Home धर्म - ज्योतिष विद्यागुरु विधान संपन्न

विद्यागुरु विधान संपन्न

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मुनि संघ की चातुर्मास कलश स्थापना 9 जुलाई को होगी

सागर – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का 56 वां मुनि दीक्षा समारोह भाग्योदय तीर्थ में हर्ष और उल्लास के साथ मुनि श्री अजितसागर महाराज के ससंघ सानिध्य में मनाया गया। इस अवसर पर विद्या गुरु विधान किया गया विधान का निर्देशन विधान आचार्य ब्रह्मचारी संजीवभैया कटंगी ने और ब्रह्मचारी अंकित भैया सहज ने किया । मुनि सेवा समिति के सदस्य मुकेश जैन ढाना ने बताया कि द्रव्य के पुण्यार्जक ब्रह्मचारी अरुण भैया कटनी थे सौधर्मइंद्र सुधीर जैन, ईशान इंद्र नीरज जैन, सनत इंद्र प्रियेश जैन, माहेंद्र इंद्र महेंद्र जैन पिसी, कुबेर आनंद स्टील, श्रावक सृष्टि अरविंद पथरिया, महायज्ञ नायक विकास टोनी केसली, मनोज कर्रापुर बने जबकि विधान का ध्वजारोहण भामाशाह महेश बिलहरा परिवार ने किया लगभग 81 इंद्र‍‍‍ इंद्राणी ने अर्घ चढ़ायें। मंच से घोषणा हुई कि आगामी 9 जुलाई रविवार को भाग्योदय तीर्थ में चार मुनिराजो की कलश स्थापना समारोह का आयोजन किया गया है। 24 जून को मुनि संघ वर्धमान कॉलोनी उदासीन आश्रम में रहेगा और 25 जून को मोराजी में नेमिनाथ भगवान का महा मस्तकाभिषेक का  कार्यक्रम आयोजित किया गया ।

आचार्य ज्ञानसागर ने श्रमण परंपरा को जवान किया है-मुनि श्री अजितसागर

55 वर्ष पहले आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने अजमेर में ब्रा विद्याधर को मुनि दीक्षा देकर के श्रमण परंपरा को जवान और  जयवंत करने का कार्य किया था मात्र 22 वर्ष की उम्र में उन्हें दीक्षा दी और 26 वर्ष की उम्र में उन्हें आचार्य पद सौंपा तब अजमेर के लोगों ने आचार्य ज्ञानसागर महाराज से कहा था कि आप युवाओं को यह पद देकर गलत कर रहे हैं 50-60 वर्ष वाले मुनिराजो को आचार्य पद सौपना चाहिए लेकिन आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने उस समय कहा था श्रमण परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बड़ा गुरुकुल बनेगा जो आज अक्षरसः सही साबित हुआ है। यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में आचार्य विद्यासागर महाराज की 56 वें दीक्षा दिवस के अवसर पर धर्म सभा में कहीं । दीक्षा के बाद आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने नसीराबाद की ओर बिहार किया तो पहले बिहार में उनके पांव में बड़े-बड़े छाले पड़ गए थे तो यह बात उन्होंने आचार्य ज्ञानसागर महाराज को बताई ज्ञान सागर महाराज ने कहा था घबराओ मत यह संयम की चमड़ी निकल रही है

मुनि श्री निर्दोष सागर महाराज ने कहा कि जिनके सर पर गुरु का हाथ होता है उन्हें हाथों में लकीरों की आवश्यकता नहीं होती है 55 वर्ष पूर्व जब छोटे से बालक को दीक्षा प्रदान हुई थी तो किसी ने उनसे पूछा के घर से मंदिर की दूरी कितनी है तो उन्होंने जवाब दिया था णमोकार मंत्र की जाप 27 बार देते हैं और घर से मंदिर पहुंच जाते हैं तभी सब लोगों को यह समझ में आ गया था की मुनि विद्यासागर महाराज बहुत जल्दी उच्च स्थान पर पहुंचेंगे और वही हुआ आज आचार्य विद्यासागर महाराज की ख्याति पूरे विश्व में है दुनिया संसार की चकाचौंध में बहती है लेकिन हम लोग तो गुरु की लहरों में ही बह गए फ्री मुनि श्री ने कहा एंजॉय तो जिंदगी भर से कर रहे थे परंतु इंजॉय तो जिंदगी भर करते रहे हैं संयम के मार्ग पर चलकर रत्नाकर निधि के दाता हैं हर पद में कष्ट है मुनि पद उत्कृष्ट है। मुनि श्री निर्लोभसागर महाराज ने कहा कि इंद्री इंद्रियों का दमन और इच्छाओं का विरोध करना ही दीक्षा है आचार्य विद्यासागर महाराज ने अपनी इच्छाओं को समाप्त किया और मुनि बन गए एक बात आचार्य श्री से किसी ने पूछा आप व्यस्त कैसे रहते हैं तो आचार्य श्री ने जवाब दिया धर्म में ध्यान में व्यस्त रहना ही हमारा व्यापार है। तो दूसरा प्रश्न किया इतना बड़ा संघ है इतनी बड़ी समाज है टेंशन भी रहता होगा तो आचार्य श्री ने जवाब दिया था हा टेंशन तो रहता है टेंशन यानी 10 धर्म का पालन करता हूं । श्री निरूपम सागर महाराज ने कहा आज आचार्य श्री के कारण धर्म प्रभावना बढ़ गई है उनकी मुनि दीक्षा नहीं हुई होती तो हम लोग कहां होते उन्हीं के दीक्षा दिवस के कारण आज पूरे भारतवर्ष में जहां-जहां साधु विराजमान है वहां पर आनंद और उल्लास के साथ दीक्षा दिवस मनाए गए हैं। आज आप और हम दीक्षा दिवस मना रहे हैं 1 दिन हमारा दीक्षा दिवस भी मनेगा इसके लिए बोलने से काम चलने वाला नहीं है बल्कि परिग्रह का त्याग करना होगा और अंतरंग परिग्रह करना होगा दूसरों का अच्छा करो भला करो यह मनुष्य पर्याय मिली है तो अपना भला करने में भी पीछे नहीं रहो।