जाउंगी लेकिन रात को नही खाऊँगी । इतने में मेतर ने पास में ही पड़े खंजर को उठाकर जाग्रा के पेट पर दे मारा । जाग्रा लहुलहुलुहान हो उठी लेकिन उसके मन में तो सेठानी के वचन ही उमड़ रहे थे । ऐसे ही सोचते सोचते नियम पूर्वक उसका वही मरण हो जाता हे । वही जाग्रा का जीव मरकर उसी चम्पापुर की सेठानी के गर्भ में आकर सेठ की पुत्री के रूप में जन्म लेती हे । देखो बन्धुओ कहा एक निम्न कुल मैतरानी का जीव सिर्फ रात्रि भोजन के त्याग का परिणाम से अन्न व धन के महाभन्डार वाले नगर सेठ के घर में जन्म ले लेती हे। जब उस मेतरानी ने संकट के समय धर्म और अपने नियम में दृढ़ रही तो अगले भव में सेठ पुत्री बनी । तो हम भी अपने धर्म में दृढ़ रहकर इस संसार से पार उतर सकते हैं ।