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निष्कांक्ष भक्ति प्राप्त करने के लिए आवश्यक है साकांक्ष भक्ति – भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

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जतारा – इस संसार में सभी जीव सुख की तलाश में हैं, लेकिन ध्यान रखना सुख तलाशने से नहीं मिलता अपितु सुख तो शुभ कर्म अर्थात जिनेंद्र भगवान की भक्ति, आराधना,पूजा करने से ही प्राप्त होता है। बंधुओं! जिस व्यक्ति ने अष्ट द्रव्य से सजी थाली भगवान के चरणों में समर्पित की है, विश्वास मानना उस व्यक्ति को कभी किसी से भोजन की थाली मांगने की जरूरत नही पड़ेगी ।प्रभु भक्ति का माहात्म्य बताते हुए आचार्य श्री विमर्श सागर जी मुनिराज ने धर्मसभा को संबोधित करते कहा – धर्म तो हर प्रकार से प्राणियों को बचाता ही है, जैसे शक्कर का सेवन किसी भी प्रकार किया जाए वह तो मीठी ही लगेगी। वैसे ही आप धर्म चाहे निष्कांक्ष भाव से करें अथवा साकांक्ष भाव से करें,धर्म के फल आपको शुभ रुप में ही प्राप्त होंगे। जिनभक्ति ही एकमात्र ऐसा उपाय है जो दुर्गति का नाश करने वाली है एवं सातिशय उत्कृष्ट पुण्य को देने वाली है और परम्परा से मुक्ति – निर्वाण अर्थात सच्चे सुख-परम सुख को प्रदान करने वाली होती है। 

यह बात यथार्थ है कि जिनेंद्र देव की भक्ति निष्कांक्ष भाव अर्थात बिना किसी लौकिक इच्छा – कामना-अभिलाषा के करना चाहिए किंतु प्राथमिक अवस्था यदि कोई साकांक्ष, अर्थात अपने किसी लौकिक प्रयोजन से भी भगवान की भक्ति करता है तो ऐसी साकांक्ष भक्ति भी भक्त को अभिलाषित फल को देने वाली हुआ करती है। क्योंकि हम सब जानते हैं कि जब व्यक्ति के जीवन में दुख के बादल भंडराते है तब उसे एक मात्र भगवान की शरण ही आश्रयभूत मालूम पड़ती है और वह दुख कष्टों की शान्ति के लिए भक्ति करता है। जिस प्रकार बालक को स्कूल भेजने के लिए अनेक प्रलोभन दिए जाते है, जब वहीं बालक बड़ा होकर शिक्षा के महात्म्य को जानता है तो वही बालक कड़ी मेहनत से उच्च पदों को प्राप्त करता है, ठीक वैसे ही प्राथमिक अवस्था में भक्त भले ही भोगों की कामना से भक्ति करें किन्तु जब उसे भक्ति का माहात्म्य पता चलता है तो उसकी यह भक्ति साकांक्ष न होकर निष्कांक्ष हो जाती है। बन्धुओं! साकांक्ष भक्ति आपको सांसारिक भोगोपभोग के साधन दिला सकती है परन्तु वास्तविक आत्मसिद्धि अर्थात मोक्ष सुख को देने वाली निष्कांक्ष भक्ति ही हुआ करती है। भक्ति के अतिशय महात्म्य को जानकर प्रलोभन पूर्ण भक्ति को छोड़कर निष्कांक्ष भक्ति का ही आश्रय करना चाहिए।

जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि प्रातः कालीन वेला में भक्तामर महामंडल विधान करने का सौभाग्य जिनागमपंथी श्रीमति शांतिबाई-गुलावचंद्र पटवारी, श्रीमति रुपांशी-राजेन्द्र “राज” आदर्श,अपूर्वा जैन,समस्त पटवारी परिवार,जतारा को प्राप्त हुआ ।